जिंदगी रोबोट सी – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

बेटी अब ससुराल ही तेरा घर है, मायके में तो तू मेहमान है-यही कहा था ना माँ। जिसके साथ गठबंधन कर रिश्ता जोड़ा था, वह तो हर दूसरे दिन चोटी पकड़कर घर से निकल जाने की धौंस देता है, बता ना मां तू किस घर की बात कर रही थी?

क्या ऐसा ही होता है घर?जानती है माँ  मैं ये पत्र तुझे क्यो लिख रही हूं?इसलिये कि छोटी बहन मान्या को ये शिक्षा मत देना,उसको मेहमान बता कर उसका हक मेरी तरह समाप्त मत कर देना मां।मैं तो तेरी सीख मान अंतिम सांस तक संघर्ष करूंगी,

मेहमान बन कर भी तेरे पास नही आऊंगी,पर मान्या भोली है,मां,वो मेरे जैसे दर्द को शायद न सहन कर पाये।

पत्र पढ़कर मालती हतप्रभ  हो गयी।पत्र पढ़ते पढ़ते उसकी आँखो से आंसू बहने लगे।पत्र का एक एक शब्द उसकी बच्ची के दर्द को उकेर रहा था।उसके सामने ऋतु का बचपन किशोरी और युवा स्वरूप घूम गया।पूरे घर  का खिलौना थी

ऋतु, हर कोई उसे अपने गोद मे रखना चाहता।ऐसी लाडली ऋतु थोड़ी बड़ी हुई तो पूरे घर मे कुलांचे मारती फिरती।घर में अपने कमरे के साथ साथ सारे घर की हर चीज को करीने से रखना,उसकी हॉबी थी।अधिकार से अपने पापा को भी घर को साफ रखने की नसीहत देने से नही चूकती और सब उसकी बात मानते।

और बड़ी हुई तो अपनी छोटी बहन मान्या को पढ़ाई का ध्यान रखने लगी।शाम के समय ऋतु पास की दलित बस्ती में गरीब बच्चों को भी दो घंटे पढ़ाने जाती।अपनी पढ़ाई के साथ घर के काम मे भी माँ का हाथ बटाने लगी।उसके पिता अक्सर कहते की बिना ऋतु  के तो घर घर नही लगता।

एक बार कॉलेज से ट्रिप पर दो दिन को ऋतु क्या गयी,पूरा घर सुनसान हो गया।दो दिन ऐसे लग रहे थे मानो कई वर्ष हो गये हो। बेटी है पर जिंदगी भर साथ तो नही रख सकते ना,अवनीश से उसकी शादी तय कर दी गयी।अच्छी जॉब,हैंडसम पर्सनालिटी के स्वामी अवनीश को ऋतु और ऋतु को अवनीश भा गये।

दोनो की शादी कर दी गयी।पूरे परिवार में उल्ल्हास पूर्ण वातावरण था।विदाई के समय ही रोते रोते मालती सभी की तरह ही बेटी को शिक्षा दे रही थी कि ससुराल ही अब तेरा घर है,यहां तो तू अब मेहमान बन के ही आयेगी।

        कुछ ही दिन बीते होंगे कि एक दिन अवनीश देर रात से आया ही,लेकिन शराब पीकर।यह ऋतु के लिये अप्रत्याशित था,उसने स्वाभाविक रूप से विरोध किया,नतीजा नशे में धुत्त अवनीश ऋतु पर हाथ छोड़ बैठा।अवाक ऋतु के लिये तो एक झटका था।

किसी प्रकार रात बीती,सुबह अवनीश ऋतु से माफी मांगता रहा,फिर शराब न पीने की कसम खायी।पहली बार की घटना को ऋतु ने भुलाने का प्रयास किया।एक सप्ताह भी नही बीता था कि घटना की पहले की तरह फिर पुनरावृत्ति हो गयी।

और उसके बाद तो दूसरे तीसरे दिन का किस्सा हो गया।ऋतु ने कभी इस प्रकार का न तो वातावरण देखा था और न ही व्यवहार।उसके समझ ही नही आ रहा था,वह करे तो क्या करे?सास ससुर से कुछ छिपा नही था,पर वे बेबस से बस देखते रहते,अवनीश को रोकने या कुछ कहने की कोशिश करते तो अवनीश उनसे भी बदतमीजी से बोलता,जिससे वे भी सहम कर पीछे हट जाते।

     दुःखी होकर ऋतु ने माँ को चिठ्ठी लिख तो दी,पर उससे कुछ समाधान तो होना नही था।पत्र पाकर मां पिता तुरंत ऋतु को अपने साथ लिवाने आ गये।उनके सामने अवनीश  फिर माफी का नाटक कर फिर वैसा न होने की कसम खाने लगा।ऋतु जानती थी कुछ होना जाना नही है,फिर भी चुप रही,उसने अपने माता पिता को वापस भेज दिया।

      ऋतु ने निश्चय कर लिया कि वह अपने अधिकार को न छोड़कर यही रहकर संघर्ष करेगी। ऋतु ने समझ लिया कि अवनीश सरलता से सुधरने वाला नही,इसी कारण उसने अब अवनीश के विषय मे सोचना ही बंद कर दिया।

