किरायेदार – अभिलाषा कक्कड़  : Moral Stories in Hindi

रश्मि सुबह दाना छत पर डालने गई तो उसे सामने की छत पर बने दो कमरों के मकान में हलचल सी महसूस हुई जो कि काफ़ी दिनों से ख़ाली था । घर के सामने पाँच लोगों का परिवार रहता था । मुखिया कांशीराम छोटी सी किराने की दुकान से अपने परिवार का भरण पोषण करता था ।

छत पर दो कमरों का किराये के लिए मकान बनाया था जो कि गृहस्थी की गाड़ी खींचने में बहुत मददगार था ।  कई लोग आये और नापसंद करके चले गये । घर में बहुत कुछ सहूलियत की व्यवस्था नहीं थी और उसे ठीक करवाने की कांशीराम की हिम्मत नहीं थी ।

दाना डालते डालते रश्मि ख़ुश हुई चलो सामने रौनक़ तो हुई । रश्मि और उसकी तीन बेटियाँ वसुधा काजल और सुहाना भी कालेज और स्कूल से वापिस आकर सर्दियों में ज़्यादा वक़्त छत पर माँ के साथ बैठी रहती थी । अब धीरे-धीरे रश्मि की नज़र रह रहकर सामने टिकने लगी । रेडियो चलने की आवाज़ आ रही थी लेकिन परिवार के नाम पर सूनापन ही दिखाई दे रहा था ।

तभी एक तीस बत्तीस साल का नौजवान बाहर आकर रसोई में गया । उसने रश्मि को अपनी ओर देखते हुए देखा तो रश्मि सपकपा सी गई और जल्दी से नीचे उतर आई ।

दोपहर में जब सामने घर की बहूरानी सुषमा बाहर आई तो रश्मि ने आवाज़ लगाकर उसे बुलाया.

रश्मि – ऐ सुषमा ज़रा इधर तो आ कुछ पूछना है तुझसे !!

आवाज़ सुनते ही सुषमा आ गई और बोली क्या बात है आंटी ??

रश्मि- एक बात तो बता ये तुम लोगों ने जो ये जवान आदमी किराए पर बिठा दिया है.. हमारा तो उपर आना जाना मुश्किल हो जायेगा । पता नहीं था तुम्हारे बाऊजी को की सामने लड़कियों वाला घर है । ज़रा सा भी नहीं सोचा!!

सुषमा भी अपने बड़बोले अन्दाज़ में बड़ा बड़ा मुँह खोलकर बोलने लगी…नहीं आंटीजी वो क्या है ना कोई किरायेदार मिल ही नहीं रहा था और घर भी कितने समय से ख़ाली पड़ा था । पैसों की बहुत दिक़्क़त हो रही थी,अब अकेले बाऊजी की दुकान से तो घर चल नहीं सकता ना !

दुकान के उपर बाऊजी ने इनकी गिफ़्ट शाप के लिए दुकान डलवाई , अब उसी में इतना खर्चा हो गया माल डलवाने के लिए पैसा ही नहीं । अब गिफ़्ट शाप खोलनी है कोई गिफ़्ट में तो गिफ़्ट दे नहीं देगा रोकड़ा चाहिए और वो ससुर जी के पास है नहीं… अब लड़कियों वाला घर तो हमारा भी है ।

मेरी ननद शालू दिखने में कितनी अच्छी है और मैं!! एक साल ही तो हुआ है मेरे ब्याह को आंटी मैं क्या कम सुन्दर हूँ !! बस ख़ुद सही रहो मजाल है कोई देख जाये तुम्हारी ओर …

रश्मि अन्दर से झल्लाई सही कहते हैं लोग इसे मंदबुद्धि.. एक बात पूछो पुरी रामायण सुना देती हैं ।

फिर वापिस अपने सवाल पर आ गई.. तू क्या बोले जा रही है । जो पूछ रही थी वो तो बताया नहीं, रामायण पुरी सुना दी । क्या पूछना चाह रही थी आंटी … खी खी की हंसी निकालते हुए सुषमा बोली ।

रश्मि-अकेला है या कोई परिवार भी है इसका मैं ये पूछना चाह रही थी । तेरे घर की हालत का मुझे ही नहीं सारे मोहल्ले को पता है ।

