गुमनाम वसीयतनामा — नेकराम : Moral Stories in Hindi

अंजली की शादी होने के बाद हम दोनों बहन भाई बहुत खुश थे

लेकिन मन मुताबिक नौकरी न मिलने के कारण मैं वापस अपनी अम्मा के पास अपने घर लौट आया समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता चला गया

करीब चार महीने बीतने के बाद —

रात के 10:00 बज गए कौन दरवाजा खटखटा रहा है नेकराम जरा दरवाजा खोलकर देख कौन है जो जोर-जोर से दरवाजा पीट रहा है

अम्मा के कहने पर मुझे दरवाजा खोलना पड़ा हर काम के लिए अम्मा मुझे ही आगे रखती थी जब दरवाजा खोला तो बहन एक सूटकेस लिए खड़ी हुई थी मैंने दरवाजे के बाहर झांका दाएं बाएं देखा मगर जीजा जी नजर ना आए आखिर मैंने पूछ ही लिया दीदी आपके साथ जीजा जी नहीं आए तब दीदी ने कोई जवाब ना दिया और सीधी घर के अंदर चली आई

दीदी पलंग पर बैठते हुए अम्मा से बोली अब मैं कुछ दिन यही रहूंगी

गांव से ससुर जी आए हैं और बहुत बीमार है

जब ससुर जी गांव में स्वस्थ थे और रुपया कमा रहे थे तब उनका बड़ा बेटा और उनकी बड़ी बहू उनकी बड़ी सेवा करते थे सारे नोट उनसे गिन गिन कर रखवा लेते थे

अब ससुर जी बीमार हैं तो यहां दिल्ली में भेज दिया अपने छोटे बेटे के पास इलाज के लिए ससुर जी की रकम खाए बड़ा बेटा और इलाज करवाएं छोटा बेटा यह कहां का इंसाफ है

मैं नहीं जाऊंगी अपने ससुराल मैं क्यों सेवा करूं अपने ससुर की

बहन के मुंह से इस तरह की बातें सुनकर मुझे दुःख तो हुआ लेकिन बहन है समझाना भी जरूरी है घर अपना परिवार अपना पड़ोसियों की दो बातें सुनने से अच्छा है घर के मसले घर में ही निपटा लिए जाए

मैं अम्मा को एक कोने में ले गया और अम्मा को बताया मैं बाहर गली से ऑटो रिक्शा बुक करके आ रहा हूं तब तक बहन को चाय और पानी बिल्कुल भी मत देना बड़े भैया ऊपर वाले कमरे में भाभी के साथ आराम कर रहे हैं उन्हें भी बिल्कुल डिस्टर्ब मत करना

बाबूजी अपने बीड़ी का बंडल खरीदने गए हैं बाहर आसपास की छोटी-छोटी सभी दुकानें बंद हो चुकी है इसलिए बाबूजी मोहल्ले की चौराहे वाली बड़ी दुकान पर जाएंगे वह दुकान रात के 11:00 बजे तक खुली रहती है और वहां भीड़ भी रहती है तो शायद बाबूजी को अभी 15 मिनट आने में लग जाएंगे

गली के बाहर ही मुझे ऑटो रिक्शा खड़ा मिल गया

जान पहचान वाला था तो जाने के लिए तैयार हो गया उसने पूछा कहां जाना है तब मैंने रिक्शा वाले भैया को बताया एक सवारी है

बुराड़ी के बस स्टैंड पर छोड़ना है ₹60 में बात तय हो गई

दौड़कर जल्दी से घर की तरफ लपका बहन का सूटकेस उठाया और बहन से कहा चलो बहन तुरंत मेरे साथ पीछे पीछे चल पड़ी

ऑटो रिक्शा के पास पहुंचने के बाद ड्राइवर ने कहा रात का समय है

लेडिज अकेली है मैं सवारी लेकर नहीं जाऊंगा दूर से मुझे बाबूजी आते दिखे उनके हाथ में एक बीड़ी का बंडल था

