अंजु की अभी नई-नई शादी हुई थी। वह अभी परिवार के लोगों को जानने समझने की कोशिश कर रही थी। सभी रिश्ते के देवर ननद उससे हंसी ठिठोली करते और खुश हो रहे थे। वह भी हम उम्र के साथ घुल मिल खुश हो रही थी। किन्तु उसने अनुभव किया कि दो जोडी आंखें उसी पर स्थिर रहती हैं।
न जाने उन निगाहों में ऐसा क्या था कि वह असहज हो जाती। एक स्त्री को गलत निगाह को समझते देर नही लगती। वह अनदेखा करने की कोशिश करती। किन्तु जब भी उसकी गिगाह उठती उस शख्स को घूरते ही पाती। वह उसे पहचानती भी नहीं थी। नई-नई घर में आई थी
किससे कहे और क्या कहे। न जाने उस शख्स का क्या रिश्ता है इस घर से। अतः वह स्वयं ही उससे दूरी बना कर रहती। किन्तु वह उसके आसपास ही मंडराता रहता। शायद उसकी चुप्पी को वह कुछ और ही समझ रहा था।
अंजु मेहमानों के जाने का इंतजार कर रही थी कि शायद वह भी कोई मेहमान हो और चला जाए। क्यों आते ही वह घर में बखेडा खडा करे।
चार दिनों में एक-एक करके सारे मेहमान विदा हो चुके थे। किन्तु वह शख्स नहींं गया। अब उसे समझ आ गया कि वह घर का दामाद है। बड़ी ननद अभी रुकी हुई थीं और वह उनके पति थे ।अंजू का मन वितृष्णा से भर उठा। कोई अपने घर की महिला से भी ऐसी बदतमीजी कर सकता है जबकि उसकी पत्नी उसके साथ ही हो
और वह भी अपनी ससुराल में। अब घर में सबके जाने से खालीपन हो गया था और उसकी चुप्पी से उसकी हिम्मत बढने लगी। एकान्त पाकर उसे गलत तरीके से छूने की कोशिश करने लगा, और गन्दे मजाक भी करता ।
अंजु बेहद परेशान क्या करे। पति को कहे पर क्या वो अपने जीजाजी के लिए ऐसी बात सुन के मेरी बात का विश्वास करेंगे या मेरे ऊपर ही तोहमत लगा देंगे। बडी दुविधा में थी करे तो क्या करे ।सासु माँ को बोलूं फिर तुरन्त ही उसके मन में आया कि मुझे अभी इस घर में आए केवल दस दिन हुए है कहीं वो मुझे ही गलत न समझ लें ।
एक दिन वह नीचे काम करा जीना चढ़ अपने कमरे की ओर जा रही थी कि वहीं गैलरी में खडे जीजाजी ने उसका हाथ पकड लिया और बोले कभी हमसे भी प्यार से बात कर लिया करो दूर क्यों भागती रहती हो।
गुस्से में उसने हाथ छुड़ाकर उन्हें क्रोधित निगाह से देखा और लगभग दौड़ती हुई अपने कमरे में गई। घबराहट से उसकी साँस फूल रही थी। उसे पता नहीं था कि कमरे में उसका पति अनिल लेटा हुआ है। उसे इस तरह घबराया देख वह उसके पास उठ कर आया और बोला क्या हुआ अंजु तुम इस तरह घबराई हुई क्यों हो।
वह उसे देख उसके सीने से लग बुरी तरह रो पड़ी। थोडा शान्त होने पर उसने पहले दिन से लेकर आज तक की पूरी बात बताई।
वह बोला तुम इतनी परेशान होती रही और मुझे बताया क्यों नहीं।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि किसे बताऊं । क्या तुम मेरी बात का विश्वास करते।
एक बार तो यह सुन अनिल भी चुप हो गया। शायद नहीं।अंजु सही कह रही है कि औरतों को ही गलत ठहरा दिया जाता है और अंजु तो अभी नई थी इस घर के लिए जीजाजी तो पांच साल से इस घर में आ जा रहे हैं कौन उसकी बात पर विश्वास करता।
अंजु दीदी दो चार दिन बाद जाने वाली हैं सो तुम थोडा सम्हल कर दूरी बना कर समय निकाल लो।
वह कुछ न बोली।
दूसरे दिन शाम को घूमने जाने का कार्यक्रम था। सब तैयार हो रहे रहे थे कि बाहर ही खाना खाकर आयेगें। अंजु भी तैयार हुई। तभी अनिल बोला अंजु क्या तुम मुझे एक कप चाय बना दोगी ,थोडा सिर भारी हो रहा है।
जी अभी लाई कह वह तुरन्त किचन में गई बौर चाय बनाने लगी।
तभी पीछे से घात लगाये जीजाजी आए और उसकी कमर में हाथ डाल दिया।
वह पीछे गुडी और एक जोरदार झापड उनके गाल पर पड़ा और चीखकर बोली जीजाजी हर रिश्ते की एक मर्यादा होती है एक सीमा रेखा होती है जिसे आज आपने पार कर दिया। आइन्दा यदि रिश्ता आगे भी रखना चाहते है तो अपनी मर्यादा में रहना सीख लें अन्यथा आपको नहीं मालूम कि मैं जूडो कराटे की चैम्पियन हूं सो अपना ध्यान रखना ।
आज तो इतना ही आगे आप नहीं माने तो धूल चटा दूंगी ।मेरी इतने दिन की चुप्पी को आपने गलत लिया शायद मेरी सहमती समझी किन्तु मैं तो आपकी इज्जत का ख्याल कर रही थी। आज वह सीमा रेखा खत्म हुई और आप मेरे क्रोध का शिकार बने ।आगे आपकी इच्छा है आप कैसा रिश्ता निभाना चाहते हैं।
उसकी चिल्लाहट सुन वहां अनिल समेत परिवार के अन्य सदस्य भी आ चुके थे। जिनकी समझ में कुछ आ रहा था कुछ नहीं। अंजु क्रोध से कांप रही थी। अनिल उसे बाहर ले गया शांत कराया।
फिर आकर परिवार वालों को पूरी बात बताई।सब सुन हक्के-बक्के रह गए। जीजा जी शर्म से गर्दन नहीं उठा पा रहे थे। दीदी उन्हें खा जाने वाली निगाहों से देख रहीं थीं। समझ नहीं आ रहा था कि परिस्थिति को कैसे सम्हालें ।
पापा जी बोले मोहित बेटे मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी, कि तुम छोटी बहन समान अंजु के साथ ऐसा करोगे, जो हुआ उसे भूल आगे से अपनी सीमा रेखा में ही रहना बर्ना इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए सदैव के लिए के बन्द समझो ।
मेरे लिए दोनों ही रिश्ते अहम् हैं। यदि तुम दामाद हो तो अंजु इस घर की बहू है, हमारे घर की इज्जत है जिस पर कोई नजर डाले यह बर्दाश्त नहीं होगा। आगे तुम स्वयं समझदार हो।
पापा के निर्णय पर सबकी मौन सहमति थी।
शिव कुमारी शुक्ला
27-6-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
साप्ताहिक बिषय***सीमा रेखा
Ek Accha Sabak
Superb story
Ek ganda path