सुषमा – बाऊजी बता रहे थे शादीशुदा है । कह रहा था जल्दी अपनी घरवाली को ले आऊँगा । यशपाल नाम है इसका सरकारी अस्पताल में खून जाँच विभाग में नौकरी करता है । सुबह का काम पर गया शाम को लौटेगा, आप लोगों को तो आंटी नज़र भी नहीं आयेगा ।दिखने में तो शरीफ़ सा ही लग रहा है बाक़ी कोई शिकायत देगा तो उठा देंगे , कौन सी बड़ी बात है ।

रश्मि- चल ठीक है । वो देख तेरी सासु माँ बुला रही है ।

हे राम ! मैं तो दूध गैस पर छोड़ आई । आज नहीं छोड़ेगी अम्मा मुझे ,कहकर भागी ।

धीरे-धीरे समय बीतता गया । यशपाल की मौजूदगी मोहल्ले में ना के बराबर रही । वो कब आता है कब जाता है किसी को ज़्यादा सरोकार नहीं रहा और अगर गली में दिखाई भी पड़ता तो नज़र नीचे रखकर ही चलता । रश्मि या उसकी बेटियों में से कोई छत पर होती तो वो कमरे से बाहर ही नहीं निकलता ।

कुल मिलाकर  उसकी आसपास के लोगों में एक अच्छी छवि बन गई ।देखते देखते साल भी बीतने को आया वो छुट्टी पर चला जाता और कई बार कुछ ज़्यादा समय के बाद आता । रश्मि के अलावा ज़्यादा उस पर किसी का ध्यान नहीं गया ।

फिर एक दिन रश्मि दोपहर में छत पर कपड़े सुखाने गई तो उसे सामने के घर में एक दुबली पतली सी कमर पर लम्बी सी चोटी लहराती लाल रंग का सूट पहने एक महिला कभी रसोई से कमरे तो कभी कमरे से दूसरे कमरे में घूमती नज़र आई ।उसे देख कर रश्मि के चेहरे पर मुस्कान आई

और मन ही मन में बोली वाह!! यशपाल लगता है बीवी ले आया अपनी.. चलो अच्छा सूने घर में रौनक़ आ जायेगी । घर की लक्ष्मी का तो स्वरूप ही ऐसा है । सोचते सोचते अपना काम ख़त्म कर नीचे आ गई ।

सर्दियों की गुनगुनी धूप में अक्सर रश्मि अपना काम ख़त्म कर थोड़ी देर के लिए छत पर आकर बैठ जाती । पहले तो ज़्यादा कभी ध्यान गया नहीं लेकिन अब ना चाहते हुए भी नज़र बार बार पड़ जाती । यशपाल की पत्नी उस समय काम में ही व्यस्त दिखाई दी ।

पति के दोपहर के भोजन के आने से पहले शायद सारे काम निपटा लेना चाहती हो । ख़ैर ज़्यादा देखना सही नहीं यह सोचते ही रश्मि अपनी शाल चेहरे पर गिराकर सो गई ।

  फिर थोड़ी देर बाद उठी तो देखा मुँडेर के ईंटों वाले झरोखों से अपने आँगन में बैठी वो उसे देख रही थी । दोनों की नज़रें मिली तो वो मुसकुराने लगी और उठकर मुँडेर पर आ खड़ी हुई । उसके आते रश्मि भी अपनी छोटी सी मुँडेर पर आ खड़ी हुई है ।

रश्मि के पास आते ही उसने दोनों हाथ जोड़कर रश्मि को नमस्ते की , रश्मि ने भी प्यार से नमस्ते का जवाब देते हुए कहा ख़ुश रहो ।

यशपाल की पत्नी हो ?? जी उसने सिर हिलाकर जवाब दिया । बहुत ख़ुशी हुई तुम्हें देखकर अब ताला की बजाय रौनक़ नज़र आयेंगी । दोनों हंस पड़ी इस बात पर ..

