यह मेरी जिन्दगी है – बिमला महाजन : Moral Stories in Hindi

नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी।शाम का घटना – चक्र उस की आंखों के सामने घूम गया। रुपाली के कहे शब्द बार बार उसके कानों में गूंज रहे थे।

“ममा ! हम लोग अब इकट्ठे नहीं रह सकते हैं ।” रुपाली ने अपना फैसला सुना दिया दिया था।

” क्या कहा ?” राधिका ने हैरान हो कर पूछा ।

“हां ममा ! बहुत हो गया,अब रोज की किट् किट् मुझसे बर्दाश्त नहीं होती । मैं भी वर्किंग हूं  ।सारा दिन बाहर काम में खटो । फिर घर आकर भी दो मिनट सुकून नहीं ।” रुपाली झल्ला कर बोली।

” आखिर बात क्या हो गई ,जो इतनी बड़ी बात कह रही है ।” राधिका ने जानना चाहा ।

” कोई एक बात हो तो बताऊं ।हर बात में मतभेद,हर बात पर झगड़ा । मैं भी काम से थकी हारी आती हूं ।कभी खाना बनाने को नहीं मन होता या बाहर का खाने को मन करता है।कहती हूं”चलो! बाहर चलते हैं , पर नहीं । चलो ! बाहर नहीं जा सकते, पर बाहर से मंगवाया तो जा सकता है ।पर जनाब को वह भी मंजूर नहीं ।

उन्हे तो घर का खाना ही चाहिए , वह भी गरमागरम ! खाने में भी अपनी पसंद का खाना चाहिए । घर बाहर की सारी जिम्मेदारी संभालो ।पर घर में सब कुछ उसकी मर्जी से ही चलेगा । मेरी पसंद नापसंद का कोई महत्व ही नहीं है ।”

” तेरी पसंद नापसंद का भी महत्व है , पर घर गृहस्थी में थोड़ा बहुत एडजैस्टमैंट तो सब को करना पड़ता है ।” राधिका लगातार समझाने का प्रयत्न कर रही थी ।

 ” सब एडजैस्टमैंट  मैं ही क्यों करूं ? वो क्यों नहीं ?” रुपाली अपनी जिद्द पर अड़ी हुई थी  ।

“बिट्टो ! यह कोई बड़े बड़े इशू नहीं हैं  ,छोटी छोटी बातें हैं ।” राधिका समझा तो रही थी , पर मन ही मन समझती थी ‘यह छोटी छोटी बातें ही आगे चलकर बड़े इशू बन जाते हैं ।

“ममा आप के लिए छोटी छोटी बातें होंगी, पर जिसे भुगतना पड़ता है ,उसे पता चलता है । यह न पहनों , वहां न जाओ , उससे बात न करो । इतनी पाबंदियां  जब औरतें घर से बाहर निकलेंगी  , तो उन्हें आजादी भी तो चाहिए । पर नहीं सब उस की मर्जी का  , मेरा मानों कोई वजूद ही नहीं है । यह मेरी जिंदगी है , इस के सब फैसले लेने का हक केवल मुझे है । ” रूपाली ने बात खत्म करते हुए कहा!

राधिका चुपचाप सब सुन रही थी और मन ही मन सोच रही थी “ये पसंद ! नापसंद!मेरा वजूद! मेरी जिंदगी! यह सब क्या है?यह जिंदगी क्या हमारी निजी संपत्ति है ?’

   “ममा फिर सब आप की तरह नहीं हो सकते हैं ।” रुपाली ने बड़ी सहजता से कहा । सुन कर उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।पर उसने अपने आप को संयत करते हुए रुपाली को भरसक समझाने का प्रयत्न किया “लाडो  !औरत औरत है और मर्द मर्द। बाहर औरतें  पुरुषों से मुकाबला कर के भले ही बेहतर दर्जा हासिल कर लें, क्यों कि वह बाहर की दुनिया है। पर घर गृहस्थी में वे एक-दूसरे के पूरक हैं , प्रतिस्पर्धी नहीं। वे एक-दूसरे के सहायक तो हो सकते हैं प्रतिद्वंद्वी नहीं । “

“यह सब पुरानी जेनेरेशन के विचार हैं  , आज की पीढ़ी के नहीं । मुझे समझ नहीं आता ममा ! आप सब लोग यह सब कैसे सहन कर लेते हैं ।” रुपाली धीरे से बोली ।

