बेटी अब ससुराल ही तेरा घर है , अब तो तू यहां की मेहमान है – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

सुनयना ग़ुस्से से राघव को घूरते हुए कहती है कि सुबह से लेकर रात को सोने तक नाश्ता लंच शाम को स्नेक्स रात को डिनर यही मेरा काम हो गया है ।  आप तो रिटायर होने के बाद आराम से पुस्तक पढ़ते हुए फोन पर बातें करते हुए गानों को सुनते हुए रेस्ट ले रहे हो ।

मेरा क्या मुझे भी तो लगता है कभी कोई मेरे लिए एक कप चाय बनाकर पिला दें । मैं यह सब किससे कहूँ ?

राघव धीरे से कहता है कि मुझे तो कुछ नहीं आता है । तुझे तो मालूम है ना कि मैंने तो कभी रसोई में कदम भी नहीं रखा है ।

मैंने भी बचपन में अपने घर में कोई भी काम नहीं किया है । मेरे पिताजी मैं नीचे भी पैर रखूँ तो मेरे पैर गंदे हो जाएँगे कहते हुए मुझे नीचे नहीं उतारते थे ।

मैं भी आपके घर में आकर सारा काम सीखकर अब तक कर रही हूँ । जब मैं सीख कर कर सकती हूँ तो आप क्यों नहीं कर सकते हैं ।

राघव को लगा कि बेकार में ही मैंने इससे पकोड़े बनाने के लिए कहा था । अब मुँह फुलाकर कमरे में लेट गई है। बाहर बारिश आ रही थी कपड़े भीग जाएँगे परंतु सुनयना से कहने की हिम्मत नहीं हुई थी कि कपड़े भीतर ले आओ । इसलिए वह खुद कपड़े लेकर आया और उसकी साड़ी को भी जैसे तैसे तहकरके उसकी अलमारी में रख दिया और पलटा कि नहीं कि साड़ी नीचे गिर गई उसके साथ एक डायरी भी गिरी देखा तो वह सुनयना की डायरी थी ।

उसे लगा कि दूसरों की डायरी नहीं पढ़नी चाहिए फिर लगा कि वह मेरी पत्नी है उसके और मेरे बीच में कोई रहस्य नहीं है । उस डायरी को लेकर बाहर चला गया और धीरे-धीरे पढ़ने लगा । उसमें लिखा था…,,,

मैंने जैसे ही अपनी डिग्री की परीक्षा पास की पिताजी ने राघव के रिश्ते के बारे में मुझे बताया था कि बेटा बहुत ही अच्छा रिश्ता है छोटा सा परिवार है।

अगर तुम्हारी हाँ हो तो बात आगे बढ़ाएँगे । राघव ने तुम्हें तुम्हारे कॉलेज के पास देखा है वह तुम्हें पसंद करता है ।

मैंने भी हाँ कह दिया था । उसने शादी के बाद शुरू शुरू में बहुत सारे वादे किए थे परंतु एक वादे को भी पूरा नहीं कर सका ।

मैं जब शादी करके आई तो मेरे घर में सास ससुर देवर और एक ननंद शारदा थी । जो मुझे बहुत अच्छी लगी थी ।

जैसे ही मैंने घर में कदम रखा सास ने रसोई मुझे सौंप दिया ।

अपने घर में मैंने चाय भी नहीं बनाया था परंतु धीरे से सीखकर मैं खाना भी बनाने लगी । इतना काम करने के बाद भी सास उसे कुछ ना कुछ सुनाती ही रहतीं थीं ।

राघव ने देखा डायरी में बहुत सारे पेजों को फ़ोल्ड करके रखा गया था । पहला फ़ोल्ड खोलकर देखा तो लिखा था कि आज मेरा दिल बहुत दुखा था । रविवार का दिन था मैं राघव के साथ घूमने के लिए बाहर जाना चाह रही थी । हम लोग तैयार हो कर निकलने ही वाले थे कि ससुर ने राघव से कहा कि तुम्हारी बहन को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे हैं ।

बस फिर क्या उनके आवभगत में सारा दिन गुजर गया और शाम हो गई थी रविवार ख़त्म हो गया था ।