मैं तुरंत ऑटो के अंदर बैठ गया और बहन को भी बिठा दिया तब ऑटो वाले ने कहा तुम भी साथ चलोगे तो मैं बुराड़ी जाने के लिए तैयार हूं

मैंने उसकी हां में हां मिलाई ठीक है मैं भी साथ चलूंगा देर मत कीजिए

ऑटो तेज रफ्तार से बुराड़ी की तरफ दौड़ने लगा

रास्ते में मैंने बहन से पूछा

जब मैं ऑटो लेने गया था तब अम्मा ने तुमसे क्या बात कही थी

बहन बताने लगी अम्मा कह रही थी तुझे इस तरह ससुराल से ऐसे नहीं आना चाहिए था तेरे ससुर जी बीमार है बड़ी उम्मीद लेकर गांव से तेरे घर पर आए हैं और तू उन्हें धोखा देकर यहां चली आई

अपने पति की नजरों में भी तूने गिरने वाले काम किए हैं

तेरी जेठानी कैसी है हमें उससे कोई लेना देना नहीं

लेकिन तू इस नेक काम से पीछे मत हट

अभी तो तेरी शादी को 4 महीने हुए हैं अभी तुझे बहुत कुछ सीखना है

अम्मा की बात सुनकर मुझे लगा शायद मुझसे मायके आकर बड़ी गलती हुई है

बातें करते-करते

अब तक बुराड़ी स्टैंड आ चुका था

हम दोनों भाई बहन ऑटो रिक्शा वाले को धन्यवाद देकर सूटकेस लिए

तेजी तेजी से घर की तरफ भागे

रास्ते में एक ठेले वाला मिल गया उसके ठेले पर बहुत से सेब रखे हुए थे और अंगूर भी  शायद बाजार से अब अपने घर लौट रहा था

बहन ने 2 किलो सेब और एक किलो अंगूर खरीद लिए

दरवाजा बंद था बहन को मैंने सब कुछ रास्ते में समझा दिया

सूटकेस लेकर मैं बाहर ही दीवार के पीछे दुबक गया

जीजा जी ने दरवाजा खोला तो पूछा 1 घंटे से तुम कहां थी

हम दोनों बाप बेटे को थाली में खाना परोसने के बाद तुमने कहा मैं अभी पानी लेकर आती हूं फिर 1 घंटे से हम तुम्हारा इंतजार कर रहे थे

की पानी अब आएगा पानी अब आएगा

काफी देर होने के बाद जब मैं रसोई में पहुंचा तो तुम वहां नहीं थी

तब बहन ने कहा ससुर जी की तबीयत खराब थी तो मैंने सोचा उन्हें फल खाने चाहिए ताकि उनकी सेहत बनी रहे इसलिए मैं सेब और अंगूर खरीदने गई थी

जीजा जी ने खुश होते हुए सेब और अंगूर की थैली अपने हाथों में ले ली और बहन से कहा इतनी रात को अकेले ना बाजार जाया करो

मैंने सूटकेस आंगन में खड़ी झाड़ियों में छिपा दिया और उसी ऑटो में बैठकर वापस अम्मा के घर चला आया

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घर पर आते ही अम्मा ने कहा  बाबूजी बार-बार पूछ रहे थे नेकराम कहां है नेकराम कहां है तब मैंने कह दिया पड़ोसी की छत पर चला गया सोने यहां मच्छर बहुत है

मैंने अम्मा को सब बता दिया तुम बिल्कुल फिक्र मत करो सब काम बढ़िया करके आया हूं किसी को कोई शक नहीं हुआ

सूटकेस घर के बाहर बनी झाड़ियों में छिपा दिया है बहन मौका देखकर सुटकेस को घर के भीतर रख लेगी

मै पड़ोसी की छत पर जा रहा हूं सोने मगर एक नुकसान बहन ने कर दिया जाते समय तो बहन ने ₹60 किराया दिया था मगर आते समय का किराया में मांग न सका

