#गुरुर
लेखिका
आज अनिका के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं। वह सोच रही है कि वह कहां थी और कहां पहुंच गई है।
उसने कभी नहीं सोचा था कि उसका लेखन उसे इस मुकाम पर ले जाएगा।
अनिका को कहानी पढ़ने का बहुत शौक रहा है। वह बचपन से ही नंदन, देवपुत्र आदि पुस्तके बहुत रुचि से पढ़ती थी।
जैसे-जैसे बड़ी हुई इन पुस्तकों का स्थान सरिता, मेरी सहेली, गृह शोभा आदि पुस्तकों ने ले लिया।
इन पुस्तकों को पूरा पढ़ने में उसे एक पूरा दिन भी नहीं लगता था। इसमें जितनी भी कहानियां, लेखआए हों वह जल्द से जल्द पढ़ लेती थी।
हर समय यही सोचा करती कि ऐसा क्यों नहीं होता कि कोई ऐसी किताब आए जिनमें बस कहानियां ही कहानियां हो और वह दिन भर पढ़ती रहे और वह कहानियां कभी खत्म ही ना हो।
इसी कारण से घर में उसे मां से कई बार डांट पड़ती थी। दिन भर किताबों में घुसी रहती है। कभी तो कुछ काम भी कर लिया कर।
पिताजी मां से हंसकर कहते मेरी बेटी जो करती है करने दो उसे ज्यादा रोका टोका ना करो। मेरी बेटी देखना एक दिन जरूर कुछ बड़ा करेगी। मेरा नाम रोशन करेगी।
बढ़ती उम्र के साथ उसका यह शौक जस का तस बना रहा और उसे आदत लग चुकी थी कि जब तक वह कोई किताब या कहानी पढ़ ना ले उसे नींद ही नहीं आती थी।
धीरे-धीरे समय बदला और मोबाइल रूपी चिरागी जीन्न का आविष्कार हुआ और इंटरनेट ने तो जैसे उसमें पंख ही लगा दिए।
अनिका के पास जब पहला स्मार्टफोन आया और उसने व्हाट्सएप और फेसबुक देखना शुरू किया। पहले पहल तो वह गूगल पर कहानियां ढूंढ ढूंढ कर पढ़ा करती थी। फिर धीरे धीरे उसे यह पता चला कि फेसबुक पर भी ऐसे कई ग्रुप हैं, जिनमें लेखकों द्वारा लिखी हुई कई अच्छी कहानियां,लेख प्रेषित किए जाते है।
तो वह इन्हीं ग्रुप्स पर प्रतिदिन कहानियां पढ़ने लगी। उसे अच्छे-अच्छे लेख पढ़ने, जानकारियां पढ़ना बहुत पसंद था।
उसका यह पढ़ने का शौक कब उसे लेखिका बना गया उसे यह पता ही नहीं चला। पहले तो वह छोटी-छोटी कविताएं, लघु कथाएं लिखा करती थी।
धीरे-धीरे उसने अपने आसपास के वातावरण को देखते हुए कई विषयों पर लेख लिखना शुरू किया। ऐसे ही लिखते लिखते वह कहानियां लिखने लगी।
उसने कहानियों को फेसबुक के लेखक, कहानी ग्रुप्स पर पोस्ट करना शुरू किया। उसमें होने वाली प्रतियोगिताओं के भाग लेकर अपनी कहानियों को जनसमूह तक पहुंचाया।
आज उसका मन मयूर नाच उठा है। वह खुशी से फूली नहीं समा रही है। जब उसने यह देखा की कहानी प्रतियोगिता में उसे प्रथम पुरस्कार मिला है।
परिवार में सबको यही लगता था कि दिन भर पता नहीं क्या फालतू काम करते रहती है क्या लिखा करती है।
जब सबको यह पता चला कि अनिका को कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला है, तब सभी को बहुत खुशी हुई।
दिन भर फालतू सी दिखने वाली अनिका का आज यह रूप देखकर उसके परिवार को भी उस पर गुरुर हो रहा है।
उसके पिता ने उसके सर पर हाथ रखकर कहा बहुत-बहुत बधाई हो बेटा तुम तो मेरा गुरूर हो।
स्वरचित
दिक्षा बागदरे
17/05/2024