रश्मि – घर तो औरत से ही होता है लेकिन ये मर्द लोग इस बात को समझने में बहुत समय लगा देते हैं ।

वो सुनकर मुस्कुराये जा रही थी । थोड़ी साँवली लेकिन नाक नक़्शा बहुत सुंदर रश्मि की तो उससे नज़र ही नहीं हट रही थी ।

क्या नाम है बेटा तुम्हारा ?? जी विद्या !! वो बोली

वाह बहुत सुंदर नाम है । साक्षात सरस्वती की मूरत सामने आ गई ।

विद्या – बस नाम की ही विद्या हूँ । पढ़ने में थोड़ी कम रह गई मैं !

रश्मि – अरे कोई बात नहीं बेटा , गृहणी तो बिन पढ़े भी बहुत ज्ञान रखती हैं और उस जैसा ज्ञान ये किताबें भी नहीं सीखा सकती ।

तभी उसका पति दोपहर का खाना खाने आ गया । अच्छा आंटी मैं खाने लगा दूँ इनके लिए .. फिर एकदम से रूक कर बोलीं मैं आपको आंटी बुला सकती हूँ ??

हाँ हाँ बेटा बिल्कुल बुला सकती हो .. जाओ पति को खाना खिलाओ । हमारी बातचीत तो अब होती रहेगी ।

रश्मि और विद्या के बीच अब कभी कभार बात होने लगी। विद्या ज़्यादातर अपने घर के काम में व्यस्त रहती उसके पास कोई बाई नहीं थी । इसलिए बातें करने की उसे कम ही फ़ुरसत मिलती ।दोनों अपनी अपनी मुँडेर से ही मिलती ।

बीच में गली थी इसलिए निजी ज़िंदगी के बारे में कभी सवाल जवाब हुआ ही नहीं । विद्या नई थी तो रोज़मर्रा की ज़िंदगी की जानकारी ले लेती जैसे सब्ज़ी वाला किस समय कूड़े वाला किस दिन आता है । फ़लाँ दुकान कहाँ है फ़लाँ रास्ता किधर है वग़ैरह वग़ैरह …. 

फिर धीरे-धीरे मौसम बदलने लगा तो रश्मि का भी छत पर जाना बंद हो गया ।

फिर एक रात दस बजे विद्या ने रश्मि का दरवाज़ा खटखटाया । खोला तो थोड़ी परेशान लग रही थी । पूछने पर उसने बताया कि उसके पति को बुख़ार लग रहा है । घर में थर्मामीटर नहीं है । नीचे सुषमा भाभी से माँगने गई तो नहीं मिला तो आपके घर आ गई ।

सुनते ही काजल ने मज़ाक़ के मूड में कहा… उनके घर में तो कुछ होता भी नहीं और अगर होगा तो वो देगी भी नहीं । सुनते ही तीनों बहनें हंसने लगीं ।रश्मि ने डाँट लगाई .. चुप रहो और जाकर दीदी को थर्मामीटर ला कर दो ।

जाते हुए उसे रोक कर दवाई भी दी यह कहकर कि अगर ज़्यादा बुख़ार नहीं है तो इससे आराम आ जायेगा फिर सुबह जाकर डाक्टर को दिखा आना । रश्मि के इस प्यार और अपनेपन ने विद्या  का दिल जीत लिया । उसे रश्मि अपनी माँ की तरह लगने लगी ।

समय बीतता गया, विद्या गली में आते जाते सबसे बात करने लगी । लेकिन रश्मि को वो सबसे अपना करीबी समझने लगी। फिर एक दोपहर वो रश्मि के पास आई और कहने लगी .. आंटीजी मुझे कुछ दिन के लिए आपकी सिलाई की मशीन मिल सकती है ??

रश्मि- हाँ हाँ बेटा क्यूँ नहीं .. तुम्हें सिलना आता है , क्या सिलना है ??

विद्या – हाँ मुझे सिलाई आती है । नेहा के लिए फ़्राक बनाऊँगी ।

रश्मि ने हैरानी से विद्या की ओर देखते हुए पूछा – नेहा !! कौन नेहा ???