सुन कर वह सोच में डूब गई । “क्या उन लोगों की सहिष्णुता का यही प्रतिफल है ? क्या पति-पत्नी की आपसी एडजैस्टमैंट, एक-दूसरे की इच्छाओं का सम्मान करना, जरूरतों को समझना सचमुच पुराने विचार हैं  ? कोई भी दो व्यक्ति समान नहीं होते, विचारों में मतभेद स्वाभाविक ही है ।

पर क्या जीवन के हर छोटे से छोटे निर्णय लेने के लिए आपस में बहस करना, ज़िद्द करना अनिवार्य है ? क्या हर स्तर पर एक-दूसरे से बराबरी करना , एक दूसरे को अपनी इच्छा अनुसार चलाना ही समानता है ? दूसरे को नीचा दिखाकर  अपनी स्वतन्त्र सत्ता को मनवाना ही नए  विचार हैं  ?

सारी रात वह करवटें बदलती रही । आलोक का उसकी बेचैनी का कारण पूछने पर उसने अपने मन की दुविधा आलोक से सांझी की । सुन कर आलोक ने बहुत ही सुलझे हुए तरीके से कहा  ” दो लोग जो एक छत के नीचे रहते हैं और पति-पत्नी के रिश्ते में बंधे हुए हैं, जरूरी नहीं है कि वे अपने पति पत्नी के इस रिश्ते को निभा ही  जाएं ।

किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए एक दूसरे की जरूरतों को समझना, एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना आवश्यक है ।जहां अहम् आ गया, वहीं रिश्ता दरकने लगता है । त्याग और समझौता सिर्फ एक पक्ष करे ,तो रिश्ता  जी ही  जाए  , यह आवश्यक नहीं है ।

पर  किसी भी रिश्ते को जिंदा रखने के लिए अपने आप को खत्म कर देना भी समझदारी नहीं है । इस लिए तब तक ही समझौता करना चाहिए, जब तक तुम्हारे अस्तित्व पर आंच न आए ।  कोई भी रिश्ता जीवन से बड़ा नहीं होता है ।” वह चुप चाप आलोक की कही बा वह बात को आत्मसात करने का प्रयास करने लगी ।

 आलोक फिर कहने लगे “पति-पत्नी एक-दूसरे का सम्मान भले ही न भी करें , पर एक-दूसरे पर विश्वास सबसे ज्यादा आवश्यक है,क्योंकि विश्वास का रिश्ता बड़ा नाज़ुक होता है  , एक बार टूट जाए , तो कभी नहीं जुड़ता है। इस लिए जिस रिश्ते में विश्वास नहीं , उस का निभ जाना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है । “वह मन ही मन आलोक की बात को समझने का प्रयत्न कर रही थीं ।

आलोक ने  बात आगे बढ़ाते हुए कहा  “फिर पुराने जमाने में अधिकतर  संयुक्त  परिवार होते थे  जिस कारण  छोटे -मोटे मनमुटाव को पारिवारिक सदस्य चुटकियों में सुलझा देते थे । उस पर पारिवारिक सदस्यों का निरंतर दबाव बना रहता था , जिस कारण पति-पत्नी के लिए कोई भी व्यक्तिगत निर्णय लेना इतना सरल नहीं था । सामाजिक मान्यताएं भी अति कठोर थी ।

सब से बड़ी बात आज  लड़कियां शैक्षणिक, आर्थिक अथवा सामाजिक दृष्टि से किसी भी प्रकार लड़कों से कमतर नहीं है । वह   स्व निर्भर हैं । उनमें सही ग़लत को पहचानने की क्षमता है । वह निर्णय लेने में पूरी तरह सक्षम एवं स्वतंत्र हैं । इस लिए  अपने जीवन के फैसले लेने का उन्हें पूरा हक है ।। अंत में यह सत्य है कि यह संसार वैसे नहीं चलता है ,जैसा हम चलाना चाहते हैं ।पर अपने जीवन पर तो हमें पूरा अधिकार है ।”आलोक ने बात खत्म करते हुए कहा ।

           वह चुप चाप आलोक की नई विचारधारा को आत्मसात करने का प्रयास करने लगी ।

#मतभेद

बिमला महाजन 

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