कह रही हैं मम्मी जी?… सीधे मेरे घर नहीं आएंगी साक्षी ने आश्चर्य से पूछा
आखिर इतने दिनों बाद मम्मी जी ( सासू मां) को छुट्टी मिली है, उसके पास आने के लिए.. कितना कहते – कहते.. कभी मम्मीजी को फुर्सत नहीं, कभी उनकी तबियत ठीक नहीं.. फिर उसी शहर में ही रहने वाली निम्मो बुआ ने माता की चौकी रखी थी… कभी पड़ोस वाली आंटी की बिटिया की गोद भराई का कार्यक्रम, जिनसे मम्मी की बहुत ज्यादा घर वाला संबंध था ,तो मम्मीजी को रुकना ही था! सब कुछ संभालने के लिए… अब जैसे की क्या तैयारी होनी चाहिए?, कैसे कपड़े वगैरह खरीदने हैं? सब कुछ करवा कर, निपटा कर ,अब मम्मीजी को फुर्सत मिली है जो अपनी बहू के पास आ जाएं… कुछ दिनों के लिए..
उस पर से यह शिगूफा कि मोहिनी मौसी के घर पहले रूकेंगी, एक तो उनसे ( भी) बहुत दिनों से मिली नहीं हैं,तो उनका घर जो साक्षी के घर से एक स्टेशन पहले ही है, वहां पहले रुक कर आएंगी
मैं रात को पहुंच जाऊंगी, तुम अगले दिन को शाम तक आ जाना.. लेने… बहुत दूर नहीं है तुम्हारे घर से
वो तो ठीक है मम्मी.. शाम को तो थोड़ी दिक्कत हो जाएगी,
इनकी भी इंपार्टेंट मीटिंग है, तो यह भी नहीं निकल पाएंगे.. अच्छा ऐसा करुंगी .. दोपहर को जब मिट्ठू को लेने स्कूल के लिए निकलूंगी तो ड्राइवर के साथ , निकल आउंगी… आपको लेते हुए घर वापस आ जाउंगी, मौसी के घर के लिए उधर से जाना पास रहेगा..
ठीक है बेटा… यही ठीक रहेगा..
,ये मोहिनी मौसी,सगी मौसी तो नहीं हैं.. मम्मी जी के दूर के रिश्ते की बहन लगती हैं… इतने दूर की कि अभय( साक्षी के पति) को रिश्ता समझाने लगो तो उनका तो बस दिमाग़ ही घूम जाता है
रिश्ते और रिश्तेदारी जोड़ने/ समझने में जरा कच्चे ही हैं
तो बस इतना समझ लो.. मम्मी को वो बहुत प्यार करती हैं( ऐसा मम्मी जी कहती हैं)… और मम्मी उनको.. गाहे-बगाहे मिल भी लेती हैं… और हां उनके ,उनका खान-पान,रहने सहन…. यानि कि हर चीज का गुणगान मिलने के बाद महीनों करती रहती हैं…
ठीक है जैसी मम्मीजी की इच्छा साक्षी की गाड़ी, बाहर रूकी,…
साक्षी ने एड्रेस फिर से मिलाया
यही तो घर है
इतना बड़ा बंगला
मम्मीजी बताती थीं कि बहुत बड़े आदमी हैं… कभी मिलो उन लोगों से… ऐसे लोगों से संबंध बना कर चला करो,अपना ही फायदा होता है, मगर कभी संभव ही नहीं हुआ
आज आना हुआ
मम्मी जी को ले जाने के लिए
आज मौसी जी के घर गेट टू गेदर है.. कुछ लोग इकट्ठा हुऐ हैं…
अंदर दरवाजा खोल कर हाल में घुसी तो
शायद,शहर के ( तथाकथित)अभिजात्य वर्ग के लोग इकट्ठा हुए हैं
नमस्ते मौसी जी.. नमस्ते मौसा जी.. साक्षी अपनी बेटी का हाथ पकड़े हुए खड़ी थी.. ना चाहते हुए भी बारिश के छींटें उसकी साड़ी पर पड़ ही गए थे.. बिटिया भी दिन भर की थकी मांदी दिख रही थी,बाल भी ( थोड़े) बिखर गए थे..
