जानते हैं जी , आज क्या हुआ…?? जैसे ही आरती ने कुछ कहना चाहा…पास में बैठी बिटिया ने तपाक से कहा…मम्मी सीधे-सीधे बात बताना एक घंटे भूमिका मत बाँधना …I और पतिदेव ने भी क्या हुआ बोलकर न्यूज पेपर में ही ध्यान लगाये बैठे रहे ….आरती कुछ बताना चाहती थी पर पति बच्चों के व्यवहार से उसकी इच्छा नहीं हुई आगे बात करने की…I
तभी बाहर से आवाज आई…आरती गणेश पूजा पंडाल में रात में भंडारा है चलोगी क्या…??? हाँ सुधा चलेंगे प्रसाद लेकर आयेंगे …I
आरती के उदास मन ने चलने के लिए तुरंत सहमति दे दिया…. गणेश पंडाल से लौटते वक्त……
सुधा जब अपनी गलती हो ना तो चुप ही रहना चाहिए या सबका ध्यान हमारी तरफ ना जाए इसलिए धीरे से दूसरी ओर मुड़ जाँए….कुछ भी ऐसा करें जिससे वो प्रसंग ही बदल जाए…I बेवजह उन बातों को तूल देकर अपना उपहास नहीं बनवाना चाहिये I भंडारा से लौटते समय आरती ने सुधा को समझाना चाहा…!!
दरअसल गणेश पूजा में भंडारा का कार्यक्रम चल रहा था चूँकि सुधा के लिए घुटने की दर्द की वज़ह से जमीन में बैठना मुश्किल था…I इसीलिये सुधा ने भंडारा से खाना घर ले जाने का आग्रह किया….I बच्चों द्वारा यह कहकर कि आंटी यहाँ पर खाने का प्रावधान है घर नहीं ले जा सकते…I अब सुधा ने इस बात को अपने स्वाभिमान से जोड़ लिया…अरे वाह हम यहां पर खाँए या घर ले जाकर खाँए क्या फर्क़ पड़ता है…I बच्चों द्वारा भी बार बार बोला जाना अभी हम एक को घर ले जाने देंगे तो सभी लोग घर ले जाने की मांग करेंगे…I बच्चे बिल्कुल ठीक बोल रहे थे…I सुधा की इस हरकत पर आरती ने भी समझाना चाहा…I
आरती स्पष्टवादी, निडर और मुँह पर बोलने वाली हिम्मती महिला थी I वह अच्छा बुरा जो भी हो सामने बोल देती थी इसलिए कभी-कभी आरती को तेज तर्रार बोला जाता था I
धीरे-धीरे आरती को एहसास हुआ कि स्पष्टवादिता कभी-कभी व्यक्ति के लिए खुद का दुश्मन बन जाता है..I लोग उससे कतराने लगे हैं ऐसी स्थिति में आरती लोगों को अक्सर उदाहरण देकर समझाने की कोशिश करती…I इस स्थिति में भी लोग आरती से खुश नहीं रहते थे लोग तरह तरह की बातें करते…अपने आप को तीसमारखाँ समझती है..जैसे सब बेवक़ूफ़ है ….न जाने क्या-क्या उपाधियों से नवाजा गया आरती को…I दिल की सच्ची आरती समझ नहीं पा रही थी आज के ज़माने में तेरे मुँह पर तेरा और उसके मुँह पर उसका वाला ज़माना है…I डिप्लोमेटिक बने रहो सब कुछ ठीक…. धीरे-धीरे आरती भी अन्य लोगों की तरह ही व्यवहार करने लगी..!! हालांकि इस तरह के दिखावटी व्यवहार से अंदरूनी उसे कभी संतुष्टि नहीं मिली..।
घर में बच्चे भी आरती को हमेशा कहा करते , मम्मी के पास तो उदाहरण का भंडार है.. बिना उदाहरण के मम्मी का काम ही नहीं चलता I सीधे सीधे कभी नहीं बोलती..I आरती अपने बचाव में सिर्फ यही बोल पाती…
” यदि किसी को देखकर कुछ अच्छा सीखने को मिले तो हर्ज क्या है ” …इस बात पर बच्चे और पति दोनों चीढ़ जाते थे….!
कुछ दिनों बाद बाहर पढ़ रही बिटिया फिर से घर आने वाली थी…!
