* हमारा भी मन दु:खता है * – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

 दिनेश जी ने कहा-‘तुमने राजू पर चौरी का इल्जाम लगाकर, चांद पर थूकने जैसा काम किया है जानकी! मैं जानता हूँ, राजू बहुत ईमानदार है,

मैं कभी कोई भी सामान उससे मंगवाता  हूँ, वह ईमानदारी से बचे हुए सारे पैसे मुझे वापिस कर देता है। वह गरीब है मगर चोर नहीं हो सकता।

मेरा मन कह रहा है, वह निर्दोष है। मेरे घर आने तक तो तुम इन्तजार करती, तुमने यह ठीक नहीं किया। ‘

‘आप तो शुरू से ही  उस पर इतना विश्वास करते हो, आप नहीं जानते ये लोग भोले बनकर पहले हमारा विश्वास जीतते हैं, और फिर बड़ी रकम देखकर चोरी कर लेते हैं।कल रात को शादी पार्टी से आने के बाद मैं अपने कंगन आलमारी में रखना भूल गई, मुझे अच्छे से याद है, मैंने अपने तकिये के नीचे रखे थे,

सोचा सुबह रख दूंगी।सुबह जूही और विराज का टिफिन बनाने में लग गई और उन्हें आलमारी में रखने का ध्यान नहीं रहा। जब १० बजे मैंने देखा तो कंगन वहाँ नहीं थे।इस घर में राजू के सिवा बाहर का कोई दूसरा व्यक्ति आया ही नहीं।फिर तुम्ही बताओ राजू के सिवा उसे कौन उठा सकता है?

‘ घर में दिनेश, जानकी, उनके बच्चे जूही और विराज तथा जानकी का भाई रौनक जो बारहवीं की पढ़ाई करता था, रह रहै थे। गाँव में अच्छा स्कूल न होने के कारण वह अपनी बहिन के यहाँ पढ़ने आया था। चार दिन बाद दीपावली की छुट्टी में रौनक ने कहा

‘दीदी मैं दौपहर में स्कूल से आने के बाद गॉंव चला जाऊँगा, मेरी पॉंच दिन की छुट्टी है।’ जानकी जी ने मिठाई, और रास्ते में खाने के लिए जो भोजन बनाया था, वह रखने के लिए रौनक का बेग खोला, तो उसे कपड़ो की तह ठीक से नहीं दिखी। सोचा, भाई ने जल्दी में रखे होंगे,

मैं उनकी स्त्री करके ठीक से जमा देती हूँ। उसने कपड़े बाहर निकाले तो बेग में उसे अपने कंगन नजर आए।उनका माथा चकरा गया । तो क्या मेरे भाई ने मेरे कंगन चुराए? उसने कंगन अपने पास रख लिए, रौनक को बहुत डाटा और कह दिया

अब तू इस घर में कभी मत आना तूने मेरा विश्वास तोड़ा है, रौनक ने मॉफी मांगी, मगर जानकी जी ने उसे माफ नहीं किया।जब दिनेश जी घर पर आए, तो उन्होंने सारा हाल उन्हें सुनाया और कहा- ‘आपने सही कहा था मैंने चांद पर थूककर बहुत बड़ी गलती की है।

मैं राजू से माॅफी मागूंगी।’  राजू ने कहा -‘मालकिन आप मॉफी न मांगे, मगर अब मैं आपके यहाँ काम नहीं कर पाऊँगा,गलत इल्जाम से हमारा भी मन दु:खता है। आप मुझे आप क्षमा करें।’ 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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