पूर्वाग्रह – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

आज राखी का त्यौहार था। हंसी खुशी दोनों बहनों ने भाई-भाभी के राखी बांधी। और भाभी निशि  ने पैर छुते हुए गिफ्ट के पैकेट पकड़ा दिए।फिर  बोली दीदी खोल कर तो देखो।  

दोनों बहनों ने पैकेट खोला। यह क्या सोच रहीं थीं कि साडी के नाम पर कलंक ऐसी साडी थी किन्तु प्रत्यक्ष बोलीं निशि अच्छी है। छोटी बहन  ने भी हां में हा मिलाई।    उत्साहित हो निशी बोली दीदी ड्राइक्लीन मेटेरियल है।

हां,निशि आज तक तो में कुछ नहीं बोली किन्तु बड़े होने के नाते में तुम्हें एक सलाह देना चाहती हूं , यदि तुम बुरा न मानो।

 बुरा मानने की  क्या बात है दीदी बोले न।

तुम  पैसा भी भी खर्च करती हो,और ऐसी

साडी लाती  हो जो ड्राइक्लीन मेटेरियल हो। अब बताओ हमेशा पहनने वाली साड़ी 

कितनी बार ड्राइक्लीन करवायेंगे,वो  तो साडी की कीमत से भी ज्यादा महंगा पड़ेगा। इससे तो अच्छा है वाशेवल 

 साडी ले ली जाए जो  धो-पहनने के काम तो आये। आज तक तुम्हारी दी सभी साडीयां ऐसे ही रखीं हैं न पहन पाते हैं न किसी को दे पाते हैं तुम्हारा पैसा भी खर्च होगया और चीज काम भी नहीं आई। जरूरी तो नहीं है गिफ्ट दी ही जाए।

प्रेम का त्यौहार है प्रेम से राखी बाँधो मिलो जुलो यही बहुत है। क्यों परेशान होती हो ये सब लाने करने में। बहुत ले लियाअब क्या देती ही रहोगी। मीता ने बड़े प्रेम से शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात  रखी। मैं तुम्हें छोटी बहन  मानकर ही  समझा  रही हूं, निशि  अन्यथा मत लेना।

किन्तु ये बात सुनते ही निशि का मूड़ एकदम  बिगड़ गया। और वह भाई से बोली मुझे अभी  बाजार चलना है।

 भाई रजत ने पूछा अचानक क्या हो गया। बाजार जाने की तो क्या जरूरत पड गई ।

लगभाग चिल्लाते हुए बोली तुम्हारी बहनों को  महंगी साड़ियां  चाहिये बडे ब्लाउज के कपडे चाहिये । ब्लाउज पीस में इनका ब्लाउज  नहीं बनता। 

निशि तुमसे किसने कहा कि हमें महंगी साड़ियां चाहिए।

 और अभी इतना लेक्चर जो दिया किसलिए। इसीलिये  न महंगी साडी क्यों नहीं लाई।

मीता -निशि क्यों बात का बतगंड बना रही हो  मैंने तो तुम्हें सीधी बात समझाई थी कि तुम पैसा  भी खर्च करती हो और चीज काम नहीं आती  तो लाने  को मना किया था। दुख होता  है यह सोचकर कि तुम्हारे पैसे  भी खर्च हो गए और हम काम में नहीं लेते। ये कब  कहा  हमें मंहगी साड़ियां चाहिए ।

तभी छोटी बहन नीता बोली भाभी हमारी कोई  ऐसी इच्च्छा नहीं है कि आप महंगी साडी हमें दें।

 आप तो बोलो ही मत में जानती हूँ दोनों को  क्या चाहिये।

जोर जोर से चिल्ला कर बोल रहीं थीं निशि भैया  एवं पिताजी को बुरा लग रहा था पर चुप थे।  सब त्योहार का मजा किरकिरा हो गया। आखिर वे  नहीं मानी और भैया को बाजार लेकर गई। और  दूसरी साड़ियां ले आई ओर स्पेशली मीता के  लिए

(  क्योंकि मीता थोड़ी हेल्दी थी)व्लाउज का एक मीटर कपडा ले आई और देती हुई बोली लो पहनो जितना बडा ब्लाउज पहनना है एवं साढ़े पांच  मीटर की साडी।  यहां पर बता दूं कि वे पांच मीटर की साडी सत्तर सेन्टीमीटर का व्लाउज  पीस देती थीं

