इस अपराध की कोई माफ़ी नहीं ……..। – डॉ.विभा कुमारिया शर्मा। : Moral Stories in Hindi

देखो बेटा , अब तुम्हारी कोई बात मुझे नहीं सुननी है , तुम ऐसा ही समझ लो। तुम अब निकलो यहां

से । सागर सिंह ने सीधे-सीधे अपने दामाद अमन से कह दिया।

पर , पर , पापा जी हमारी रिजर्वेशन तो परसों की है, मतलब परसों शाम को हम दोनों जाएंगे । क्या

आपको सुरभि ने कुछ भी नहीं बताया ?

सुरभि ने हमें क्या बताया , क्या नहीं बताया , अब इस बात से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। परसों की

रिजर्वेशन तुम्हारी सुरभि के साथ थी । अब तुम यहां से सुरभि के बिना ही जाओगे । समझ आया ? समर

सिंह ने कड़कती आवाज़ में कहा। तुम अकेले ही यहां से जा रहे हो………। हम सुरभि को तुम्हारे साथ

नहीं भेज रहे। समर सिंह ने चबा चबाकर अपने शब्द कहे।

पर क्यों …? क्यों …….? अमनदीप की आवाज में हकलाहट पैदा हो गई और आवेश में उसके होंठ

कांपने लगे ।

अभी दो महीने पहले ही उसकी शादी सुरभि के साथ शादी हुई थी । अचानक दो महीनों के बाद भी

सुरभि के भतीजे की मुंडन सेरिमनी थी । इसलिए दोनों कल ही इलाहाबाद से अहमदाबाद पहुंचे थे।

अहमदाबाद सुरभि का मायका था । पहला प्रभाव और जीवन भर ससुराल वाले हाथ जोड़कर पीछे घूमते

रहें ऐसी शिक्षा उसके शादीशुदा अनुभवी दोस्तों ने घोटकर पिलाई थी । वह भी अपने ससुराल में रौबदार छवि

बनाकर जीवन भर के लिए अमिट छाप छोड़ देना चाहता था। । इसी रौब के लिए अमनदीप ने ससुराल आते

ही अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए थे । गर्म चाय को ठंडा कहकर ठुकराना,घर के बने खाने को बेस्वाद कहकर

बाहर से खाना मंगवाना और इधर उधर रिश्ते दारों में बैठे हुए सुरभि की बुराइयां करते हुए उसे देख लिया

था कि लोग उसके साथ बहुत आदर और नम्रता से पेश आ रहे हैं,वह अपने मन में सोचने लगा कि उसने

पहले ही दिन अपने ससुराल वालों की बोलती बंद कर दी है ।

दूसरे दिन सुबह घर में पूजा पाठ हो रहा था । सब लोग बड़े वाले कमरे में बैठे हुए थे । चारों तरफ मंत्र

उच्चारण सुनाई दे रहे थे। रिश्तेदार एक दूसरे के साथ बातचीत में भी मशगूल थे । बाल कटवाते समय

सुरभि का भतीजा पुलकित जोर- जोर से चिल्ला रहा था , शायद ,वह नाई के उस्तरे और कैंची से डर

रहा था । सुरभि तालियां बजा बजाकर उसका ध्यान बंटा रही थी। अचानक अमनदीप ने पीछे से

आकर सुरभि से कहा दो मिनट मेरे साथ आओ । सुरभि अमनदीप के पीछे- पीछे चल दी। दूसरे

कमरे में जाकर अमनदीप ने उससे पूछा क्या तुमने ₹10000 निकाले ? सुरभि हैरान रह गई और

बोली – क्यों मैं क्यों निकालती ? मुझे क्या पता ? मैं देख रहा हूं कि मैं जो पैसे लेकर आया था

उसमें ₹10000 कम है । अमनदीप बोला । आप एक बार फिर से देख लीजिए , यही होंगे । देखो अगर

तुमने लिए हैं तो मुझे बता दो। किसी और को दिए हैं तो भी मुझे बता दो । क्या तुमने मुझसे पूछे

बिना अपने आप ही शगुन दे दिया ? अमनदीप तरह-तरह के प्रश्न पूछ रहा था और गुस्से में लाल

