मित्रता – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

 ‘आप चिन्ता न करें आण्टी जी, मैं माला को कुछ नहीं होने दूॅंगी। आप हिम्मत रखिये सब ठीक होगा। कल उसका आपरेशन है, मैं ही करूँगी, मैंने उसके सारे टेस्ट करवा लिए है। सारा इन्तजाम भी कर लिया है।’ ‘पर बेटा माला के बापू को आने में वक्त लगेगा वे कल रात तक आ पाऐंगे।

आपरेशन में पैसा भी तो लगेगा।’ शोभा जी ने कहा।   ‘आण्टी जी आप उसकी भी चिन्ता न करें। माला मेरी प्यारी सखी है, उसकी जान बचाने से बढ़कर मेरे लिए कोई काम नहीं है। बस आप ईश्वर से प्रार्थना कीजिये, और कल रात १० बजे बाद उसे कुछ भी खाने पीने के लिए मत दीजिये।

कल सुबह ८ बजे उसे हॉस्पिटल में ले आइए और अपनी सारी चिन्ताएँ मुझपर छोड़ दीजिये।’ शोभा की ऑंखें नम हो गई थी, वह अपनी बेटी को लेकर घर आ गई। माला के लीवर में एक गठान हो गई थी और उसके कारण उसके पेट में भयंकर दर्द हो रहा था।

उसको ऐसी हालत में उसके ससुराल वाले उसे मायके में छोड़ गए थे। कृष्णा की दी दवाइयों से माला को कुछ राहत मिली और नींद आ गई, मगर शोभा जी को रात भर नींद नहीं आई वे सोच रही थी ,कि जिस कृष्णा की तरक्की को देखकर वे कांटों पर लौटती थी

,आज वही इस कठिन समय में उसकी बेटी की मदद कर रही है। कृष्णा और माला दोनों अच्छी मित्र थी। दोनों का घर पास -पास में था। दोनों एक साथ स्कूल जाती। एक दूसरे के सुख -दुःख की साथी थी। कृष्णा पढ़ने में बहुत होशियार थी। माला के पिता शिक्षक थे,

वे माला को पढ़ाते भी थे, इसके बावजूद उसके नंबर कम आते और कृष्णा हमेशा कक्षा में अव्वल आती थी। बारहवीं की परीक्षा के समय कृष्णा की माँ का देहांत हो गया। कृष्णा पर घर के काम काज की जिम्मेदारी आ गई। वह कई दिनों तक स्कूल नहीं जा पाई।

शोभा जी ने माला को मना किया कि वह अपनी कॉपियॉं उसे नहीं दे। मगर माला ने ऐसा नहीं किया वह कृष्णा की पूरी मदद करती थी। कृष्णा ने बारहवीं कक्षा में प्राविण्य सूचि में स्थान प्राप्त किया। आगे की पढ़ाई के लिए उसे स्कालरशिप मिल रही थी।

माला द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुई। कृष्णा ने पी, एमटी की परीक्षा दी और उसे सफलता भी मिली। उसने डॉक्टरी की पढ़ाई की और माला ने बी.ए.की परीक्षा उत्तीर्ण की। दोनों की दोस्ती बरकरार थी, फोन से दोनों का सम्पर्क बराबर बना रहता था। कृष्णा की उन्नति देखकर शोभा कांटों पर लौट रही थी।

माला की एक सम्पन्न परिवार में शादी हो गई. विवाह के पॉंच वर्ष बाद भी वह माँ नहीं बन पाई थी, इसलिए ससुराल वाले नाखुश थे।एक बार वह बिमार पढ़ गई, उसके लीवर मे कोई गठान हो गई थी, उसके ससुराल वाले उसे बुरा भला कहकर मायके छोड़ गए।

समय का खेल देखो, कृष्णा की उसी शहर के बड़े अस्पताल में बतौर सर्जन नियुक्ति हुई। आज वही शोभा जी को दिलासा दे रही थी। सोचते -सोचते उन्हें नींद लग गई दूसरे दिन माला का आपरेशन हुआ, बड़ा आपरेशन था, जो कृष्णा ने सफलतापूर्वक किया और माला की जान बचाई।

उसने आपरेशन का कोई पैसा नहीं लिया, आज पहली बार शोभा जी ने दिल से कृष्णा को आशीर्वाद दिया। उन्हें लग रहा था कि कृष्णा कि तरक्की देखकर उनका कांटों पर लौटना कितना गलत था।

प्रेषक
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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