बेटी का घर- दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

रागिनी पिछले दो दिनों से बहुत परेशान थी। उसे यह समझ ही नहीं आ रहा था, उसे अत्यधिक प्रेम करने वाली मां का व्यवहार इतना कैसे बदल गया। पिछले दो दिनों से प्रतिभा जी रागिनी से ठीक से बात तक नहीं कर रही थी।

आज तो मां के शब्द उसके कानों में सीसे की तरह घुल गए थे। आज दोपहर जब वह किचन में खाना लेने गई, तो उसने मां को फोन पर मासी जी से यह कहते हुए सुना। रागिनी तो बे अकल है। अपना भी घर बर्बाद कर रही है और हमारा भी।  “बेटियों का असली घर ससुराल ही होता है,मायके में तो वह मेहमान ही होती हैं।”

रागीनी को वह दिन याद आ रहे थे, जब दिन रात उसकी मां उसे लाडो लाडो कहते नहीं थकती थी। हर किसी के आगे उसकी तारीफ करती रहती थी मेरी लाडो यह है, मेरी लाडो वह है। बहुत नाम  कमाएगी। मेरा सर फक्र से ऊंचा करेगी।

जब रागिनी ने पहली बार विदित और उसके  रिश्ते के बारे में मां को बताया। रागिनी और विदित एक ही कंपनी में साथ काम करते थे। तो मां बिना कोई सवाल जवाब किए विदित से मिलने को तैयार हो गई थी। पहली ही बार में मां को विदित बहुत पसंद आया था और मां ने ही पिताजी को इस रिश्ते के लिए मनाया था। 

उसकी और विदित की शादी मां-पापा ने बहुत ही धूमधाम से करवाई थी।

सब कुछ अच्छा ही चल रहा था। लगभग साढ़े तीन साल हो गए थे दोनों की शादी को। 

बस पिछले 6 महीने से विदित और उसके बीच कुछ भी ठीक नहीं था।

 पहले-पहल तो रागिनी ने मां को कुछ नहीं बताया था। जब भी दोनों के बीच झगड़ा बढ़ जाता वह मायके आ जाती थी। रागिनी यूं तो बहुत समझदार लड़की थी मगर न जाने क्यों आजकल वह कुछ फैसले ठीक से नहीं ले पा रही थी।  विदित बहुत ही समझदार और परिपक्व लड़का था, वह बात को ज्यादा ना बढ़े इसीलिए अक्सर उसे मना कर ले जाया करता था। 

मां तो मां होती है, वह सब जानती है।  प्रतिभा जी को भी रागिनी का यूं बार-बार मायके आना कुछ खटक रहा था। वह भी समझ रही थी कि जरूर कोई बात है। मनोहर जी जो की रागिनी के पिता थे। वे भी प्रतिभा जी से दो-तीन बार पूछ चुके थे कि क्या बात है? प्रतिभा जी ने हर बार यह कहकर  टाल दिया कि करियर को लेकर कुछ व्यस्तता है, समस्या है और कोई खास बात नहीं।

प्रतिभा जी ने इस बार रागिनी से पूछ ही लिया की क्या बात है कोई समस्या है तो बताओ। तुम्हारा यूं बार-बार मायके आना मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा। 

रागिनी भी भरी बैठी थी। वह भी सोच ही रही थी कि वह मां को यह सब कैसे बताए। उसने मां को बताया की विदित और उसके बीच बच्चे को लेकर वाद- विवाद चल रहा है। वह अभी बच्चा नहीं चाहती है और विदित चाहते हैं कि अब यही सही समय है। हमें बच्चे के बारे में सोचना चाहिए। मां मैं अभी बच्चा नहीं चाहती हूं। इस बार बाय चांस मेरा प्रेगनेंसी टेस्ट पॉजिटिव आया है।अभी मैं अपने करियर की टॉप पर हूं। ‌ इस समय मैं अपने करियर से कोई समझौता नहीं कर सकती।

विदित के माता-पिता बचपन में ही एक कार एक्सीडेंट में गुजर गए थे। विदित को उसके मौसी-मौसा जी ने पाला था। विदित के और कोई अन्य भाई बहन भी नहीं थे। विदित के मौसी-मौसा जी की उनकी अपनी कोई संतान भी नहीं थी। पिछले कुछ समय में रागिनी का बार-बार झगड़कर मायके जाना उन्हें भी आहत कर रहा था। उन्हें लग रहा था कि कहीं इन झगड़ों की वजह वे लोग तो नहीं है। या ऐसा तो नहीं रागिनी को उन लोगों का साथ रहना अच्छा नहीं लगता।