सभी उसे ऐसीअजीब सी निगाहों से घूर रहे थे… मानों इतने दिनों बाद वो अपराधी दिख गया हो, जिसे सारे शहर की पुलिस ढूंढ रही है
अचकचाई सी साक्षी, मम्मी जी के बगल में बैठ गई
कैसी साड़ी पहन कर आई हो? तुम्हे बताया था ना कि कैसे बड़े लोग हैं..
मम्मीजी ने धीरे से दांत पीसते हुए साक्षी से कहा
मौसी जी के सामने आने पर मुस्कुरा कर रह गई
तुम्हारी मम्मी जी को लंच करा दिया है.. तुम लोग भी चाहो तो.. यहीं खा लो.. मौसी जी ने आकर कहा
भूख तो उसे और मिट्ठू दोनों को लगी ही थी, स्कूल से लेकर सीधे यहीं निकल आई थी… मगर इतने औपचारिक तरीके से पूछने पर साक्षी ने बस यही कहा
नहीं नहीं,हम लोग घर पहुंच कर खा लेंगे,.. अभी घर के लिए निकलना ही पड़ेगा वरना देर हो जाएगी
( हम लोग तो सामने लाकर खाना रख देते हैं, सिर्फ पूछते नहीं.. और मम्मी जी के लिए भी ऐसा कहना कि उन्हें खाना खिला दिया है, साक्षी को कुछ रास नहीं आया.. पर बगैर कुछ बोले वो लोग वहां से निकल पड़े)
, पहाड़ी रास्ते पर बारिश के मौसम में कैसे संभालते हुए गाड़ी चलाना पड़ता है … उसके साथ पूरे रास्ते सासू मां की डांट भी खाते हुए जाना है..
बताया था ना तुम्हें? कोई ढंग की साड़ी पहन कर आती . और ये मिट्ठू, कैसे बाल बिखरे हुए हैं इसके…. कितनी बड़ी पोजीशन पर मेरा बेटा है.. कुछ शो आफ करना सीखो… मेरा तो सिर दर्द हो रहा है… तुम तो नाक कटवा के रख दो चार लोगों के सामने
मम्मा, दादी की नाक तो सही सलामत है,और वहां सिर्फ चार लोग कहां थे?… और भी बहुत सारे लोग थे… दादी ,किन चार लोगों को गिन रही हैं??, मिट्ठू के कहने पर साक्षी ने उसे आंखें दिखाई
बहुत चटर -पटर बोलने लगी है
आपका सिर क्यों दर्द हो रहा है दादी जी?… मिट्ठू ने पूछा
अरे दीदी के घर लोग आने वाले थे ना, इसलिए दीदी ने कहा थोड़ा स्मार्टली तैयार होना.. इसलिए ये इतना टाइट जूड़ा, पिन्स के साथ बना लिया… ( अब झेला नहीं जा रहा है)
तो किसने बोला था?…. सिर पर इतना बड़ा बया ( पक्षी) का घोंसला बनाने को.. उससे तो अच्छा था वैसी ही ढीली ढाली चोटी बना लेती जिसमें आपको आराम मिलता है, जैसा घर में बनाती हैं… ना आपका इतना सिर दर्द होता ना मेरा.. जो आपने गुस्सा मेरे ऊपर उतारने में दिया है
ना ना… ऐसा कुछ कह ना सकी साक्षी… सासू मां के हाई फाई, सोसायटी और रूतबे के आगे उस मिडिल क्लास लड़की की क्या बिसात?… जो कुछ कह सके…. अपना भी व्यू रख सके?…. वरना मोहिनी मौसी के साथ इस मुलाकात में कहने को बहुत कुछ उसके पास भी था..
वो तो बस चुपचाप सासू मां की बगल में पीछे वाली सीट पर बैठी थी… गर्दन सीधी करके सामने देखते हुए … मानों उसकी गर्दन अगल बगल मुड़ती ही ना हो… या सामने वाली सड़क को देखने का ऐसा मौका फिर कभी नहीं मिलेगा…
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मम्मी जी यहां छुट्टियां बिताने आई हैं, मगर ना ख़ुद फुर्सत में रहती हैं ना साक्षी को रहने देती हैं
साक्षी का हर काम उन्हें अपने स्टैंडर्ड के बिलो लगता है
एकं एक सांस भी उसे सोच समझ कर लेनी पड़ रही है
मम्मी को आए अभी कुछ दिन ही हुए थे कि
साक्षी, मोहनी मौसी की बहू के घर एक पार्टी है उसमें चलना है
???