सुबह आटों वाले भैया को ₹60 देने हैं बस इसी बात की टेंशन है

तब अम्मा ने कहा तुझे ₹60 की पड़ी है

तेरी बहन सही सलामत अपने ससुराल पहुंच गई यह मेरे लिए और हम सबके लिए गर्व की बात है

अम्मा कहती रही और मैं चादर लेकर पड़ोसी की छत की तरफ भागा

भागते-भागते में यही सोच रहा था बहन लगा गई मुझे, साठ रुपए का चूना

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दिल्ली के पंत हॉस्पिटल में बहन के ससुर जी का इलाज 3 महीने तक चलता रहा हमसे जो मदद हुई हमने की और अस्पताल में हमारा पूरा परिवार हर 2 दिन बाद देखने जाता रहा

3 महीने बाद बहन के ससुर जी स्वस्थ हो चुके थे

लेकिन उन्होंने गांव जाने का इरादा मन से निकाल दिया

और बहन के घर पर रहने का फैसला लिया

बहन को भी कोई एतराज नहीं था

घर के बड़े बुजुर्गों की सेवा करना तो बच्चों का धर्म होता है

यही सोच कर बहन सेवा करती रही

दवाई फल नाश्ता सब समय पर मिलता रहा

और इस तरह बहन ने अपने ससुर जी का दिल जीत लिया

ससुर जी ने अपने अंतिम दिनों में दिल्ली वाला मकान अपनी छोटी बहु के नाम कर दिया और इस दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए विदा हो गए उनके जाने के बाद बहुत दिनों तक घर में उदासी छाई रही

घर आकर अकेले में बहन ने जब यह बात हमें अम्मा और बाबूजी को बताई की मेरे ससुर जी ने दिल्ली वाला मकान मेरे नाम कर दिया है अब मुझे क्या करना चाहिए

अम्मा और बाबूजी ने बहुत सोच विचार कर बहन को बताया

भले ही तुमने अपने ससुर जी की सेवा की लेकिन उसकी कीमत नहीं मांगी जाती न ली जाती है

इसलिए तुम अपने ससुरजी की बनाई वसीयत नामा को किसी नदी में प्रवाहित कर दो और भूल जाओ कभी कोई ऐसी भी वसीयत बनाई गई थी जो सिर्फ एक ही बेटे के लिए हो

तुम्हारे जेठ जेठानी के भी बच्चे हैं उनका हक लेना गलत होगा

यह बात बहन ने जब जीजा जी को बताई तो

इस फैसले से जीजा जी भी खुश थे

दो भाइयों के बीच कभी भी दरार नहीं पड़नी चाहिए प्रॉपर्टी को लेकर

मनुष्य के कर्म अच्छे हैं और अच्छे संस्कार है तो वह जीवन में न जाने कितनी  प्रॉपर्टी खड़ी कर लेंगे

कितने साल बीत गए उस वसीयतनामा के बारे में बहन के जेठ जेठानी को कुछ भी पता नहीं सब मिलजुलकर अपना-अपना हंसी खुशी जीवन बिता रहे हैं

शादी के बाद हर विवाहित लड़की अपनी मां के कहे अनुसार ही चलती है इसलिए मां का कर्तव्य बनता है अपनी शादी-शुदा बेटी को सही रास्ता दिखाए घर तोड़ने की नहीं घर जोड़ने की सलाह दे बुजुर्गों की सेवा करना सिखाया जाए क्योंकि एक दिन हमें भी बूढ़ा होना है यही सत्य है

खुश रहिए मिलजुल कर रहिए फिर मिलते हैं अगली बार एक और नई पारिवारिक कहानी के साथ

लेखक — नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

मुखर्जी नगर दिल्ली से स्वरचित रचना

4 thoughts on “गुमनाम वसीयतनामा — नेकराम : Moral Stories in Hindi”

  1. बहोत अच्छा कहानी हैं. हर बार कुछ नयी सिख दे जाती हैं. 👌👌😊🙏ऐसी smzane वाली माँ or भाई सबको मिले जो तोडने में नहीं बल्की जोडने में विश्वास रखते हो. 🙏

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