पीला हो रहा था । सुरभि ने एक बार फिर कहा, नहीं, मुझे क्या जरूरत थी ? मैंने नहीं लिए।

अमनदीप ने गुस्से से एक थप्पड़ सुरभि के गाल पर दे मारा। सुरभि तिलमिला गई। उसकी आंखें

आंसुओं से भर गई, फिर भी उसने संयम नहीं खोया और बोली लाइए मैं देखती हूं । अमनदीप अटैची

के सामने खड़ा होकर बोला- हाथ भी मत लगाना। तुमने क्या मुझे बेवकूफ समझा हुआ है ? सुरभि

हक्की – बक्की रह गई । वह सोच रही थी कि इस समय तो सब लोग हॉल में बैठे हैं। किसने ₹10000

चोरी कर लिया होगा । उसे कोई भी रिश्तेदार ऐसा नजर नहीं आया जो एक ₹10000 की छोटी सी

रकम के लिए अपने चरित्र को गंवा बैठे । आज तक घर में अनेक पर्व -त्यौहार हुए थे। हर बार सभी

रिश्तेदार इकट्ठे होते थे, लेकिन आज से पहले ना तो किसी की चोरी हुई थी और ना ही किसी ने चोरी

चकारी का इल्ज़ाम लगाया था । वह किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ी थी कि अमन बोला , मेरे सामने एक्टिंग

करने की जरूरत नहीं है ₹10000 खोना कोई मजाक नहीं होता। मैं किसको कहूं ? किसे पूछूं ? मैं इस

लिए चुप हूं कि यहां सभी तुम्हारे रिश्तेदार हैं। एक चोर के पीछे मैं सबको चोर नहीं ठहरा सकता । यह

तो मेरी शराफत है ……….। इस बार मैं आ गया, अब आगे से कभी नहीं आऊंगा। सुरभि अमनदीप

की बातों से डर गई और उसने बहुत ही करूण स्वर में कहा- मुझे समझ नहीं आ रहा …….. । इसी

विवशता में उसकी नजर अमन की छाती से घूमती हुई उसके लॉअर की बेल्ट तक पहुंच गई । उसने

देखा कि अमन की बेल्ट कुछ अजीब ढंग से मुड़ी और उभरी हुई है । वह एकदम से बोली , वैसे आपकी

बेल्ट के अंदर क्या घुमाकर मोड़कर रखा है ? कुछ छिपा रखा है क्या ? लाओ मैं चैक करती हूं।

अमन दो कदम पीछे हट गया और बेशर्मों की तरह हंसने लगा और बोला मैं तो मजाक कर रहा था ,

ऐसा कहकर उसने अपनी बेल्ट में से छिपाया हुए ₹10000 निकाल कर मुट्ठी में भींच लिए और कहा, डर

गई न ! मैं तो मज़ाक़ कर रहा था । तुम तो मज़ाक़ भी नहीं समझती हो। अब सुरभि उसे सुनने के लिए

विवश नहीं थी। उसने बिना वक्त गंवाए उसका कमरा छोड़ दिया और हॉल में जहां मुंडन सेरेमनी हो रही

थी वहां लौटकर आ गई।

अब तक मुंडन सेरेमनी हो चुकी थी और भैया – भाभी सुरभि का इंतज़ार कर रहे थे। मुंडन के बाद

बुआ ने भतीजे को नहलाना था। उनके यहां यही रिवाज था । भाई बलबीर सुरभि को देखते ही उसके

पास आया और बोला क्या हो गया था ? तू जीजा के साथ अंदर गई थी । सुरभि ने अपनी सारी व्यथा

भाई को बता दी। भाई ऐसी हरकत को मजाक कहने वाले अमन के विरुद्ध था । उसने पिता जी को सारी बात

बताई। जिसका परिणाम यह था कि तुरंत सागर सिंह ने निर्णय लिया सुरभि से उसके बारे में पूछताछ

की । अन्त में परस्पर सहमति से यह निर्णय लिया कि हमारी लड़की किसी भी हाल में इस तरह के घटिया

