“देखो बेटा बाहर निकलो तो आंखों को झुकने नही देना।
किसी से बात करो तो अपने कॉन्फिडेंस में कमी मत आने देना।
पर हा याद रहे बेवजह किसी से उलझना नही।
और ज्यादा किसी से हस कर बात नहीं करना।”
ओह मम्मी मैं कोई छोटी बच्ची हूं।
सब समझती हु इस जमाने को ,आपने चेहरों को पढ़ना जो सिखा दिया है ।
ऐसे ही लोगो की बातो में नही आने वाली और बैग पीछे टाका पर्स हाथ में लिया।
और फुर्ती से गेट के पास पहुंच गई।
मम्मी ने फिर टोका” तुम तो वही छोटी सी बच्ची ही निकली।
ना भगवान के आगे शीश झुकाया और ना ही दादा साहब ,दादी साहब का आशीर्वाद लिया ।
ओह हो सॉरी मम्मा और शूज उतार कर पहले मंदिर में गई और फिर दादा साहब,दादी साहब से आशीर्वाद लिया।
मम्मी दही की कटोरी और गुड़ लेकर मंदिर के गेट पर खड़ी थीं
मुंह में देते हुए बोली ” बेटा मन की बात शेयर करने से कोई छोटा नही हो जाता इसीलिए कोई भी छोटी से छोटी बात हो अपनी मम्मी को बताना ना भूलना।
और सुन अपनी लिस्ट के अनुसार समान रख लिया है ना।
वो तेरे पसंद का आचार मैने थैली में अच्छी तरह पैक कर दिया है जाते ही उसे निकाल लेना वर्ना कपड़े खराब कर देगा।
ऑफ हो मम्मी आप ना मेरी इतनी भी चिंता मत किया करो मैं अब बड़ी हो गई हु।
कहते हुए कन्नू शूज के लेसेस बांधने लगी।
मम्मी को आखों की कोर भीग चुकी थीं
कन्नू बोली ” मेरी मम्मा इतनी कमजोर तो नही हैं ।”
मम्मी बोली हस कर बोली” हा,चल अब लेट हो जाएंगी।”
बाय बाय बोलती हुई केब में बैठ गई।
हाथ जब तक हिलता रहा जब तक मम्मी आखों से ओझल नहीं हुई।
और ओझल होते ही कोर तो उसकी भी भीग जाती थी।
नसीहतों का पिटारा लेकर कन्नु हॉस्टल पहुंच गई।
अपने कमरे में वही अकेलेपन का पहरा और फिर सामने
मम्मी का चेहरा।
कन्नु तुरंत उठी और मुंह धोकर पढ़ने बैठ गई।
उसे पता था मम्मी ने घर के एक एक सदस्य से लड़कर
मुझे यहां पढ़ने भेजा है।
ताऊ जी के ऊंचे ओहदे पर होने के कारण ताई जी अभिमान वंश हमेशा तंज कसती रहती थी।
” देखना मेरे वीर को तो मैं प्राइवेट सीट से भी MBBS
करवा दूंगी।”
और छवि को मोदी स्कूल में डाला ही इसीलिए है की जब भी बाहर निकलेगी उसका रुतबा ही कुछ और होंगा।
कन्नू की मम्मी मैं तो कहती हु तुम कन्नू की शादी समय रहते ही कर देना।
सिर से बोझ हटेगा।
मम्मी तिलमिला कर रह जाती पर मजाल है अपनी जुबां से दो अपशब्द भी निकल जाए।
कन्नू के पापा भी एक छोटी सी दुकान पर ही बैठते थे।
पर मम्मी ने रात दिन एक कर लोगो के कपड़े सिले और
कन्नू को एक साधारण हॉस्टल में भेजा।
सिर्फ ये सोच कर की घर की किच किच से दूर रह कर
पढ़ाई पर ध्यान लग जायेगा।
कन्नू ने ग्रेजुएशन के साथ ही प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी भी करनी शुरू कर दी थी।
रोज फोन पर मम्मी से सबके हाल चाल पूछ लेती थी।
कन्नू ने अपनी मम्मी की नसीहतो को अपने तकिए के सिरहाने रखती थी।
और संघर्ष को दिल से लगा कर ।
तभी तो प्रथम राउंड में ही RAS क्लियर कर गई।
जब प्रीति (कन्नू की फ्रेंड) ने फोन पर रिजल्ट बताया।
तो मम्मी तो खुशी के मारे रो पड़ी।
दौड़ कर भगवान के सामने बैठ गई और बोली धन्यवाद
भगवान आज स्वाभिमान को अभिमान के आगे खड़ा कर दिया।
ताई,ताऊ चाचा,चाची सभी स्वजन बधाई देने पहुंचे।
कन्नू ने सबके चरण छुए ।
ताई जी बोली ” वाह तुमने तो इतने से रुपए में सफलता हासिल कर ली।
इसमें तुम्हारी मम्मी ,पापा को तो जोर नही आया।
एक हम है लाखो खर्च कर दिए फिर भी अभी तक कोई
रिजल्ट नही है।”
कन्नू ताई जी के मन को भांपते हुए बोली ” ताई जी मुझे तो जो भी मिला है आपके आशीर्वाद स्वरूप ही मिला है।”
कन्नू की बात सुन ताई जी भी खुश हो गई और बोली
” सच बेटा आज मेरा अभिमान हार गया और तुम्हारी मम्मी का स्वाभिमान जीत गया।”
मैं सोचा करती थी मेरे पास इतनी धन दौलत है कुछ भी खरीद सकती हु।
पर नही किस्मत तो अच्छे कर्मों से ही खरीदी जाती है।”
और दोनो हाथ ऊपर कर बोली ” ऊपर वाले तेरी माया कही धूप कही छाया।”
तभी ताऊ जी मिठाई ले आए और जोर से बोले ” आज सबसे पहले मेरी कन्नू बिटिया का मुंह मै मीठा करवाऊंगा।”
घर का वातावरण खुशनुमा हो गया था।
आज तो पराया ओर तुच्छ समझते थे वह भी करीब आ
गए।
मम्मी का संघर्ष , सहनशीलता और स्वाभिमान तीनों को
कन्नू की मेहनत और समझदारी ने विजेता की श्रेणी में खड़ा कर दिया था।
दीपा माथुर