सासू मां ने तो जैसे साक्षी के सिर पर बम फोड़ दिया
मगर मां..
ठीक है तुम चली जाना, मम्मी और मिट्ठू के साथ , मिट्ठू की भी छुट्टी है… मैं भी शाम को आफिस से वहीं आ जाउंगा.. अभय ने भी जैसे अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी
ये मोहिनी मौसी की बहू,इसी शहर में रहती हैं… ऐसे तो जब हम इस शहर में नए नए आए तो कभी हमसे मतलब ना रखा… कभी कोई पूछने नहीं आया कि हमें कोई जरूरत है क्या… अब ऐसे लोगों के घर रिश्तेदारी निभाने जाओ…
कभी नहीं लगा इस शहर में कोई ऐसे रिश्तेदार हैं , जिनसे हम किसी किस्म के सहयोग की अपेक्षा रख सकते हैं… अब मम्मी जी के कारण जाना पड़ेगा… मोहिनी मौसी भी आने वाली हैं… अब तो मम्मी जी को मना भी नहीं कर सकते
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साक्षी, शनाया ( मोहिनी मौसी की बहू) के घर पहुंची
घर में घुसते ही
अरे तुम अपनी सैंडिल पहन कर भीतर आ गई?…. इतनी महंगी कालीन तुम्हें दिखाई नहीं पड़ रही?.. चलो बाहर जाओ( निकलो) शूज़ रैक में उतार कर आओ
ना कोई हलो – हाय… ना प्रेम से मिलना.. पहला शब्द यही?
घर में घुसते ही बाहर निकलने को बोला?
मम्मी जी ने खुद छांट कर उसकी मंहगी साड़ी निकाली थी.. और ज्वेलरी भी.. मिट्ठू की ड्रेस भी
मगर पूरी पार्टी में साक्षी… एक जगह बुत बनी बैठी रही
अभय भी आफिस से वहीं पहुंच गए
किस जज्बे से आए थे.. चलो एक लोग जो( कहने को) रिश्तेदार ही हैं.. उनसे दोस्ती/ परिचय बढ़ेगा.. कभी वक्त बेवक्त काम आएंगे.
मगर… उनका डिप्रेस चेहरा भी बहुत कुछ कह रहा है
खाने के बाद कुल्फी सर्व की गई
मौसी जी घमंड़ से बता रही थी… किस मंहगे ( बड़ी) दुकान की है…. और ये भी की वो लोग कितना डाउन टू अर्थ हैं…. अभी भी कुल्फी पसंद आती है…. ब्रांडेड आइसक्रीम नहीं
मिट्ठू सहम के एक कोने में बैठी थी… ना तो खाना खुशी – खुशी खा पाई थी ना ही अपनी कुल्फी ही जो मिट्ठू और अभय दोनों को बहुत पसंद थी
मम्मी जी के अलावा तीनों का लगभग यही हाल था
मगर कोई रिएक्शन नहीं दे रहा था
लौटते समय बारिश की हल्की बूंदें पड़ रही थीं
गाड़ी घर की ओर सरपट भागी जा रही थी..
रूको – रूको अभय… अचानक साक्षी ने कहा
सड़क के नुक्कड़ पर साक्षी का फेवरेट मटका कुल्फी वाला पन्नी के शेड में खड़ा था
साक्षी ने बाहर निकल कर सबसे पहले बालों का जो स्टाइलिश जूड़ा बनाया था मम्मी जी के कहने पर,उसे खोल कर बाल खुले छोड़ दिए
मिट्ठू का हाथ पकड़ कर दोनों जोर से पानी में छपाक से कूदे
ये…ई
सबके लिए कुल्फी.. मम्मी जी आप भीतर ही खाएंगी या बाहर आकर पानी में कूदते हुए
???
गुस्से में लाल पीली होते हुए मम्मी जी ने उसे देखा
कितना भी एलीट क्लास सिखाने की कोशिश कर रही हूं इस बहू को… मगर… अब यहां रास्ते में सीन क्रिएट नहीं करूंगी… घर चल कर समझाती हूं तुम्हें… मम्मी जी ने गुस्से को दबाते हुए कहा.. पब्लिक प्लेस में सोफिस्टिकेटली गुस्सा दिखाया
मम्मी जी मैं आपको यहीं समझाती हूं… घर पहुंचने का इंतजार करके मन में घुन्नाना क्यूं?… अभी मन में आया है मैं यहीं बोलूंगी… मैं बस ऐसी हूं.. और ऐसी ही रहूंगी..