विद्या – मेरी बेटी है ।

रश्मि- तुम्हारी बेटी !! कहाँ है , किसके पास है , कितनी उम्र की है ?? रश्मि अपनी जिज्ञासा को रोक नहीं पाई और एक साथ सब जानने की इच्छुक हो उठी । तीनों लड़कियाँ भी एक टक होकर विद्या की ओर देखने लगी जैसे सभी इस रहस्य को जानना चाहती हो । विद्या कहकर चुप हो गई ।

होंठ उसके सिल गये । आँखें उसने ज़मीन पर गढ़ा रखी थी जैसे किसी भँवर में फँस गई हो। उसके चेहरे पर परेशानी की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थी ।

उसे उलझन में देख रश्मि ने स्थिति सँभाली.. कोई बात नहीं बेटा नहीं बताना चाहती तो मत बताओ सबकी निजी ज़िंदगी में कुछ ना कुछ ऐसा रहता ही है जो सबसे नहीं बाँटा जा सकता । तुम मशीन ले जाओ कहकर उसने सुहाना को मशीन लाने को कहा ।

   पाँच मिनट चुप रहकर विद्या ने अपनी चुप्पी तोड़ी । दिल पर बोझ बहुत है आंटी.. मन बहुत चाहता है कि उतार फेंकूँ !! फिर डरती हूँ कि कहीं फिर से कोई मुसीबत ना आन खड़ी हो कहकर वो लड़कियों की तरफ़ देखने लगी । उसका इशारा समझते ही रश्मि ने कहा तुम बेफ़िक्र रहो ,

इस घर से बाहर तुम्हारी बात नहीं जायेगी । तुम अपने मन की बात यहाँ खुलकर कह सकती हो।

अब तक विद्या का थोड़ा सा गला भी रूँध गया था । धीरे-धीरे उसने कहना शुरू किया ।

यशपाल के पापा और मेरे पापा पुराने दोस्त थे । किसी रिश्तेदार की शादी के समारोह में उनका रायबरेली आना हुआ तो हमारे घर भी आये । एक रात वहीं रूके, पुरा समय उनकी नज़र मुझ पर ही रही ।काफ़ी खुश रहे मेरी हर बात से ,उन्हें अपने बेटे यशपाल के लिए ऐसी ही घरेलू लड़की चाहिए थी ।

हम भी तीन बहनें हैं भाई नहीं है हमारा .. बड़ी बहन की शादी हो गई थी छोटी बहन कालेज जाने की तैयारी में थी । पापा भी मेरे लिए लड़का देख रहे थे । ऐसे में ख़ुद रिश्ता घर चलकर आया तो सोचना बनता था । यशपाल कानपुर में सरकारी अस्पताल में लैब में काम करते थे । एक बड़ी बहन थी

जिसकी लखनऊ में सम्पन्न परिवार में शादी हो चुकी थी । छह महीने के अन्दर अन्दर देखना दिखाना सगाई ब्याह सब हो गया । शुरू के छह महीने तो पता ना चले । इनके पापा की प्रिंटिंग प्रेस थी । घर का सारा खर्चा वहीं चलाते थे ।

इन्होंने कभी घर की तरफ़ कोई ज़िम्मेदारी ना रखी । पैसों के मामले बस अपनी इच्छाओं पर ही ज़्यादा पैसा इनका खर्च होता । मेरी सासु माँ के कहने पर ही मुझे कभी-कभार बाहर ले जाते वर्ना ज़्यादा कभी मेरी ओर कोई फ़र्ज़ निभाया ही नहीं ।

 सब ठीक चल रहा था कि अचानक एक दिन इनके पापा सुबह सब्ज़ियाँ लेकर घर आये और कहने लगे तबीयत ठीक नहीं लग रही । जब पसीना बहुत निकलने लगा तो जल्दी से अस्पताल ले जाने की तैयारी करने लगे पर वो तो वहीं बाहर पलंग पर लेटे लेटे ही चले गये ।

घर में एक दम से सन्नाटा छा गया । इनके पापा परिवार को बहुत जोड़ के रखते थे । ये भी उन्हीं की सुनते थे ।

अभी कुछ दिन बीते भी नहीं थे कि दरवाज़े पर एक के बाद एक क़र्ज़ा माँगने वालों का ताँता लग गया जिसकी माँ बेटे को तनिक सी भी भनक नहीं थी । प्रिंटिंग प्रेस घाटे में जा रही थी बेटी की शादी अमीर घराना अपनी और उनकी साख रखने के लिए लाखों का क़र्ज़ा ले लिया था ।