राघव को बहुत कम समय मिलता था वह महीने में पंद्रह बीस दिन टूर में ही रहता था ।

राघव दूसरे फ़ोल्ड किए गए पन्ने को पढ़ने लगा था । उसमें लिखा था कि लड़के वालों के घर से ना का जवाब आया था जिसे सुनकर सास जोर से कह रही थी कि किसी के मनहूस कदम हमारे घर में पड़ गए हैं इसलिए अच्छा सा रिश्ता हाथ से निकल गया है ।

उस दिन मैं बहुत रोई थी कि उन्हें लड़की समझ में नहीं आ तो मेरी क्या गलती है । मैंने माँ को बहुत याद किया था कि माँ रहती थी तो मैं अपने दिल की बात उनसे ज़रूर कहती थी ।

एक फ़ोल्ड और दिखा उसे खोलकर पढ़ने लगा । आज ससुर जी की तबियत अचानक ख़राब हो गई थी । राघव टूर पर गए हुए थे । हम सब बहुत डर गए थे । मैंने ही केब बुलाया और उन्हें अस्पताल लेकर गए थे । देवर अपने दोस्तों के साथ पार्टी के लिए गया था परंतु सास ने कहा कि बिचारे की नौकरी नहीं है ना वह उदास हो कहीं बैठा होगा उसे डिस्टर्ब मत करना ।

शारदा ने कहा कि भाभी माँ को अस्पताल मत ले जाओ उनकी तबियत वैसे ही ख़राब है और ख़राब हो जाएगी। शारदा खुद भी थोड़ी देर रुक कर जैसे ही ससुर जी को भर्ती कराया वहाँ से चली गई थी ।

मैं ही वहाँ रात को रहती थी सुबह खाना बनाकर सबको देती और अस्पताल केरियर लेकर जाती रही । पंद्रह दिन बाद उन्हें डिस्चार्ज किया गया । उनके घर आने पर मुझे ही ज़्यादा ख़ुशी हुई ।

राघव टूर से आते ही माँ के पास जाकर बैठ गए और सांत्वना देने लगे थे कि माँ सब ठीक हो जाएगा आप फ़िक्र मत कीजिए । सॉरी समय पर मैं नहीं था रात को भी अस्पताल में आपको ही रुकना पड़ा । अब आश्चर्य चकित होने की मेरी बारी थी । राघव ने तो मेरी तरफ़ मुड़कर भी नहीं देखा जैसे मैंने बहुत बड़ा गुनाह कर दिया है।

राघव डायरी पढ़ते हुए रुक गया और सोचने लगा था कि हे ईश्वर मेरे परिवार ने मुझसे झूठ कहा था और मैं उनकी ही बातों पर विश्वास करता था । उसके आँखों से आँसू आ गए थे । सुनयना ने इतना कुछ सहा और वह भी मेरे लिए ।

शादी के बाद राघव और मैं जहाँ कहीं भी जाते थे हमारे साथ शारदा ज़रूर आती थी । उस दिन शाम को हम अभि को लेकर घूमने गए थे शारदा घर पर नहीं थी इसलिए हमारे साथ नहीं आ सकी । जब हम तीनों घूम फिरकर वापस घर आए तो सास अपना मुँह फुलाकर बैठी हुई थी कि एक तो ससुर की तबियत ख़राब है और घूमने फिरने की पड़ी है । बच्चे को घुमाने ले गए हैं तो ननंद को साथ में लेकर क्यों नहीं गए हैं । राघव ने उन्हें समझाया पर वे नहीं मानी ।

राघव को लगा कि सुनयना रात को रोज कुछ लिखती थी तो उसे लगा कि उसका शौक है कोई कविता वग़ैरह लिख रही होगी पर उसे नहीं मालूम था कि वह अपनी दिल की बातों को काग़ज़ पर लिख रही है ।

 राघव आगे पढ़ने लगा था । सुनयना ने लिखा था कि मेरे देवर की नौकरी बैंक में लग गई थी घर में सब खुश थे क्योंकि सबको डर लगता था कि यह बिना नौकरी किए आवारा गर्दी कर रहा है मैंने मीठा बनाकर सबको खिलाया ।