मम्मी , प्लीज मैं घर में आराम करने आ रही हूँ…आप यहाँ वहाँ जाने को मत बोलियेगा और रोज आंटी लोगों को बुला कर इनसे मिलो उनसे मिलो… ये सब बिल्कुल मत करियेगा..मैं इस बार ये सब कुछ भी फाॅरमेलिटी नहीं करने वाली समझीं ना..I बेटी नव्या ने आरती से स्पष्ट रूप से कहा…I
देखो नव्या मैं तो किसी को बुलाने जाऊँगी नहीं …लेकिन जो घर मे खुद से आयेंगे अब उनसे क्या बोलूंगी बेटा…यदि तुमसे मिलने बोलेंगे तो….? आरती ने अपनी दुविधा बेटी नव्या के सामने रखी I नव्या मम्मी की बातें सुनते ही भड़क गई और चिल्लाते हुये बोली…..साफ साफ बोलो ना मम्मी आप कुछ नहीं कर सकतीं…मैं ही बोल दूंगी उनको मुझे नहीं मिलना है किसी से…I आप घुमा फिरा कर बातें मत किया करो…साफ साफ बोला करो I नव्या गुस्से में बोले जा रही थी नव्या की बात काटकर बीच में ही आरती ने आज सच्चाई से रूबरू करवाते हुये नव्या का असली चेहरा दिखाने की कोशिश की….!!
एक मिनट रुको नव्या…….तुम्हें मेरी हर बात साफ-साफ सुनना है ना तो आज सुनो….
” तुम बेहद बदतमीज , बददिमाग , नकचढी लड़की हो….जिसे थोड़ा भी सामाजिक मर्यादा का ज्ञान नहीं है…I
जब तुम बात करती हो ना तो ऐसा लगता है तुम नहीं तुम्हारा ” गुरुर ” बोल रहा है …! जब तक पर्दे में रहकर मैं तुम्हें समझाना चाहती थी तब तक तुम्हारे समझ में नहीं आ रहा था….I तुम इसी भाषा के लायक हो….सच्चाई बहुत कड़वी होती है I
उस दिन पंडाल में सुधा का व्यवहार भी अनुचित था… मैंने उसे भी समझाना चाहा था पर शायद वो भी तुम्हारी भाषा ही समझती है…I
मम्मी का यह रूप और इतनी बेरुखी पूर्ण बातें सुनकर नव्या हैरान रह गई…I अभी भी आरती चुप होने का नाम नहीं ले रही थी….
तुम हो क्या नव्या , जो लोग तुमसे मिलना चाहेंगे….I मेरे कारण लोग तुम्हें इज्जत दे देते हैं….जिसके लायक तुम हो ही नहीं…. और उसे इज्जत की कद्र करने की बजाय तुम्हें गुरुर हो गया है…. कहते कहते आरती भावुक हो गई और बोली…
तुम्हें साफ-साफ बातेँ सुनना था ना…तो बता दूँ साफ साफ बातेँ …बहुत कड़वा होतीं हैं जो आसानी से हजम नहीं होते I साफ और स्पष्ट बातेँ बोलने और सुनने दोनों के लिए बहुत बड़ा दिल होना चाहिये…I
पहली बार नव्या को लगा जैसे आज पहली बार किसी ने आसमान से नीचे जमीन पर ला पटका….I और वो कोई दूसरा नहीं खुद उसकी मम्मी सही मायने में साफ साफ बोल कर उसकी असली औकात दिखा दीं…I
सच्चाई का ये पल तुम्हें हमेशा याद रहेगा नव्या…!! और इस पल की सीख जिंदगी भर के लिये रख लो वरना तुम बिल्कुल अकेली हो जाओगी…I तुम्हारा गुरुर तुम्हें मुबारक रहेगा… किसी को , किसी से कुछ लेना देना नहीं होता है …आरती ने सहज होते हुये कहा…!!
आरती की स्पष्ट बातों ने नव्या को सोचने पर मजबूर कर दिया था कि ….कुछ सामाजिक मर्यादाएं होतीं हैं… जहां बचपन बीता है आस पड़ोस की आंटियों को एक समय के बाद देखने की , मिलने की उत्सुकता, जिज्ञासा होती ही है जिसे हम आसानी से फिजूल मानकर नकार देते हैं ..और हम यह कभी नहीं सोचते कि मम्मी को सबके सामने कितना मैनेज करना पड़ता है…!
साॅरी मम्मी….आप तो वैसे ही घुमा फिरा के बात किया करो ….! हंसते हुए नव्या ने प्रॉमिस किया इस बार वो स्वयं अड़ोस पड़ोस की आंटियों से मम्मी के साथ उनके घर जाकर जरूर मिलेगी…!
साथियों… आज की सच्चाई है बच्चे सामाजिक मेलजोल से पल्ला झाड़ रहे हैं …उन्हें तो ये भी पता नहीं होता पड़ोस में कौन है , क्या चल रहा है और ना कभी जानने की जरूरत ही महसूस करते हैं… कुछ हद तक अड़ोसी – पड़ोसी ,टोला – मोहल्ला के लोगों से भी मिलिए उनको जानिए सच में बच्चों …आपको आगे बढ़ते हुए देखकर परिवार के अलावा आसपास के लोगों को भी बहुत खुशी मिलती है और वो भी गर्व महसूस करते हैं.. !!
( स्वरचित, मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित ,अप्रकाशित रचना )
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