माँ बेटे दोनों की ज़िंदगी हराम हो गई । हर दिन कोई ना कोई टपक पड़ता हैं । अपमान गाली-गलौज आस पड़ोस में इज़्ज़त का तमाशा आये दिन का काम हो गया । बेटी ने पैसों की मदद करने से साफ़ इनकार कर दिया ।

क़र्ज़ा उतारने के हर संभव प्रयास में माँ के मेरे गहने , इनका मोटरसाइकिल यहाँ तक की प्रिंटिंग प्रेस भी बेच दी ।

यशपाल बहुत चिड़चिड़े से हो गये । कुछ ओर रास्ता दिखाई ना दिया तो मुझ पर अपने मायके से पैसे लाने का दबाव डालने लगे । मेरे ना करने पर मुझ पर चिल्लाना मारना हर रोज़ की बात हो गई । ख़ुशी हंसी नाम की हर बात उस घर में रूठ चुकी थी ।

ऐसे में मुझे पता चला कि मैं माँ बनने वाली हूँ । माँ बेटे दोनों ने कोई ख़ुशी नहीं दिखाई । यशपाल एक कंजूस ग़ुस्सैल चिड़चिड़ा इन्सान बन चुका था । उसे अपनी मोटरसाइकिल बहुत प्यारी थी । उसके बिकने का वो सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाया ।

मेरे पापा ने कहा कि मैं कहीं से पैसों का इन्तज़ाम कर देता हूँ लेकिन मैंने कहा नहीं ऐसे तो इनकी आदत बन जायेगी ।

फिर एक दिन काम पर किसी मरीज़ के रिश्तेदार से इनका झगड़ा हुआ । ग़ुस्सा भीतर का भी कभी-कभी कहाँ का कहाँ निकलता है । जिससे मारपीट की वो किसी बड़े नेता का जानकर निकला । नौकरी से सस्पेंड हो गये और जान से मारने की धमकी के डर ने इनसे शहर छुड़वा दिया ।

अपनी ओर आता ख़तरा देख ये रात में ही जान बचाकर अपनी बहन के पास लखनऊ भाग गये । जीजा ने थाने में पैसे दे दिवाकर मामला रफ़ा दफ़ा कराया । अब औरों के साथ साथ जीजा का भी क़र्ज़ा जुड़ गया ।

बेटा घर है नहीं बहू गर्भवती, सासु माँ ने ज़िम्मेदारी से हाथ छुड़ाने के लिए मुझे मेरे पापा के यहाँ भेज दिया । तीन माह की मैं गर्भवती अपने पापा के घर चली आई । छह महीने के बाद मैंने बेटी को जन्म दिया । इनकी भी मेरठ में पुनः नियुक्ति हो गई ।

देखते देखते साल बीत गया । दोनों माँ बेटे में से ना मुझे कोई लेने आया ना बच्ची को देखने आया । बेटा होता तो शायद चले आते । मैं जब भी इन्हें फ़ोन करती तो कभी नौकरी नहीं घर नहीं का बहाना करके मुझे लिवाने से मना कर देते। सासु माँ ने साफ़ मना कर दिया कि ना मेरे पास पैसे हैं

ना हिम्मत है यहाँ मत आना । नेहा एक साल की हो गई । इन्हें भी एक साल हो गया यहाँ रहते हुए । बेटी को देखने का इनका कभी मन नहीं हुआ ।

मेरे पापा लखनऊ इनके बहन और जीजा से मेरी ख़ुशी की भीख माँगने गये । जीजा की बात टालने की हिम्मत नहीं थी । उनके बीच बचाव से मुझे रखने को तैयार तो हो गये लेकिन नेहा अभी पापा के घर ही रहेगी इस शर्त पर …. मेरे पापा ने कहा तू जा बेटा अपना घर बसा ।

एक बार वहाँ तेरी जगह बन गई तो नेहा को ले जाना । जगह तो क्या बनानी मैं तो इस किराए के घर को भी अपना नहीं कह सकती । हर चीज़ पर नियंत्रण यहाँ तक कि सब्ज़ी के पैसों का भी हिसाब माँगता है । मारना हाथ उठाना उसके लिए आम सी बात है । हम मिडिल क्लास घरों की बेटियाँ एडजसटमेट के नाम पर आंटी सहती ही रहती है ..