उसकी पोस्टिंग बैंगलोर में हुई थी जाते समय उसने मुझे बताया भी नहीं था कि मैं जा रहा हूँ राघव ने भी उससे नहीं कहा कि भाभी को भी बता दे ।

मैंने ही उससे जोर देकर बैंक की परीक्षा दिलवाया था शायद ग़ुस्से में होगा कि हमेशा परिक्षा के लिए पढ़ कहकर कहती रहती थी ।

सास का तो रवैया ही बदल गया था कि बेटे की नौकरी लग गई है । इस बीच शारदा की शादी तय हो गई थी अच्छा लगा कि चलो बड़े भाई की ज़िम्मेदारी पूरी हो जाएगी । शारदा की शादी तय हो गई थी । शादी के समय मैंने ही ज़िम्मेदारी हाथ में ली और  घूम घूम कर सारे काम कर रही थी । स्टोर रूम में कुछ लेने गई थी तो मुझे किसी की दबी आवाज़ में बातें सुनाई दीं ध्यान से सुना तो सास शारदा को सिखा रही थी ससुराल में कैसे रहना है ।

सास से दबकर मत रहना अपने पति को मुट्ठी में बंद कर के रखना । सारा काम अपने ऊपर लेकर करने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें मैंने बहुत ही लाड़ प्यार से पाला है । ज़रूरत पड़ने पर फोन करना हम तुम्हारे साथ हैं आदि।

मैं सोचने लगी थी कि एक माँ अपनी बच्ची को ऐसी सीख कैसे दे सकती हैं । मेरे घर में तो उल्टा ही था । मेरे पिताजी ने मुझे समझाया था कि बेटी अब से ससुराल ही तेरा घर है अब तो तू हमारे यहाँ की मेहमान है । अपने मायके की खूबियों का बखान ससुराल में नहीं करना और ससुराल की कमियों को मायके में नहीं बताना । हाँ तुम्हें कभी हमारी ज़रूरत महसूस हो तो हम तुम्हारी मदद कर देंगे ।

  कालांतर में सास ससुर भी स्वर्ग सुधार गए थे । बेटे अभिषेक की शादी हो गई और बहू भी आ गई थी ।

राघव ने देखा कि बहुत सारी डायरियाँ थी इसका मतलब यह है कि सुनयना का दिल यहाँ बहुत बार दुखा है । उसने सोच लिया था कि अब मैं सुनयना को कोई भी तकलीफ़ नहीं होने दूँगा । दूसरे दिन सुबह उठते ही उसने सुनयना को शादी की सालगिरह की बधाई दी थी उसने भी राघव को बधाई दी थी ।

राघव ने कहा कि तुम तैयार हो जाओ आज मैं तुम्हारे लिए चाय बनाऊँगा । वह चाय बनाने के लिए रसोई में गया तभी बेल बजी सुनयना ने ही दरवाज़ा खोला तो बेटा बहू ननंद देवर सब शादी की सालगिरह की शुभकामनाएँ देने आए थे ।

राघव ने सबके लिए चाय बनायी । शारदा और देवर अपने किए की माफी

माँग रहे थे । सुनयना ने आश्चर्य चकित होकर राघव की तरफ़ मुड़कर देखा तो उसने सॉरी कहते हुए कान पकड़कर माफ़ी माँग ली थी मैंने तुमसे बिना पूछे तुम्हारी डायरी पढ़ ली है ।

शारदा और देवर ने कहा तभी तो हम सबको अपनी ग़लतियों का एहसास हुआ है ।

अभिषेक ने कहा माँ आज खाना नहीं बनाना मैंने होटल में टेबल बुक करा दिया है ।

राघव ने प्यार से सुनयना का हाथ पकड़ लिया था । सुनयना को लगा कि चलो देर आए दुरुस्त आए । सब अच्छा हो गया है ।

के कामेश्वरी

#बेटी अब से ससुराल ही तेरा घर है अब तो तू यहाँ की मेहमान है

2 thoughts on “बेटी अब ससुराल ही तेरा घर है , अब तो तू यहां की मेहमान है – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi”

  1. लेकिन पूरी उम्र निकल गई ये सब सहते सहते। वो पल तो वापस नहीं आ सकते ना जिस उम्र में वो अपने शौक पूरा करती। वो वक्त दोबारा नहीं आ सकता ना।

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