मौसी जी ने विदित से इस बारे में बात भी की। विदित ने उन्हें यह कहकर कि ऑफिस की कोई समस्या है आप चिंता ना करे, बात टाल दी। विदित जानता था कि उनकी आपसी कलह की वजह मौसी-मौसा जी बिल्कुल भी नहीं है। रागिनी शुरू से ही मौसी-मौसा जी को अपने माता-पिता सा सम्मान देती थी और उसे कभी भी उनके साथ रहने से कोई समस्या नहीं थी। असली वजह बता कर वह मौसी जी को आहत भी नहीं करना चाहता था।

 विदित विवाह के 1 साल बाद से ही चाहते थे कि उनका एक बच्चा हो। लेकिन रागिनी करियर को लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहती थी इसीलिए वह टाल रही थी। शादी की तीसरी वर्षगांठ पर विदित ने रागिनी से कहा रागिनी मुझे तोफे में अब एक बच्चा ही चाहिए। अब हमें अपना परिवार पूरा करना चाहिए। तब रागिनी ने फिर से टालना चाहा और जब-जब विदित इस बारे में बात करते उन दोनों के बीच इस विषय ने अब तीखी बहस का रूप ले लिया था। इस बार तो बात ही कुछ और थी। रागिनी बच्चे के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी और विदित नहीं चाहते थे की अबॉर्शन कराया जाए। 

प्रतिभा जी इस विषय और इस पर होने वाले झगड़ों से अनजान नहीं थी। इस विषय पर विदित से उनकी बातचीत तभी हो गई थी। जब रागिनी अपनी तीसरी वर्षगांठ के बाद 4 महीने पहले विदित से झगड़ कर अपने मायके आई थी। 

कल भी विदित ने फोन पर प्रेगनेंसी वाली बात उन्हें बता दी थी। साथ ही विदित ने उन्हें यह भी कहा की मां मैं रागिनी के साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं करना चहता। अंतिम निर्णय उसी का होगा। मैं रागिनी से बहुत प्यार करता हूं। 

प्रतिभा जी नहीं चाहती थी कि वह पति-पत्नी के इस निजी मामले में दखल दें। इसीलिए वे चुप थी और वो यह भी चाहती थीं कि इस विषय पर रागिनी स्वयं उनसे बात करें। वे रागिनी के मन की बात भी जानना और समझना चाहती थी। 

इस बार जब रागिनी ने उनसे इस बारे में बात की तब से ही वह सोच रही थी की रागिनी क्यों बच्चा नहीं चाहती हैं?

प्रतिभा जी को भी लगता था कि अब रागिनी को बच्चे का निर्णय ले लेना चाहिए। उन्हें ऐसा लग रहा था  की रागिनी जो कह रही है वह अधूरा सच है। बात कुछ और ही है। उनके मन में एक डर भी था कि कहीं रागिनी की प्रेगनेंसी में कोई कॉम्प्लिकेशंस तो नहीं। जो रागिनी विदित और उनसे छुपा रही है।

कल शाम ही प्रतिभा जी ने रागिनी की सहेली दिव्या से बात की। दिव्या और रागिनी बचपन से बेस्ट फ्रेंड्स थी, हर बात एक दूसरे से शेयर करती थी। दिव्या ने इस विषय पर प्रतिभा जी को जो बताया उसे सुनकर वे सकते में आ गई।

रागिनी अपने करियर से ज्यादा इस बात से डरी हुई थी कि वह बच्चे की जिम्मेदारी नहीं ले पाएगी। यह बात वह विदित से शेयर नहीं कर पा रही थी। विदित समझ रहे थे कि वह सिर्फ करियर को लेकर अति महत्वाकांक्षी है, इसलिए वह बच्चा नहीं चाहती।

यही बात उन दोनों के बीच की दुरियों यो को बड़ा रही थी।

यह सब जानने के बाद प्रतिभा जी ने यह तय किया कि वे रागिनी को मां होने के सुख से वंचित नहीं रहने देंगी।

वे उसे एहसास करवाएंगी कि वह मातृत्व की जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभा सकती है। उन्हें लगा कि सिर्फ रागिनी से बात करके तो इस समस्या का हल नहीं निकलने वाला है। 

उन्होंने मन ही मन कुछ तय किया।  फिर वह रागिनी से अब इस तरह का व्यवहार करने लगी जैसे वह उसके यहां रहने से बिल्कुल भी खुश नहीं है और ना ही उसके फैसले से। 

रागिनी ने फैसला किया कि वह अभी इस विषय पर मां से बात करेगी। मां बेटी के बीच एक तीखी नोंकझोंक हुई। जो सब कुछ रागिनी जी जानबूझकर कर रही थी। उन्होंने झूठा गुस्सा दिखाते हुए रागिनी को कह दिया “बेटी अब से ससुराल ही तेरा घर है अब तो तू यहां की मेहमान है।” यही बात दोबारा सुनकर रागिनी तिलमिला गई और बैग उठाकर ससुराल के लिए निकल पड़ी। 