अपने माता-पिता को दुख ना पहुँचे इस ख़्याल से दुख को ही तक़दीर मान लेती हैं । पता नहीं कितनी ऐसी लड़कियाँ है जो पति की प्रताड़नाएं सहती है उनमें से मैं भी एक हूँ ।

नौ महीने हो गये मुझे यहाँ रहते नेहा का ज़िक्र भी नहीं करने देते । मेरी मम्मी भी बहुत बीमार रहती हैं । बहन होस्टल में रहने चली गई । पता नहीं कैसे दोनों बूढ़े उस नन्ही सी जान को सँभालते होंगे ।

बच्चा मुफ़्त में पल रहा है । बाप का फ़र्ज़ निभाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ रही । बेटी का चेहरा भी नहीं देखा और ना ही देखने की इच्छा… 

मेरे पापा दो हफ़्ते बाद मेरठ किसी काम से आ रहे हैं । नेहा को इस शर्त पर आने की अनुमति दी कि वो वापिस नाना के घर जायेगी । अभी वो उसे रखने की स्तिथि में नहीं है ।जब तक जीजा का क़र्ज़ा नहीं उतर जाता तब तक नेहा वहीं रहेगी ।तीन महीने बाद वो दो साल की हो जायेगी ।

मेरे पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं ।यहाँ तक की उसकी फ़्राक का नया कपड़ा लाने का भी पैसा नहीं दिया । मैं अपने पुराने सूट मे से उसका ड्रेस बनाऊँगी । कहते कहते विद्या फूट फूट कर रो पड़ी ….

रश्मि ने सारी कहानी सुनकर एक बड़ी सी साँस ली। बेटियाँ तीनों अवाक सी देख रही थी । यकीनन ही उन्हें यक़ीन नहीं आ रहा था कि दिखने में जो इन्सान इतना सीधा लग रहा था वो अन्दर से इतना क्रूर भी हो सकता है ।

रोना बंद करो विद्या ! कहकर रश्मि ने वसुधा को इक गिलास पानी लाने को कहा और साथ में चाय बनाने को कहा । तुम्हारी कहानी में वाक़ई दर्द है । ससुराल वाले या पति अच्छा नहीं है मारपीट लड़ाई झगड़ा ऐसी कहानी हर चौथे घर में देखने को मिल जायेगी ।

यह ना रूका और ना रूकेगा । पति चाहे कोई कितना भी बुरा हो लेकिन पिता वो हमेशा अच्छा ही देखा है । अपने बच्चे के साथ ऐसा करते किसी को नहीं देखा । एक दिहाड़ी का मज़दूर भी ख़ुद कम खा लेगा लेकिन अपने बच्चे का पेट भरकर ही उसे सुलायेगा ।

तेरा पति कुछ अलग ही मिट्टी का इन्सान है । विद्या ने भीगी आँखों से रश्मि की ओर आँख उठाकर देखा … सही कह रही हूँ बेटा मैं, रश्मि ने उसकी नज़रों का जवाब देते हुए कहा । अगर तुम ऐसा सोच रही हो कि कल को जीजा का क़र्ज़ा ख़त्म होते ही बेटी को घर ले आयेगा

तो मैं तुम्हें बता दूँ ऐसा कुछ नहीं होने वाला !! बच्चा बड़ा होगा तो खर्चे भी तो बढ़ेंगे । ये लालच का कीड़ा फैलता ही जायेगा । और अगर तुम ऐसा सोचती हो कि कोई फ़रिश्ता आकर तुम्हारी मदद करेगा या फिर यह बदल जायेगा । यह भी जल्दी मुमकिन नहीं ।ज़िम्मेदारियों से भागने का सिलसिला चलता रहेगा ।

बेशर्मी ढीठता से किसी किसी को ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता । तुमने उसके हाथ में जादू की छड़ी दे दी है, जानतीं हो वो क्या है तुम्हारा डर!! तुम्हारे मम्मी पापा को कोई तकलीफ़ ना हो तुम सहती रहोगी और यहाँ तुम्हें ऐसे दर्द मिलते रहेंगे ।

