“खूबसूरती रिश्तों की” – कविता भड़ाना : Moral Stories in Hindi

“खुशी जल्दी उठो बेटा दामाद जी का फोन है”… 

“क्या मम्मी अमित यहां भी चैन से नहीं रहने दे रहे, अभी कल ही तो आई हूं, ऐसी भी क्या आफत आ गई जो सुबह सुबह फोन कर रहे है”…

खुशी ने गुस्से से बड़बड़ाते हुए फोन ले लिया… थोड़ी देर अमित से बात करके खुशी फिर से सो गई..

शाम को अपनी दोस्तों के साथ घूम फिरकर और शॉपिंग करके आई खुशी ने देखा की घर में तो ताला लगा हुआ है,

उसने फोन चेक किया तो देखा उसकी मम्मी की कई मिस कॉल थी, मगर मॉल में शोर शराबे में खुशी को रिंग सुनाई नही दी

, उसने वापस कॉल किया तो उसकी मम्मी ने उसे जल्दी से हॉस्पिटल आने को बोला और फ़ोन काट दिया,

घबराई हुई खुशी जब हॉस्पिटल पहुंचीं तो देखा उसके मम्मी पापा ऑपरेशन थियेटर के बाहर बैठे है, उन्हें ठीक देख खुशी की जान में जान आई और धीरे से पूछा…”कौन है अंदर??”

“तुम्हारी सासू मां का पथरी का ऑपरेशन हुआ है खुशी”,.. थोड़ी नाराज़गी से खुशी के पापा ने जवाब दिया,

कंपनी के बहुत जरूरी काम से चार दिन के लिए बाहर गए दामाद जी ने तुम्हें सुबह फोन करके अपने जानें की बात और समधन जी को रह रह कर

उठ रहे दर्द से अवगत करा कर अति शीघ्र घर पहुंचने को भी बोला था ताकि कोई इमर्जेंसी आने पर तुम तत्काल उन्हे देख सको, 

मगर तुम इतनी लापरवाह निकली की ऐसी जरूरी बात को प्राथमिकता ना देकर अपनी दोस्तों के साथ मौज मस्ती को ज्यादा जरूरी समझा,

वो तो घर की मेड ने डायरी से नंबर लेकर हमे फोन कर दिया, तभी मैं और तुम्हारी मम्मी समय से समधन जी को दर्द की हालत में हॉस्पिटल ला पाए,

तुम्हे इतने फोन भी किए मगर मेरी बेटी तो अपनी मौज मस्ती में मगन थी। 

खुशी को अब बहुत ही शर्मिंदगी और आत्मग्लानि हो रही थी, उसका इस कदर लापरवाह होना किसी के लिए जानलेवा भी हो सकता था

ये तो उसने अपनी मौज मस्ती के चक्कर में सोचा ही ना था।  

अगले दिन शाम को खुशी के मम्मी पापा जब हॉस्पिटल अपनी समधन से मिलने पहुंचे तो खुशी से सब कुछ जान चुकी,

उन्होंने कृतज्ञता से अपने दोनों हाथ जोड़कर उनका अभिनंदन किया… “अरे समधन जी आप हमें और शर्मिंदा मत कीजिए

अपनी बेटी की लापरवाही और गैर ज़िम्मेदार हरकत से हम वैसे ही आहत है”…. खुशी की मम्मी ने हाथ जोड़कर कहा तो उनकी समधन मुस्कुराते हुए बोली,

खुशी को अपनी गलती का अहसास हो चुका है, पूरी रात मेरी बहू ने एक पल के लिए भी आंख नहीं झपकाई और ये सब आपके संस्कार ही तो है

जो उसे अपनी गलती का अहसास हो गया  #आखिर क्यों ना करू अपनी किस्मत पर नाज़ जो मुझे इतने सुलझे हुए समधी समधन मिले है और सभी की सम्मिलित हंसी से हॉस्पिटल का कमरा भी मुस्कुरा उठा।

स्वरचित मौलिक रचना 

#आखिर क्यों ना करूं अपनी किस्मत पर नाज़ 

लेखिका कविता भड़ाना

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