सबसे पहले उसने आत्मनिर्भर होने का प्रयास किया और नौकरी ढूढ़नी प्रारम्भ कर दी।कुछ दिनों में उसे शिक्षिका के रूप  में नौकरी मिल गयी।ऋतु ने अपने को उसमें झोंक दिया।अवनीश का रवैया अब भी वैसा ही था,पर अब ऋतु उसका न विरोध करती थी

और न सामने पड़ती थी।एक आध बार अवनीश ने ऋतु से उलझने का प्रयास किया तो ऋतु ने अपने सास ससुर के सामने साफ कर दिया कि अगर उस पर हाथ उठाने की हिम्मत की गई तो वह पुलिस को बुलायेगी।यह धमकी कारगर साबित हुई,उसके बाद से अवनीश ऋतु से कतराने लगा।

ऋतु ने अब फिर से एक डेढ़ घण्टा दलित बच्चो को भी मुफ्त में  पढ़ाना शुरू कर दिया।ऋतु का अवनीश से अब कम ही सामना होता था।अवनीश से ऋतु की उपेक्षा सहन नही हो पा रही थी।उसे शायद अपनी ज्यादती का अहसास होने लगा था।घर मे सबकी जिंदगी मशीन जैसी हो गयी थी,सब मानो रोबोट हो।अवनीश का मन कभी ऋतु से बात करने को करता भी तो उसका पुरुषत्व अहंकार उसके सामने खड़ा हो जाता।

     एक दिन अवनीश घर आया तो दरवाजे के पास ही चक्कर खा कर गिर पड़ा।ऋतु तब घर मे ही थी,आवाज सुनकर वह बाहर आयी तो अवनीश को अचेत अवस्था मे पड़े देख उसने किसी प्रकार उसे पलंग पर लिटा दिया और डॉक्टर को फोन कर उसके तलवों पर मालिश करने लगी।

अचेत अवस्था मे पड़े अवनीश को उसने बहुत दिनों बाद भरपूर निगाहों से देखा,आज उसने शराब नही पी हुई थी।ऋतु को ख्याल आ रहा था,सामने पड़ा यह व्यक्ति उसका पति है,यह है तभी तो वह हक जता रही है, यह न हो तो —?

अपने सिर को झटक उसने  इन विचारों से अपने को अलग कर लिया।इतने में डॉक्टर आ गये और उन्होंने अवनीश की जांच करके कहा कि ये किसी मानसिक  तनाव से गुजर रहे हैं, तनाव का कारण जानकर उसे दूर करने का प्रयत्न करने को कहा, साथ ही चेतावनी दी कि यदि अवनीश तनाव से नही उबरता है तो वह डिप्रेशन में जा सकता है।

     ऋतु ने बिना कुछ बोले अवनीश की तीमारदारी करनी प्रारम्भ कर दी।अवनीश को होश आ चुका था,पर वह ऋतु से नजर नही मिला पा रहा था।चोर निगाहों से ऋतु को देखता तो रहता पर कुछ बोल नही पाता।ऋतु निर्विकार रूप से अवनीश की देखभाल करती रही,बिना बोले।

   तीसरे दिन ऋतु ने अपने स्कूल जाने के लिये तैयारी शुरू की तो अवनीश जो अब काफी ठीक था,पर कमजोरी थी,को ऋतु के जाने का अहसास हो गया था।वह  बार बार करवट बदल रहा था,कुछ कहना चाहता था पर एक झिझक थी।

ऋतु तैयार होकर  जाने से पहले अवनीश के कमरे में आई और दवाई किस प्रकार देनी है बताने के लिये ऋतु ने रोज की तरह अपनी सास को माध्यम बना कर बताने लगी।मां जी ये दवाइयां ऐसे ऐसे देनी है।वहाँ मां नही है ये ऋतु भी जानती थी

और अवनीश भी।बस एक दूसरे से बोलने या न बोलने का माध्यम ऐसे ही बना हुआ था।ऋतु जाने को मुड़ी ही थी कि अवनीश ने उसका हाथ पकड़ लिया और बहुत ही दयनीय अवस्था मे बोला ऋतु बस एक बार,बस एक बार आखिरी मौका दे दो ऋतु,मैं तुम्हारी उपेक्षा सहन नही कर सकता।

मुझे माफ़ कर दो ऋतु एक बार बस एक बार,कहते कहते अवनीश ऋतु का हाथ पकड़ कर फफक फफक कर रो पड़ा।ऋतु भी आखिर थी तो उसकी पत्नी ही।बोली तो कुछ नही पर अपने हाथ को पकड़े अवनीश के हाथ पर रख वह भी रो पड़ी।

(((मैं जानता हूँ कुछ सुधि पाठकों की जिज्ञासा शांत नही होगी,वे जानना चाहेंगे ऋतु ने आगे क्या निर्णय लिया,ये भी कहेंगे कहानी अधूरी सी लग रही है, मैंने कहानी का अंत उस मोड़ पर किया है,जहां आगे उसे कोई भी मोड़ दिया जा सकता है।कमेंट करके कृपया प्रतिक्रिया दे,उनके अनुसार आगे क्या होना चाहिये।मैं इस कहानी का दूसरा भाग लिखने का प्रयत्न अवश्य करूंगा।)))

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

*बेटी अब से ससुराल ही तेरा घर है, अब तू यहां की मेहमान है*

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