और कल को अगर बड़ी होकर नेहा घर आती है तो तुम किस हक़ से कहोगी कि ये ग़लत है ऐसा मत करो । क्योंकि तुमने तो उसे अपनी परवरिश संस्कार दिये ही नहीं । तुम्हारे माता-पिता को अलग भला बुरा कहेगा कि कुछ सिखाया नहीं । उनका त्याग तपस्या का कोई मोल ही ना रहेगा ।

जो माँ सिखा सकती है वो कोई नहीं सिखा सकता ।इससे पहले की तुम फिर से माँ बनो किसी तरह अपनी बेटी को घर ले आओ। कैसे लाना है इसका रास्ता भी बेटा तुम्हें ही खोजना होगा । पहले बेटी के लिए डटो फिर अपने लिए खड़ी होना।

विद्या के ह्रदय में रश्मि की बातें एक रोशनी की तरह उतर रही थी । उसे आजतक किसी ने ऐसी शिक्षा नहीं दी थी । वो मशीन लेकर घर आ गई । काफ़ी देर तक बिस्तर पर लेटी छत की तरफ़ देखती रही । आज कहीं ना कहीं रश्मि की बातों ने उसे अंदर तक झिंझोड़ा था ।

माना की यशपाल की संवेदना सोईं हुई है । लेकिन उसने भी पिता के ह्रदय में बेटी के लिए प्रेम जगाने के लिए कौन से भरसक प्रयास किए । कितने ही अंतरंग के क्षण पति पत्नी के बीच ऐसे आये जब वो उसके मर्म को छू सकती थी ।

बेटी की मासूम छवि को उसके ह्रदय में बसा कर वात्सल्य की अनुभूति करा सकती थी । लेकिन उसने भी ऐसा कहाँ कुछ किया । बरसो बाद मिले दाम्पत्य सुख को ही सम्भालती रही । आज अपराध बोध की भावना में गिरकर वो फूट फूट कर रोने लगी ।

फिर जल्दी से उठी मशीन लेकर बैठ गई । अपने एक चमकीले  पुराने से सूट से बेटी के लिए ड्रेस बनाने लगी और दो घंटे बाद एक सुन्दर सी फ़्राक लेकर रश्मि को दिखाने गई । फ़्राक देख कर रश्मि दंग रह गई । एक पुराने कपड़े को इतना सुन्दर रूप एक ग़ज़ब की कलाकारी और प्रतिभा का साक्षात प्रमाण था ।

रश्मि ने विद्या की तारीफ़ करते हुए कहा.. इसमें कोई शक नहीं विद्या कि तुम एक बहुत अच्छी टेलर हो ।तुम्हें कपड़े सिलने का काम शुरू कर देना चाहिए ।सिलाई का काम तुम्हें आत्मविश्वास के साथ साथ स्वावलंबी भी बनायेगा । ये लो पहला रोज़गार तुम्हें मैं देती हूँ । आज ही ख़रीद कर लाई हूँ मैं यह कपड़ा .. तुम बनाओ इसे मेरा सूट,काम अच्छा रहा तो दस लोगों को बताऊँगी ।

विद्या हैरानी से रश्मि की ओर देख रही थी । उसे यक़ीन नहीं आ रहा था कि उसे तारीफ़ में ऐसा तोहफ़ा मिलेगा ।

विद्या सिलाई के काम में जूट गई । रश्मि के शानदार सूट सिलने के बाद उसके पास काम का भंडार लग गया ।

फिर दो हफ़्ते बीत गये । विद्या के पापा को आये दो दिन हो चुके थे । रश्मि गली में बाहर निकली तो उसे विद्या के पापा को बेग कंधे पर लटकाए अकेले जाते हुए देखा । रश्मि देख ही रही थी कि विद्या गोद में नेहा को उठाये घर के अन्दर चली आई ।

चेहरे से ख़ुशी की बारिश टपक रही थी । बच्ची में उसकी ममता को जैसे सारी कायनात दिखाई दे रही थी ।रश्मि भी उस करिश्मे को हैरानी से देख रही थी और जानने के लिए उत्सुक थी कि यह चमत्कार हुआ कैसे !!

