जैसे विधाता ने उसके प्रारब्ध में वैधव्य मुकर्रर कर दिया हो।
इस वक्त उससे उलझना ठीक नहीं था। इसलिए अपने तीव्र होते रुदन के स्वर को शांत कर मैं मरे हुए मन से वहां से वापस लौट आई।
वहां से नैना सीधी घर चली आई थी। जहां अनुराधा जिसने नैना की माया से हुई बातचीत सुन ली थी उसके इंतजार में बैठी है। नैना का विषाद से भरा चेहरा देखकर ,
” आखिर क्या बात है ? कुछ हमें भी बताओ “
हिमांशु को लेकर अनुराधा हमेशा उलझन में रहती है। उसे नैना और उसके संबंधों का बखूबी ज्ञान है।
और अब तो पिता की मंजूरी के मुहर भी इस संबंध पर लग गई है।
पर शोभित का नैना के प्रति रागात्मक झुकाव भी उससे छिपा नहीं है।
इसे लेकर उसने क्या और कितना समझा है ?
यह तो उसका हृदय ही जाने
पर यह त्रिकोणीय प्रेम संबंध वाली बात उसकी साधारण , सहज , सुलभ बुद्धि से परे है।
उसके समझ में बस इतनी सी बात आती है कि,
” प्यार भावुक होता है, इसमें कम और ज्यादा जैसा कुछ नहीं होता ”
लेकिन अगर इसे नैना की नजर से देखा जाए तो ?
” हर पुरुष ‘ हिमांशु ‘ जैसा तो होता है।
पर ‘शोभित’ जैसा हर्गिज नहीं “
नैना और बर्दाश्त नहीं कर पाई उसके कंधे पर सिर रख फूट- फूट कर रो पड़ी।
अनुराधा ने भी चुप नहीं कराया मन भर के रो लेने दिया ,
” कितनी बार जिंदगी का जवाब सिर्फ जिंदगी होती है “
सखी सरीखी… भाभी के सांत्वना भरे दो बोल उसकी चेतना को जगा गए
आगे …
अगला भाग
डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -105)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi