अब आगे •••••••••
देवकुमार का मौन ही सारे प्रश्नों का उत्तर होता। वह दुखी मन से इंकार में सिर हिला देते। महारानी भी इस मौन के प्रतिउत्तर में ठंडी आह भर कर स्वयं भी मौन धारण कर लेती।
समय के साथ ही राजकुमारी के हृदय में भी राजकुमार का प्रेम बढता गया। राजकुमार मणिपुष्पक की व्याधि और उनके स्वास्थ्य लाभ साथ ही महारानी की मृत्यु के समाचारों से वह अवगत थीं परन्तु स्वस्थ होने के पश्चात क्रूर व्याधि के द्वारा तन पर छोड़े गये
चिह्नों के कारण राजकुमार के विकृत स्वरूप के रहस्य से वह अनजान थीं। सभी को आशा थी कि राजकुमार के स्वरूप में सुधार अवश्य हो जायेगा, इसलिये राजकुमारी मोहना से यह रहस्य गुप्त रखा गया।
उधर राजकुमारी मोहना राजकुमार मणि पुष्पक के युवा स्वरूप की मादक कल्पना के स्वप्नों में खोई रहीं। राजकुमार से मिलन के लिये उनका मन तरसने लगा लेकिन पिता से कैसे कहें कि उसे भी अपने साथ संदलपुर ले चलें। लौटकर आने के बाद महाराज के मुख से राजकुमार की नम्रता,
वीणा वादन, संगीत और चित्रकला आदि गुणों की प्रशंसा सुनकर वह भीतर से प्रसन्न होते हुये लजाकर सिर झुका लेतीं। राजकुमार के दर्शन के लिये उनके नेत्र व्याकुल हो जाते।
राजकुमार की सत्रहवीं वर्षगॉठ से लौटकर महाराज आये तो साथ में विवाह का मुहूर्त भी लेकर आये। पुत्री के विवाह का शुभ मुहूर्त सुनकर महारानी प्रसन्नता के स्थान पर दुख के सागर में डूब गईं।
” हमारी मोहना राजकुमार के वर्तमान स्वरूप से अनभिज्ञ है। उसके हृदय में तो राजकुमार का वही देवोपम सौन्दर्य समाया है। मेरा और आपका विचार था कि समय बीतने पर औषधियों से राजकुमार भले ही अपने पूर्व स्वरूप को प्राप्त न कर पायें
परन्तु दर्शनीय स्वरूप को अवश्य प्राप्त कर लेंगे, इसी कारण मोहना को वस्तुस्थिति से अवगत नहीं कराया था ताकि उस बाल्यावस्था में उसके कोमल मन पर कोई आघात न लगे परन्तु क्या अब भी उसे वस्तुस्थिति से अवगत न कराना अनुचित नहीं है ? “
” हमारी परम्परानुसार परिणय सम्बन्ध का निर्धारण भाग्य के आधीन होता है। हमारी पुत्री के सौभाग्य और दुर्भाग्य की डोर राजकुमार के साथ वाग्दान के साथ ही जुड़ गई थी। यदि विवाह के पश्चात राजकुमार का ऐसा स्वरूप हो जाता तब क्या करतीं आप?*
” मुझे गलत न समझें स्वामी। महाराज और राजकुमार की पीड़ा से मैं भी व्यथित हूॅ। मुझे भी मणिपुष्पक से पुत्रवत स्नेह है। एक बार राजकुमारी को वस्तुस्थिति से अवगत करना आवश्यक है। इस तरह यथार्थ से अपरिचित रखकर देवांगनाओं के सौन्दर्य को लजाने वाली अपनी प्राणाधिक प्रिय पुत्री को राजकुमार मणिपुष्पक की सहचरी बनाना छल और विश्वासघात है। यह अत्याचार है।”
” आप कैसी बातें कर रही हैं यशोधरा? क्या बाहरी आवरण ही प्रेम का आधार है? क्या प्रेम का आधार मात्र देह है ? राजकुमार का केवल बाह्य स्वरूप ही विकृत हुआ है, उसका हृदय मानवीय गुणों का भंडार है। उसका अन्त:करण स्वच्छ और निर्मल है।
मुझे देखकर उन लोगों के मुखों पर एक नैसर्गिक आभा छा जाती है। मर्यादा वश राजकुमार कुछ कहते नहीं हैं लेकिन मुझे ज्ञात है कि मोहना का नाम आते ही उनका रोम रोम कर्णेन्द्री बन जाता है। वे लोग अपने जीवन और राजमहल में मोहना के आगमन की पल पल प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
” मैं आपके विचार से सहमत हूॅ परन्तु मॉ की ममता अपनी पुत्री के लिये स्वार्थी बना रही है मुझे। मुझे विश्वास है कि सत्य से अवगत होने के बाद भी मोहना स्वेच्छा से राजकुमार का ही वरण करेगी क्योंकि बाल्यावस्था से ही उसके हृदय में राजकुमार की छवि अंकित हो गई थी और अब वह पूर्ण परिपक्व हो गई है।”
” जब अपनी पुत्री और अपने संस्कारों पर इतना विश्वास है तो क्यों चिन्तित हैं ? जब तक मोहना पुत्री रूप में हैं तब तक उसका सत्य से अवगत होना आवश्यक नहीं है । विवाह पश्चात जब वह कुलवधू और धर्मपत्नी के दायित्वों में आबद्ध हो जायेंगी
तब यथार्थ से परिचित होने पर भी वह मर्यादा और धर्मानुसार ही आचरण करेगी। क्षत्रिय ललनायें तो राजकुमारों की तलवार से विवाह कर लेती हैं, पति का एक बार दर्शन और स्पर्श किये बिना ही प्रसन्नता पूर्वक सती हो जाती हैं,
हमारी पुत्री भी उसी परंपरा की निर्वाहक है । अपने स्वाभिमान और वचन हेतु हम प्राणों का प्रसन्नता पूर्वक बलिदान कर देते हैं। मोहना मेरी और आपकी पुत्री है, आप चिन्तित न हों।”
” परन्तु स्वामी, ऐसा न हो कि इस तरह सत्य की गोपनीयता के लिये मोहना मुझे, आपको, महाराज और राजकुमार को दोषी मान ले और उसका दाम्पत्य सुखद न रह सके।”
” आप व्यर्थ चिन्तित न हों। राजकुमारी को सौन्दर्य वान राजकुमार तो प्राप्त हो भी सकते हैं परन्तु राजकुमार मणि पुष्पक जैसा सर्वगुण संपन्न और प्रेम करने वाला पति नहीं मिलेगा। इसीलिये हम राजकुमारी के हित एवं कल्याण के लिये ही सत्य को गुप्त रखने के लिये विवश हैं। राजकुमार मणिपुष्पक को पति रूप में वरण करके वह गर्वित होगी।
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एक भूल …(भाग-10) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर