रिश्तो की जरूरत – रोनिता कुंडु Moral Stories in Hindi

नेहा..! तुम आ गई..? तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए पानी लेकर आती हूं… वही अरनव बैठा टीवी देख रहा था… नमिता के ऐसा कहते ही अरनव थोड़ा चिढ़ गया… थोड़ी देर में नेहा के लिए, नामित पानी लेकर आती है… जिसे पीकर नेहा कहती है… बड़ी राहत मिली दीदी… बहुत गर्मी है, बहुत थक भी गई हूं… आज ऑफिस में काम बहुत ज्यादा था… 

नमिता:   समझ सकती हूं नेहा… तुम जाकर फ्रेश हो जाओ मैं तुम्हारा चाय नाश्ता तुम्हारे कमरे में ही ले आती हूं… नेहा, नमिता की देवरानी थी और वह काम करती थी और नमिता घर संभालती थी… नेहा सुबह-सुबह ऑफिस के लिए निकल जाती थी और शाम को घर वापस आती थी… इसलिए वह घर के कामों में अपना समय बिल्कुल भी नहीं दे पाती थी

और नमिता को इससे कोई दिक्कत भी नहीं थी… पर नामित के पति अरनव को इस बात से बड़ी चिढ़ थी… उसे लगता था नेहा मालकिन की तरह ठाट दिखाती है और नमिता नौकरानी बनकर उसकी जी हुजूरी करती है… 

खैर चाय नाश्ता लेने जब नमिता रसोई में आई, तो अरनव उसे जाकर कहता है… तुम मेरी बात नहीं मानोगी ना..? मतलब तुमने ठान हीं लिया है कि तुम्हें नेहा की जी हुजूरी करनी ही है… इतनी छूट भी सही नहीं… वह काम करके अपनी सैलरी तुम्हें नहीं देती जो तुम उसकी नौकरी पर तैनात हो… अगर तुम इस तरह से उसकी सेवा करोगी तो उसे लगेगा वह उसका अधिकार है… तुम सुबह का देखती हो, उससे कहो वह रात की रसोई देख ले… 

नमिता:   यह आप हमेशा ऐसे ही बातें क्यों करते हैं..? वह दिन भर काम कर कितनी थक जाती है…? ऐसे में आकर वह खाना कैसे बनाएगी…? मैं तो दिन भर घर में ही रहती हूं, तो अगर मैंने रसोई संभाल भी लिया तो क्या..? यह मेरा अपना ही तो घर है… फिर नहा के आने से पहले भी तो मैं यह सब अकेले ही करती थी..?

फिर अब भला क्यों दिक्कत होने लगी..? और इन सब में सैलरी की बात कहां से आ गई..? हर चीज बस पैसों के लिए थोड़ी ना की जाती है… हम सब एक ही परिवार के सदस्य हैं तो एक दूसरे का दुख तो हमें ही देखना पड़ेगा ना..? 

अरनव:  नमिता..! तुम बहुत भोली हो… तुम्हें दुनियादारी की बिल्कुल भी समझ नहीं है… जरूरी नहीं तुम जैसा सोचो सभी की सोच वैसे ही हो… नेहा की चालाकी तुम नहीं देख पाती, पर मैं देख पाता हूं, तुम उसे परिवार समझ रही हो ना..? पर वह बस अपना काम निकलवा रही है तुमसे… अगर तुम्हें यकीन ना आए तो मेरे कहने पर उसकी एक परीक्षा ले लो… तुम्हें सब पता चल जाएगा 

नमिता हैरान होकर बोली… कैसी परीक्षा..?

 अरनव:  कल तुम सुबह जल्दी मत उठना और कहना आज तुम कुछ नहीं कर पाओगी, तुम्हारी तबीयत बहुत खराब है, फिर देखना उसका जवाब… 

नमिता:   क्या होगा उसका जवाब..? 

अरनव:   वह किसी तरह सुबह का नाश्ता बनाकर, मेरा आज ऑफिस जाना जरूरी है, यह कह कर निकल जाएगी… क्योंकि उसे पता है तुम किसी भी तरह कर ही लोगी… या फिर आपने बाहर खाकर रात का खाना बाहर से ही ले कर आ जाएगी… 

नमिता:   अच्छा आपको ऐसा लगता है..? फिर ठीक है देखते हैं यह आजमा कर…

 अगले दिन नमिता ने ठीक वैसा ही किया, जैसा उसे अरनव ने कहा था, तो नेहा यह सुनकर कहती है… दीदी आज मैं छुट्टी नहीं ले सकती… मैं कुछ काम निपटा कर चली जाती हूं और बाकी रात का खाना आज बाहर से लेकर आऊंगी… नेहा के यह कहते ही अरनव नमिता की ओर मंद मुस्कुराता है और इशारों में मानो कहता है… देखा मैंने कहा था ना..? 

नमिता को भी नेहा की बातों का बुरा लगा और वह सोचने लगी क्या अरनव सही सोच रहे थे..? वह यह सब सोच ही रही थी, इतने में नेहा चली गई… उसके जाते ही अरनव नमिता से बोला… देखा अब समझ आया मैं क्या कहना चाह रहा था..? तुम उसकी इतनी परवाह करती हो, पर उसे तुम्हारी बिल्कुल भी परवाह नहीं… नमिता सर झुकाए उदास खड़ी

अरनव की बातें सुन रही थी… तभी नेहा एक डॉक्टर को साथ लिए वापस आई… उसे देख नमिता ने पूछा… यह कौन है नेहा और तुम तो ऑफिस गई थी ना..? वापस क्यों आई..? 

नेहा:   दीदी… यह डॉक्टर है… आपको देखने आए हैं… अगर आपको मैं डॉक्टर के पास चलने को कहती तो आप कभी नहीं मानती और कहती घर में दवाई है मैं उसे खाकर ही ठीक हो जाऊंगी… पर आजकल बीमारियां बहुत तेजी से बढ़ रही है, तो शुरुआत में हीं डॉक्टर दिखा लेना बहुत अकलमंदी की बात होती है … इसलिए मैं ऑफिस के बहाने निकल कर डॉक्टर को ही अपने साथ ले आई…  सर आप जरा देखिए इन्हें… 

नमिता हैरान होकर बोली… पर तुम्हारा ऑफिस..? 

नेहा:  वह तो मैंने आज छुट्टी ले ली… आपकी तबीयत खराब हो तो मैं यहां आपके पास ना होकर ऑफिस में रहूं..? यह आपने कैसे सोचा दीदी..? आज आपकी वजह से मेरा शादी के बाद भी काम करने का सपना पूरा हो पाया है… आप हर हाल में मेरे साथ रही हो, तो मैं आपको इस हाल में अकेला कैसे छोड़ू..? और दीदी भले ही मैं काम करने जाती हूं

पर उसमें आपकी भी उतनी ही मेहनत होती है… एक मर्द जब काम करके वापस घर आता है तो, उसे पानी देने वाली उसकी पत्नी होती है और जब वही एक औरत काम करके वापस घर आए, उसे खुद पानी लेकर पीना पड़ता है… पर मुझे हमेशा इस घर में आकर मर्दों वाली अनुभूति हुई है, क्योंकि आप हमेशा मेरा ध्यान रखती हैं… दीदी बड़ी भाग्यशाली हूं मैं जो मुझे आप जैसी जेठानी मिली… अरे आप पर तो ऐसी 10 नौकरियां कुर्बान… 

नेहा के इस बात पर अरनव सिर झुकाए खड़ा रहता है.. तभी नमिता उसके पास जाकर कहती है… देखा आज फिर मेरा विश्वास जीत गया… आपको पता है आजकल घरों में प्यार की जगह क्लेश ने क्यों ले ली है..? क्योंकि हम हमारे रिश्तों पर हुकुम चला कर उस पर अपना जोर चलाना चाहते हैं… पर यह रिश्ते कच्ची डोर की तरह होते हैं..

जितनी मजबूती से पकड़ेंगे, टूटने की गुंजाइश उतनी ही बढ़ जाएगी और जो इसे प्यार और विश्वास के साथ हल्के हाथों से मोतियों में पिरोया जाए, यह उतनी ही सुंदर और उपयोगी हो जाती है… यह कहकर नमिता नेहा के पास जाकर कहती है… नेहा माफ कर दो…  मुझे डॉक्टर की कोई जरूरत नहीं है, मैं बिल्कुल ठीक हूं… वह तो हम तुम्हारी परीक्षा ले रहे थे… जिसमें तुम 100 में से 100 लाकर पास हो गई हो… यह कहकर नमिता पूरी बात नेहा को बता देती है और उससे माफी मांगती है… 

नेहा:   दीदी चलो यह अच्छा किया जो मन में है, वह कह दिया वरना यह धीरे-धीरे हमारे रिश्ते में दरार ला देती… पर अब हमारी डोर और मजबूत हो गई है और मेरी भगवान से यही प्रार्थना है कि यह रिश्ते की डोरी कभी टूटे ना… 

दोस्तों मेरी कहानी को पढ़कर आप कहेंगे, यह सब कहानी में ही संभव है… कोई देवरानी जेठानी ऐसे नहीं होते… पर विश्वास कीजिए यह कहानी मेरी ही एक परिचित की है… बस थोड़ा नाम और थोड़ा मनोरंजन के लिए कुछ अलग लिखा है… पर है यह एक वास्तविक कहानी ही… रिश्ते अच्छे हैं या बुरे …यह हमारे ऊपर ही निर्भर है…

कभी निस्वार्थ भाव से कुछ करके देखो उसका परिणाम अच्छा ही होता है… हां पर जहां तुम्हें पता चल रहा है कि तुम्हारा इस्तेमाल हो रहा है… वहां से हट जाना भी तुम्हारी जरूरत होती है..

धन्यवाद 

#रिश्तो की डोरी टूटे ना 

रोनिता कुंडु

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