जो एक भी चीज काम नहीं  आती थी।  सालों से यही सिलसिला चल रहा था। बहनों की स्थिति यह थी कि काटो तो खून नहीं पर पिताजी एवं भाई के कहने पर उन्होंने  रख ली। नीता का घर तो पास में ही लोकल था सो वह उसी समय चली गई। मीता बाहर से आई थी

वह रात उसने मुश्किल से काटी और बच्चों को लेकर सुबह ही रवाना हो गई

जबकि अभी उसका दो दिन रुकने का प्रोग्राम था। भाई ने कहा भी दीदी इतनी जल्दी क्यों जा रही हो। बस में परेशान होओगी अभी ट्रेन में रिर्जवेशन करा देता हूं   एक दो दिन बाद चली जाना।

नहीं भैया जाने दो मुझे अब यहां रुका  नहीं  जा रहा और न मैं तुम्हारे और पिताजी के लिए समस्या पैदा करना चाहती हूँ कि मेरे जाने के बाद तुम लोगों  में झगडे हों।

मीता चल दी पिताजी की आंखों में आंसू थे वह बोली पिताजी आप दुखी न हो मेरे पास मिलने आना में आपको बुलाऊँगी पर मेरे से आप अब यहां आने  को न कहना। इतना मनमुटाव होगया कि दोनों बहनों ने निशि से बात करना भी बन्द कर दिया। फोन पर भी भैया  और पिताजी से बात करतीं ।निशि द्वारा फोन  उठाने पर काट देतीं। 

आज तीन साल हो गए दोनो बहनें नहीं आई। मीता वायपोस्ट  राखी भेज देती बहन के घर  और छोटी बहन  के  पास भाई जाकर दोंनों  राखी   बंधवा लेते।

मना करने के वाबजूद भाई रुपये देते छोटी बहन को,  बड़ी बहन को भी कहते हुए जब तुम मिलो दीदी को दे देना। भाई  की मनोदशा  देखते हम ले लेते किन्तु अपराधबोध  के साथ। यदि  निशि को पता चल गया तो फिर भाई की जान को क्लेश होगा किन्तु भाई का मन भी  तोड़ने की हिम्मत नहीं थी।

 तभी एक दिन निशि की तबीयत खराब हो गई। पिताजी का फोन आया बेटा तुम बड़ी हो आकर थोडी मदद करो रजत  अकेला परेशान हो रहा है। बहू को अस्पताल में भर्ती कराया है।

सबकुछ भुलाकर मैं पहुंची। नीता ने भी मदद की । दोनों ने मिलकर सम्हाला । तबियत ठीक  होने पर मैं बापस जाने लगी तब निशि बोली दीदी  बहुत साल हो गए इस बार आप राखी पर जरुर  आना।

 हां देखूँगी समय मिला तो आने की कोशिश करुंगी। 

नहीं दीदी आना ही आपको।

ठीक है कह, वह टैक्सी में बैठ गई।  

राखी से पहले ही निशि के फोन आये दीदी आपको आना  ही है ।

बार बार फोन आने पर मीता बोली आंउगी पर निशि  एक शर्त  के साथ कि तुम  लेना देना कुछ नहीं  करोगी। बस प्यार से त्यौहार मनायेंगे बोलो तुम्हें मंज़ूर है।

निशि के पास जवाब नहीं था क्योंकी उसे अपना  किया व्यवहार याद आ रहा था। बस इतना ही बोली दीदी आपने मुझे माफ नहीं किया।  माफ न करने की बात नहीं है निशि  बस में  इतना चाहती हूँ जिस कार्य के करने से कटुता, आपस में मनमुटाव पैदा हो वह नहीं  करना।

भैया और पिताजी से खून का रिश्ता है उनकी आंखों में आंसू कैसे देख सकते हैं। मैंने तुम्हें सदा अपनी छोटी बहन नीता की तरह समझा।हमेशा तुम लोगों की खुशी चाही किन्तु न जाने किन पूर्वाग्रह  से ग्रसित हो तुमने हम बहनों को अपना नहीं माना ।

निशि मतभेद रखो  किन्तु मनभेद नहीं फिर देखो  जीवन में कितनी खुशी मिलती है। अच्छा अब जल्दी मिलते हैं, रखूं फोन कह फोन रख देती है।

शिव कुमारी शुक्ला

30-5-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

मनमुटाव****शब्द प्रतियोगिता

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