इतनी शो बाजी की जिंदगी कभी जी ही नहीं है… तो मम्मी जी दिखावे बाजी का बोझ सिर पर रखकर तनाव पालने से अच्छा है… बगैर दिखावे बाजी की साधारण जिंदगी जी जाए… और कुल्फी को एटीकेट्स से नहीं…. ऐसे चूस – चूस कर खाते हैं.. तुम भी खाओ बेटा.. फ्री होकर..
और हाथ में टपक आए तो उसे चाट भी लेते हैं?
मम्मी जी अब तक अपनी बहू को सोफिस्टिकेशन सिखाने बाहर आ चुकी थीं…
हां बिल्कुल… सही पकड़ा है आपने… ऐसे मस्ती में बाहर आकर खाइये ना सारा का सारा टेंशन जो मौसी जी के घर से लेकर आई हैं… यहीं इन बारिश की बूंदों के साथ बह ना जाए तो कहिएगा..
मैं घर चल कर समझाऊंगी तुम्हें.. आगे से उनके घर कैसे बिहेव करोगी?
आप यहीं समझ लीजिए मम्मी जी… मैं आपका बहुत सम्मान करती हूं मगर मौसी जी जैसे अनावश्यक रिश्ते अब मुझ पर थोप नहीं पाएंगी… मैं ऐसे ( तथाकथित) रिश्तेदारों के साथ आगे से संबंध नहीं निभाउंगी..
??
जिनसे दिल मिले और मैं बगैर किसी किस्म की दिखावे बाजी का बोझ सिर पर लिए संबंध निभा सकूं, उनसे ही संबंध निभाउंगी
नफा – नुकसान की गणना… संबंधों को निभाने में नहीं की जाती..
क्या अभय तुम नहीं बोलोगे कुछ?.. मम्मी जी ने गुस्से में पूछा
बस मम्मी यही कहना चाह रहा था.. मैं भी… कब से..
नशा चढ़ गया है तुम्हारे सिर पर… मनमानी करने का?
अब गाड़ी में अंदर बैठो… ( बहू रानी, बहुत हो गया)
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गाड़ी घर की ओर सरपट दौड़ी जा रही थी
साक्षी,अगल बगल भी देख रही थी… खिलखिला भी रही थी
सिर पर कोई बोझ नहीं था… बाल बिखर गए हैं तो बिखर जाए… साड़ी पर बारिश के छींटें पड़ गए हैं तो…. होते रहे
सच बोल देने से सिर का तनाव भी उतर गया और
कैदी की तरह जेलर (?) के सामने हर बात में सिर्फ हां में सिर हिलाने का बोझ भी नहीं रहा
सच बात है
इतनी दिखावे बाजी से रिश्ते निभाने से तो दिल दूर ही रह जाते हैं !
अगर हम चाहते हैं कि रिश्तों की डोर टूटे ना, तो बगैर दिखावे बाजी…. वाले रिश्ते निभाइए…. क्योंकि अभिनय हम कब तक कर सकेंगे?……. हकीकत और बगैर दिखावे के जीने में ही जीने का असली आनंद है!!
अब मम्मी जी और साक्षी एक बेहतर माहौल में परस्पर संबंध निभाएंगे ओर और दूसरों के साथ भी
बस ,एक बात साफ साफ़ कहने के बाद
बस सासू मां.. अब मुझसे ना हो पाएगा
ऐसे सो काल्ड रिश्तेदारों के साथ संबंध निभाना
आपको क्या सही लगता है मित्रों?…. साक्षी ने सही कहा या नहीं
बोल दिया है लाइक कमेंट, किए बिना जाना मत
किसी दिखावे बाजी की चिंता किए बगैर
आपकी सखि
पूर्णिमा सोनी
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
कहानी प्रतियोगिता #रिश्तो की डोर टूटे ना
शीर्षक — मुझसे ये ना हो पाएगा…
VM
Mere hisaab se to Sakshi ne bilkul sahi kiya 😊😌….
Of course