विद्या ने अपनी ख़ुशी पर नियन्त्रण रख बताना शुरू किया ..पापा आये खाना खाया और अपने काम से निकल गये । नेहा यह जानती भी नहीं थी कि मैं उसकी माँ हूँ फिर भी यह नन्ही सी जान सारा समय मुझसे चिपकी रही । उसकी मुस्कान आँखें भोलापन जैसे हर समय मुझसे मुझे माँग रही हो ।

यशपाल ने पुरा समय नेहा से दूरी बना कर रखी । शायद डर था कि कहीं बच्ची के मोह में ना पड़ जाये । ये काम के लिए निकल चुके थे । पापा वापिस आये तो जाने की तैयारी करने लगे । मुझसे रास्ते के लिए नेहा के लिए कुछ नाश्ता बनाने के लिए कहा । मैं नेहा को गोद में लिए बैठी रही ।

पापा हैरानी से मेरी तरफ़ देख रहे थे । मैंने कहा पापा नेहा वापिस नहीं जायेगी वो यही रहेगी अपने घर अपने माता-पिता के पास … लेकिन बेटा यशपाल ??  पापा का डर बोला ।

अंजाम जो भी हो पापा मैंने फ़ैसला ले लिया । मेरी दृढ़ता ने मेरे पापा के विश्वास को बल दिया । कहने लगे लेकिन इसके कपड़े तो मैं लाया नहीं । बाज़ार से ख़रीद लाऊँ ?? मैंने कहा कपड़े मैं बना लूँगी बस मुझे ख़रीद कर एक सिलाई की मशीन दे जाइये ।पापा बाज़ार गये और मशीन ख़रीद लायें । रश्मि ने सब सुनते विद्या को गले लगा लिया और बेटी के लौटने की हार्दिक बधाई भी दी ।

कुछ दिनों के बाद विद्या ने बताया सब धीरे-धीरे ठीक हो रहा है । यशपाल ने कई दिन तक उससे बात नहीं की लेकिन वो भी मस्त रही अपनी सिलाई और बेटी में , ख़ुद को यूँ नज़रअंदाज़ देख वो अपने आपको बदलने लगा, सब शुभ संकेत नज़र आ रहे हैं ।

फिर विद्या ने बताया कि उसे कुछ लड़कियाँ भी मिल गई है जो सिलाई सीखना चाहती है । विद्या आत्मनिर्भरता के एक रास्ते पर अग्रसर हो रही थी । बेटी के आगमन ने उसे एक नई राह दिखाई थी ।

फिर एक दिन विद्या ने आकर बताया कि वो यह घर छोड़ रहे हैं । उसकी सिलाई कक्षा की वजह नीचे वालों को दिक़्क़त आ रही है । उसने एक बड़ी जगह ली थी जहां वो अपना एक छोटा सा सिलाई स्कूल खोलने जा रही थी । रश्मि सुनकर बहुत खुश हुई लेकिन उसके जाने से थोड़ी दुखी भी हुई ।

विद्या रश्मि के गले लगते हुए बोली आंटीजी आज मैं जहां आकर खड़ी हुई हूँ उसमें आपकी बहुत बड़ी भूमिका है । आपकी बातों से मुझे बहुत प्रेरणा मिली । यह सारी हिम्मत ये नया मार्ग आप ही का दिखाया हुआ हैं । भगवान करे जब भी कोई बेटी दुखी हो तो रश्मि आंटीजी जैसा फ़रिश्ता आसपास हो ।

रश्मि की आँख भर आईं । प्यार से विद्या के चेहरे पर चपत लगाते हुई बोली किरायेदार तो इस घर में बहुत आये हैं लेकिन जो लगाव तुझसे हुआ है ऐसा किसी से नहीं हुआ । आती रहना दीदी इस ओर कहकर तीनों बहनें भी विद्या से लिपट गई

स्वरचित कहानी

अभिलाषा कक्कड़

5 thoughts on “किरायेदार – अभिलाषा कक्कड़  : Moral Stories in Hindi”

  1. बहुत ही अच्छी प्रेरणा दायक दिल को झकझोर देने वाली कहानी ।
    लेखक हो बहुत बहुत साधुवाद

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