इंसान के साथ जीवन नहीं बिताएगी , फिर भी सोच विचार बाद में करेंगे ।

अमनदीप ने समर सिंह से फरियाद करते हुए कहा – पापा जी आप मुझे दो मिनट सुरभि से मिलने

तो दीजिए।

तुम्हें सुरभि से मिलने दूं ? समर सिंह भड़क गए और बोले , जिस तरह की तुमने बात की है और

जैसी बातें तुम कर रहे हो ,ऐसी बातों का चलन हमारे घर में नहीं है और ना ही सुरभि इस तरह के छल-

कपट जानती है। तुम दोनों के बीच अब क्या घटित होने वाला है, यह हम बाद में सोचेंगे , लेकिन मेरे

घर में मेरी ही बेटी का अपमान ? तुम अपने आप को समझते क्या हो ? इसके बाद भी तुम्हें उससे

बात करने का मौका चाहिए ? अब मैं तुम्हें उससे मिलने नहीं दूंगा। तुम ने क्या सोचा था कि परिवार

और पारिवारिक संबंध इतने सस्ते होते हैं ? तुमने अपनी हरकत से बता दिया कि तुम तो हमारी बेटी

के लायक भी नहीं हो।

हॉल में उपस्थित सभी रिश्तेदार हक्के – बक्के से रह गए । समर सिंह ने सबके बीच में जोर-जोर से कह

दिया कि यह लड़का कहता है इसके ₹10000 किसी रिश्तेदार ने चुरा लिए । मेरी लड़की को दबाने की

कोशिश कर रहा था । बीत गए पुराने ज़माने , जब मां – बाप लड़कियों को उनकी ससुराल में किस्मत के

सहारे छोड़ देते थे । मेरी बेटी हमारी आंखों का तारा है ।ऐसे बेहूदा लड़के को अपनी लड़की दे दूं ? अच्छा हुआ

हमें इसके बारे में जल्दी पता चल गया। बलबीर………! ……..ओ बेटा बलवीर! बेटा तुम कहां हो इसको

घर से निकालो । जब तक यह घर से नहीं निकलेगा , तब तक मिठाई नहीं बांटी जाएगी । तुम मुंडन

की मिठाई बांटो गे और मैं इसके जाने की मिठाई बांटूंगा ।

हॉल में एकाएक सन्नाटा छा गया। सब लोग समर सिंह और उसके परिवार वालों से अच्छी तरह

परिचित थे। समर सिंह ने चिल्ला कर कहा इसके पिताजी को फोन लगाओ मुझे उनसे बात करनी है।

बात बिगड़ती देख कर अमन उनके पैरों में गिर पड़ा और गिड़गिड़ाते हुए बोला – पापा जी मुझे माफ कर

दीजिए , आगे से ऐसा नहीं करूंगा। समर सिंह ने कहा आगे और पीछे की गुंजाइश नहीं रही बेटा , अभी

इसी वक्त निकलो यहां से। अभी तुम्हारे पिताजी को भी बता देता हूं , ताकि कल कोई यह इल्जाम ना

लगा दे कि लड़के के साथ हाथापाई हुई थी। सारे साक्ष्य अपने हाथ में लेकर अभी इसी वक्त तुम्हें

स्टेशन भेज रहा हूं । बलवीर ने अमन के पिता का फोन नंबर मिलाया और अमन के दुर्व्यवहार की बात

बता दी ।

बाहर टैक्सी वाला हार्न रुक रुक कर बजा रहा था । उसी वक्त सुरभि ने कमरे में प्रवेश किया और बोली ,

पापाजी इनसे कहिए अब यह हमारे घर और मेरे जीवन से दूर निकल जाएं। मैंने टैक्सी मंगवा दी है , पेमेंट भी

कर दी है । …….अमन चुपचाप , सिर झुकाए, टैक्सी में जाकर बैठ गया । उसकी बाजी उल्टी पड़ चुकी थी।

उसकी गलत सोच ने उसे मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था। उसकी स्थिति तो डूब मरने वाली थी ।वह सोच

रहा था कि उसकी भूल की कोई माफी नहीं है। कोई माफी नहीं है।

द्वारा -डॉ.विभा कुमारिया शर्मा।

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