आँसू – राम मोहन गुप्त

[ बड़ी बहन भी माँ ही होती है ]

‘नहीं, कहीं नहीं जाएंगी आप, जिसे जो भी कहना हो कहे, साथ रहना चाहे रहे या न रहे’ कहते हुए अम्बर ने अनीता के हाथों से अटैची छीन ली। उसे ऐसा करते देख नीलिमा पैर पटकते हुए अपने कमरे में घुस गई। 

कितने समय से नीलू यानि कि नीलिमा कोशिश कर रही थी कि अनीता घर छोड़ कर चली जाए, कहाँ! इससे उसे क्या लेना-देना। उसे तो सिर्फ एक ही बात से मतलब था कि किसी तरह से अनीता से पिंड छूटे और घर में उसकी दखल, अम्बर पर उससे ज्यादा हक़ से मुक्ति मिले, पर अम्बर ने सब किये-कराए पर पानी फेर दिया।

अनीता, अम्बर की बहन, वह बहन जिसने माँ-बाबू जी के एक्सीडेंट पर हुए निधन के बाद घर की और अम्बर की जिम्मेदारियों को निभाने में अपनी पढ़ाई, इच्छाओं व शौक से नाता तोड़ लिया। खुद ट्यूशन और सिलाई करके अम्बर को पाला-पोसा और उसको पढ़ा-लिखा कर इस लायक बना दिया कि आज वो सरकारी मुलाज़िम है। 

यही नही, अम्बर के लाख कहने के बावजूद भी उसने अपनी शादी से इनकार कर दिया और दूर के रिश्तेदार द्वारा लाये गए रिश्ते के लिए अम्बर को राजी कर लिया और आज लगभग छः महीने हो गए हैं अम्बर-नीलिमा की शादी को। शुरू-शुरू में तो सब ठीक रहा पर धीरे-धीरे नीलू ने रंग दिखाना शुरू कर दिया.. अम्बर के सामने तो कुछ भी नहीं पर उसके ऑफिस जाते ही अनीता को खरी-खोटी सुनाना, बात-बात पर झिड़क देना आये दिन की बात हो गई, अनिता प्रतियोत्तर में कुछ नहीं कहती,पर मन ही मन रोती रहती। अब वो करे भी तो क्या, उन-दोनों के सिवा उसका और था भी कौन,वह अम्बर से शिकवा-शिकायत करके उसे परेशान भी नहीं करना चाहती थी। 


पर उस दिन.! उस दिन तो हद ही हो गई जब नीलू ने उसके बनाये खाने को ही खाने से यह कह कर मना कर दिया कि ऐसा खाना खिलाकर क्या मार देना चाहती हो, आखिर क्यों मेरे व मेरी गृहस्थी के पीछे पड़ी हो, कहीं चली क्यो नहीं जाती। क्यों हमारे ऊपर बोझ बनी हुई हो, कितने अरमानों से शादी करके आई थी, पर तुम्हारे चलते सब पर पानी फिर गया।

 

बेचारी अनीता! वह अनीता जिसने अपने छोटे भाई के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया, बड़े प्यार से नीलू को बहू बना कर लाई थी, आज पूरी तरह से टूट गई और खुद को भूखें-प्यासे ही कमरे नें बंद कर लिया। देर रात उसने तय कर लिया कि वह अपनी सहेली के पास चली जायेगी, जिससे एकाध बार वह अपना हाल भी बता चुकी थी।

सुबह होते ही नहा धोकर, अटैची तैयार कर बड़े ही बुझे मन से उसने अम्बर को चाय का कप पकड़ाते हुए कहा, मैं कुछ दिन के लिए माला के यहाँ जा रही हूँ। अम्बर ने मानों उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया और ऐसा देख नीलू की खुशी का ठिकाना न रहा। 

पर यह क्या, जैसे ही अनीता अटैची लेकर दबे कदमों और सुस्त चेहरे के सात बाहर निकली अम्बर ने अटैची छीन ली। कमरे में पैर पटकते घुसती नीलिमा के कानों को सिर्फ़ यह ही सुनाई दिया, आप क्या समझती हो दीदी, मैं कुछ नहीं जानता! मुझे सब पता है आप कितना भी छिपाओ, कुछ दिनों से घर में जो चल रहा है मुझे उसका आभास है.. पर सोंचता था कि नीलू शायद खुद ही समझ-सुधर जाये। क्योंकि कई बार इशारों में ही उसे मैं बता  चुका हूँ कि हमारे लिए आप क्या हो।

बड़ी बहन नहीं, मेरी माँ हो आप और वह भी ऐसी माँ जिसने माँ-बाप, भाई-बहन और दोस्त बन कर एक ओर जहाँ मुझे न केवल बड़ा किया है बल्कि दूसरी ओर गुरु बन कर जीवन की कठिनाईयों से डरे बिना आगे बढ़ना सिखाया है। आप का हाथ न होता तो आज अम्बर पता नहीं क्या होता, कहाँ होता।

अम्बर की बातें सुनते ही अनीता बिलख सी पड़ी पर यह आँसू.. अपार खुशी के आँसू थे। उसने दौड़ कर अम्बर को गले से लगा लिया कुछ ऐसे जैसे सचमुच दोनो माँ-बेटे ही हों.. और यह क्या नीलू भी उनसे आकर लिपट गई और उसकी आँखों से भी पश्चाताप के आँसू बह चले।

राम मोहन गुप्त

 

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