घर कितना गंदा हो गया चारों तरफ धूल जमी है, मिट्टी को झाड़ते झाड़ते एल्बम हाथ में आती है..
एल्बम पलट कर देखने लगती हूं, तभी बिटिया पास में आती है।
उछलते कूदते बोलती है मम्मी यह क्या है कैसी तस्वीर देख रही हो मुझे भी दिखाओ…
हां बेटा क्यों नहीं आओ मेरे पास..
चेरी बेटा ये मेरी बचपन की तस्वीर है!
अरे वाह! मम्मी यह तुम्हारे हाथों पर क्या बैठा है तुम कितनी प्यारी लग रही हो….
मेरे हाथों पर तितली है बहुत प्यारी थी…
अरे ये कैसी तितली ?मुझे भी देखना है मम्मी, प्यारी सी रंग बिरंगी तितली को अपने हाथों पर बैठाना है…..
मुझे भी चाहिए तितली, मुझे भी चाहिए तितली ,अभी चाहिए….
यह कैसी है ज़िद्द… बिटिया रानी अब जिद ना करो! मैं अभी कहां से लाकर दूं ,यह असंभव सा है!
चेरी तभी जिद करते हुए बोलती है, कि मम्मी आप उससे मिल सकती हो तो मैं क्यों नहीं मुझे अभी मिलना है।
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मेरे पास आओ मैं तुम्हें समझाती हूं ….. बेटा यह हरे भरे बागों में फूलों पर मंडराती है ,पर आज के समय में हमारे आसपास अब सारी चीजें समाप्त हो चुके हैं ! अब तो दूर-दूर तक बस पथरीले रास्ते ना कहीं हरे-भरे वन ना उपवन….
तुम ही बताओ वह तुम्हारे पास कैसे आएगी?
अब तो यह तभी संभव हो सकता है ,जब चारों तरफ हरे भरे उपवन होंगे, जिससे जिसे देखकर वह वहां पर अपने आप आ जाए।
चेरी थोड़ा शांत होते हुए अपनी मम्मी से बोलती है कि मम्मी अब से मैं शुरुआत करूंगी ,इन्हें बचाने का पूरा प्रयास करूंगी। प्रतिदिन पूरा प्रयास करूंगी कहीं ना कहीं एक पेड़ अवश्य लगे। जिससे कि हरियाली चारों ओर फैले और समाप्त हो रहे हैं ,छोटे-छोटे जीवो को जीवन की प्राप्ति हो और हम भी उनके साथ हंँस खेल सके…जैसे आप हंसा खेला करती थी!
मम्मी खुश होकर चेरी को गोद में बैठा लेते हैं और प्यार करने लगती है, मैं पूरा सहयोग दूंगी तुम्हारे इस कार्य में मेरी बिटिया रानी एक दिन तुम्हें तितली से जरूर मिलाऊंगी।
तभी चेरी बोलती है……….
“सब के संग मिलकर ,चारों ओर हरियाली से लाऊंगी।
तितली को बचाऊंगी……
हरा-भरा उपवन कर,उसको घर दिलाऊंगी।”
डॉ माधवी मिश्रा ‘शुचि’
उत्तर प्रदेश