जैसे ही घर पहुंची सीधा अपने कमरे में गई,  बेग फेंक कर  बिस्तर पर गिर पड़ी और बहुत रोने लगी। थोड़ी ही देर में विदित हाथ में चाय का कप लेकर कमरे में आए। विदित उससे बहुत आत्मीयता से मिले। विदित ने रागिनी से पूछा क्या बात है, क्यों इतनी परेशान हो। रागिनी विदित के गले लगकर जो कुछ उसके मायके में हुआ बता कर बहुत रोने लगी।

उसे उसकी मां का उसके साथ यह व्यवहार बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था। 

विदित यह सब पहले से ही जानते थे क्योंकि प्रतिभा जी ने उन्हें सब कुछ बता दिया था और यह भी बता दिया था कि अब उन्हें क्या करना है।

विदित ने बहुत ही प्यार से रागिनी से कहा रागिनी तुम्हारी मां की इतनी सी बेरुखी तुमसे सहन नहीं हो रही। उस बच्चे का क्या जिसे तुम तो इस दुनिया में आने ही नहीं देना चाहती ? क्या कभी तुमने सोचा है कि वह बच्चा तुमसे कितना नाराज होगा ? विदित डर भी रहे थे कि कहीं रागिनी फिर से नाराज ना हो जाए। 

तभी अचानक रागिनी अपने आंसू पोंछते हुए उठी, बेग से अपना फोन निकाला और मां को कॉल किया। मां के फोन उठाते ही बोली, मां मैंने कभी नहीं सोचा था कि आप मेरे साथ ऐसा व्यवहार करेंगे। अब मैं आपको आपसे भी अच्छी मां बन कर दिखाऊंगी। 

अंततः रागिनी में एक अच्छी मां बनने का विश्वास जाग ही गया। रागिनी जी यह सोचकर बहुत खुश थी। हो भी क्यों ना अब वह नानी मां जो बनने वाली थीं।

 प्रतिभा जी के विचार कभी भी  दकियानूसी नहीं थे कि वह बेटी को यह कहे कि “बेटी अब से तेरा ससुराल ही तेरा घर है मायके की तो तू मेहमान है।”  पर वे मां थी वो जानती थी कि रागिनी के मन में बच्चे को लेकर जो डर है, उसे कैसे दूर करना है। वह जानती थी कि बचपन से ही रागिनी को जब भी कोई एहसास कराता है कि वह यह काम कर ही नहीं सकती है, वह इस लायक ही नहीं है तो वह गुस्से में ही सही उस काम को करने का ठान ही लेती है और करके ही दिखाती है। 

इस समय प्रतिभा जी का मन थोड़ा उदास था पर वह खुश थी कि अब रागिनी जैसे-जैसे मातृत्व की ओर बढ़ेगी, मां बनेगी तब वह यह जरूर जान जाएगी कि उन्होंने उसके साथ ऐसा क्यों किया।  फिर जल्द ही दोनों के बीच की यह दूरियां मिट जाएंगी। 

विदित भी मां का साथ पाकर बहुत खुश थे। उनका मन भी भविष्य के सुंदर सपने संजो रहा था। कहीं ना कहीं इस बात का दुख भी था कि वह रागिनी की इस समस्या को समझ नहीं पाए। मगर अब उन्होंने भी ठान लिया था कि वह रागिनी के मातृत्व के इस सफ़र में उसका पूरा साथ देंगे। उसे कभी भी अकेला नहीं पड़ने देंगे।

प्रतिभा जी ने आज दो टूटते रिश्तों को  बचाने की एक नई राह चुन ली थी। खुशी-खुशी वे मनोहर जी को भी यह खुशखबरी देने चल पड़ी।

मित्रों आजकल बच्चे करियर की चाह में, बढ़ते प्रतियोगी भाव की वजह से कई बार अपने परिवार की जिम्मेदारियों को स्वीकार करने से डरने लगते हैं। विशेष तौर पर लड़कियां जो नौकरी पेशा हों और विवाह पश्चात अपना घर छोड़कर दूसरे घर में एक नया परिवार बसाती हैं।  शुरुआती समय में उन्हें सामंजस्य बिठाने में समय लगता है। जरूरत है उन्हें यह एहसास करने की कि वे बाहर की जिम्मेदारियों के साथ-साथ अपने परिवार की जिम्मेदारी भी निभा सकती हैं। उनका परिवार उनके साथ है।

स्वरचित 

 दिक्षा बागदरे 

#बेटी अब से ससुराल ही तेरा घर है अब तो तू यहां की मेहमान है 

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