दीवारों के मुंह भी होते हैं। – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi

“थोडा धीरे बोलो दीवारों के भी कान होते हैं, एक सेकेंड में बात इधर से उधर हो जायेगी, पहले काम पूरा हो जाएगा, हम तभी सबको बतायेंगे, रजनी ने अपने पति शोभित को समझाया।

ये सुनकर शोभित हंसने लगा, अरे! ये सिर्फ मुहावरा हैं, भला दीवारे हमारी बाते कैसे सुनेंगी? मान लो उसने सुन भी ली होगी तो दूसरों को कैसे बतायेगी ? दीवारों के कान होते होंगे पर मुंह तो नहीं होता है।”

“अब आप तो बच्चों की तरह कर रहे हैं, मै भला आपको कैसे समझाऊं? कोई भी राज की बात हमेशा धीरे ही कहनी चाहिए, आस-पास कोई भी सुन सकता है, रजनी थोडा खीझकर बोली।

सुबह हुई तो पूरे घर में कोहराम मचा हुआ था, शोभित की दादी, मां, पापा और बाकी दोनों भाईयों का परिवार भी आंगन में आ गया था, जैसे ही शोभित और रजनी कमरे से निकले, दादी ने दहाड़े मारकर रोना शुरू कर दिया, “शोभित मेरा सबसे लाडला पोता तू मुझे छोड़कर कहीं भी नहीं जायेगा,

ये बुढ़िया तेरे बिना कैसे रहेंगी? मानसी तू तो घर की बड़ी बहू है तुझ पर ज्यादा जिम्मेदारी है।” और दादी फूट-फूट कर रोने लगी।

शोभित को बडा आश्चर्य हो रहा था कि आखिर ऐसा क्या हो गया? उसने अपनी मां की ओर देखा तो मां ने उसे गुस्से में एक थप्पड़ रसीद दिया, ” नालायक क्या इसी दिन के लिए तुझे पाला था, तेरे पापा बीमार रहते हैं और तू हम सबको छोड़कर जा रहा है।”

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“मां, मै कही भी नहीं जा रहा हूं, ये आप लोगों को किसने और क्या कह दिया? मै तो यही पर हूं और मानसी भी यही पर रहेगी, शोभित खीझते हुए बोला।

“संतूरी तू इधर आना, रात को तूने बड़े भैया के कमरे से जो आवाजें सुनी उसे भैया को बताना।”

संतूरी घर की नौकरानी थी, जो रात को पूरा घर अच्छे से बंद करके सोती थी, रात को वो छत का दरवाजा बंद करने गई थी तो उसने सुना कि शोभित भैया कह रहे थे, अब हम ये घर छोड़कर बड़े घर में चले जायेंगे।”

“ओहहह!! संतूरी तुझे क्या जरूरत थी हमारे कमरे में कान लगाने की?” फिर बात को घुमा फिराकर बोल दिया, एक बार कहने से पहले हमसे बात तो कर लेती.

“दादी, मां, मै ये काम पूरा होने के बाद आपको बताने वाला था पर संतूरी की वजह से पहले ही बताना पड़ रहा है, ये घर अब छोटा पड़ता है, हम सबके बच्चे भी अब बड़े हो रहे हैं, उन्हें भी अपने कमरे चाहिए होंगे, नुक्कड़ वाले चौधरी काका अपनी हवेली बेच कर शहर जा रहे हैं, तो मै वहीं खरीदकर दादी को दीपावली पर उपहार देना चाहता था, ताकि हम सब उस बड़ी हवेली में आराम से रह सकें, पर संतूरी ने सारे राज को बता दिया।”

ये सुनकर सबके चेहरे पर खुशी छा गई, शोभित से मानसी बोली, “देखा मैंने कहा था ना दीवारों के भी कान होते हैं, शोभित भी संग में हंसने लगा, “सच में  दीवारों के कान क्या मुंह भी होते हैं।

अर्चना खंडेलवाल

#दीवारो के कान होते हैं।

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