दृश्य एक
मेरे घर के एक किरायेदार.. पांच बच्चे और माता पिता को मिलाकर सात लोगों का परिवार..
अपना गांव घर छोड़ कर शहर में अपने परिवार को लेकर रहने वाला गृह स्वामी..
रोड के किनारे चौकी पर कपड़े बेचकर गुजर बसर करने वाला.. शाम तक की कमाई में पुलिस को हिस्सा देकर बचे पैसों से रात और सुबह की सब्जी आंटा आदि रोजमर्रा की जरूरतों का सामान लेकर आने पर चूल्हा जलता… बेहद संस्कारी शरीफ बच्चे.. भूखे पेट रहने पर भी बगल वाले को पता ना चले ऐसे संतोषी बच्चे..
पढ़ने में भी तेज…
गृहस्वामिनी के लिए बच्चे और पति हीं पूरी दुनिया हैं.. कमी में भी कैसे खुश और संतुष्ट रहा जा सकता है , जब जाड़े की रात में पति पत्नी आग जलाकर बच्चों के साथ गरम गरम सोंधी खुशबू वाली लिट्टी और चोखा बनाते, पहले बच्चों को खिला कर संतुष्ट हो जाते फिर एक थाली में हीं दोनो खाते… गजब की अलौकिक खुशी उनके चेहरे पर नजर आती..गृहस्वामी जब भी सुबह अपनी दुकान लगाने के लिए निकलता गृहस्वामिनि पहले पति का बाल कंघी से बनाती.. कंधे पर चेक वाला सूती गमछा रखती और
हाथ में प्लास्टिक के डब्बे में रखे दोपहर के खाने और बोतल में पानी लिए गेट के बाहर तक छोड़ने जाती.. ये रोज का रूटीन था.. तीज त्योहार आने पर ना कभी नई साड़ी के लिए जिद करती.. हां पैसे जोड़कर पति के लिए साल में एक बार शर्ट पैंट जरूर सिलवा कर रखती और गांव में जब गोतिया रिश्तेदारी में शादी तिलक छेंका होता तो निकाल कर पहनने को देती.. पति के आंखों में प्रेम आश्चर्य खुशी के मिले जुले भाव देख अभिभूत हो जाती.. प्यार विश्वास त्याग और संतोष बना इनका रिश्ता अद्भुत था..
कुछ दिन पहले बच्चों के दादाजी भी गांव से आ गए थे.. गांव में चाचा चाची के झगड़े में दादा कई टाइम भूखे रह जाते थे.. ऐसा छोटे बच्चे ने मेरे से कहा..
स्कूल जाने से पहले बच्चे दादा के साथ चिपके रहते… उसके बाद बहु ससुर को कुर्सी पर धूप में बैठा कर सरसो तेल की मालिश करती..
गरम गरम रोटी एक एक कर थाली में डालती.. गरम पानी में सर्फ डालकर दादा की गांव से आई चिकट धोती कुर्ता को अपने कुशल हाथों से चमका कर निरमा वाशिंग पाउडर के एड को जैसे चरितार्थ कर रही थी… बच्चे रात में दादा का पैर दबाते और दादा गांव की कहानियां सुनाते कभी बच्चों के पिता का बचपन…
बहु अपनी हैसियत से बढ़कर ससुर के पसंद का खाना बना कर खिलाती.. सास नही थी… बहुत पहले कैंसर से गुजर गई थी.. जब अपने ससुर को खिलाती मनुहार कर के.. लगता मां अपने छोटे बच्चे को फुसलाकर खिला रही है.. मुझे ये दृश्य देखकर बहुत आनंद आता.. कैसे ये लोग कमी में भी रहकर #छोटी छोटी बातों में खुशियों को तलाश रहे थे #
Veena singh
कल बच्चों की छुट्टी थी, दादा को लेकर पानीपुरी खाने गए थे… स्कूल से आने के बाद आज बच्चे दादा को बाजार ले गए उनके लिए हवाई चप्पल खरीदने, प्लास्टिक का जूता पहने पहने दादा का पैर कसा जा रहा है… एक कमरा छोटा सा बरामदा और छोटा सा रसोईघर, उसी में कितनी हंसी खुशी से आठ लोग रह रहे हैं.. दादा का का शरीर भी दस दिन में हीं चिकना गया है..
Veena singh
अक्सर गांव में रहने वाले बुजुर्ग शहर में एक दो दिन में हीं ऊब जाते हैं पर दादा को यहां अच्छा लग रहा है.. आज दादा बेटा से बोल रहे थे कुछ पैसा है एक गाय खरीद दो…मकान मालिक को भी शुद्ध दूध देंगे और बाल बुतरु को भी दूध दही मिलेगा.. खैर ये तो बाद की बात है..
दृश्य दो
मकान के पहले तल्ले पर रहने वाले सुबोध सचान पंजाब नेशनल बैंक में मैनेजर पत्नी कॉलेज में प्रवक्ता..
दो बच्चे, पंद्रह साल की रिया और बारह साल का रिशु.. कान्वेंट स्कूल के स्टूडेंट.. घर में एक खाना बनाने वाली एक सफाई करने वाली मेड… और अंचल पदाधिकारी के पद से रिटायर ससुर.. चार कमरे का फ्लैट.. वेल फर्निश्ड … बालकोनी में तरह तरह के फूल पौधे.. सप्ताह में दो दिन माली आता..
Vrena singh
बच्चे स्कूल से घर आते हीं फोन पर लग जाते.. कभी पिज्जा ऑर्डर होता कभी बर्गर.. बूढ़े दादाजी कीमती डाइनिंग टेबल पर अकेले बैठे हॉट केस में रखा हुआ खाना बेमन से खाते.. मनोरंजन के नाम पर टीवी मोबाइल… बेटा बहु दोनो के पास वक्त का अभाव था.. दादाजी से बच्चे सुबह गुड मॉर्निंग कहते और रात में गुड नाईट, यही शिक्षा उन्हें महंगे स्कूल और अपने मॉम डैड से मिली थी… कभी दादाजी बच्चों के कमरे में आकर बात करना चाहते तो बच्चे कहते क्यों एरिटेट कर रहे हैं आप बहुत चाट हो गए हैं..
और दादाजी अपना सा मुंह लेकर वापस अपने कमरे में आ जाते.. नौकरी में थे तो आगे पीछे कितने अफसर अरदली घूमते थे आज क्या स्थिति हो गई है मेरी..आंखों के कोर से आसूं ढलक हीं गए.. बच्चे अपने माता पिता से शिकायत करते तो उल्टे उन्हें हीं सुनना पड़ता..बेटा बहु भी बोलते बच्चों को थोड़ा स्पेस थोड़ी प्राइवेसी देनी पड़ती है आप समझा कीजिए पापा… आपका अपना कमरा है ना… टीवी मोबाइल सब तो हैं हीं..
इकलौते बेटे का बाप होने के कारण कहीं और जा भी नही सकते थे.. और ये बुढ़ापा पत्नी का असमय गुजर जाना…
कभी कुछ खाने की इच्छा होती तो खाना बनाने वाली से बोलते.. पर उसे भी सख्त हिदायत थी कुछ तला भुना ना बना के दे.. पेट खराब होने पर कौन साफ सफाई करेगा…
ये दोनो दृश्य इसी दुनिया इसी समाज के हैं जिसके हिस्से में जो आए… एक परिवार कमी के बावजूद भी #छोटी छोटी बातों में खुशियों को तलाश कर #हंसी खुशी जी रहा था वहीं दूसरा परिवार सब होते हुए भी…..
#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #
❤️🙏✍️❣️
Veena singh..
स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित..