नैना ने एक लंबी सांस ली और उमड़ते आंसुओं को दबाने की व्यर्थ चेष्टा करते हुए — ,
“ठीक कहती हो मुन्नी !
इस समय मैं दुखी और दयनीय हो रही हूं।
तुम्हारे दुःख का कारण तुम्हारी अनाथ अवस्था है, तुम्हारा अपना कहने को इस संसार में कोई नहीं है। यह तुम्हारे कष्ट का मुख्य कारण है।
पर मैं ?
मैं तो सनाथ हो कर भी अनाथ हूं ,सब कुछ रहने पर भी मै अंदर से रीती हूं “
नैना पर अवसाद की छाया छाती देख कर मुन्नी संभल गई।
” तुम बहुत स्वाभिमानी हो दीदी “
बोल आवेश में भरी उसे गले से चिपका लिया एवं आंखों से बहते हुए आंसुओ को बाईं और दाईं गाल से पोंछती हुई उसे चूम लिया,
” नहीं, नहीं कतई नहीं दीदी, आप तो प्रेम और ममता की सागर हो “
कुछ देर तक दोनों उसी अवस्था में बैठी रहीं जब नैना की अवस्था कुछ स्थिर हुई तब मुन्नी साधिकार ,
” अब चलो उठो , औफिस जाने के लिए तैयार हो जाओ मैं ब्रेकफास्ट तैयार कर रही हूं “
बोल कर किचन में जाने को तत्पर है।
नैना घुटने पर घुटना रखे सोफे पर बैठी है। एक कुशन बगल में और एक गोद में पड़ी है।
नये घर और मुन्नी के सफल संचालन ने उसकी घर की अवधारणा बदल कर रख दी है।
दिन के करीब डेढ़ बज रहे थे जब नैना औफिस पहुंची थी। जहां शोभित उसके इंतजार में बैठा हुआ था,
” तुम्हें कुछ बात करनी थी इसलिए यहां चला आया पता चला तुम किसी कारणवश देर से आने वाली है तो तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं”
“अगर तुम्हें यहां बात करने में दिक्कत है तो घर पर आ जाऊं?”
” डोंट भी सिली !”
नैना रोज वाली कुर्सी पर न बैठकर बगल में रखे सोफे पर पैर उपर मोड़ कर बैठ गई।
उसने हल्के ताबंइ रंग की साड़ी पर काले रंग की लो कट ब्लाउज़ पहन रखी है। गले में चांदी की बड़ी से लाॅकेट वाली जंजीर लटक रही है। जो उस साड़ी के मैचिंग की है और उस पर खूब फब रही है।
कुछ क्षण के लिए शोभित उसे मुग्धभाव से देखता रहा।
कोमल त्वचा, गर्व भरे समुन्नत यौवन, वेधने वाली आंखें — जो सामने वाले पर अपने प्रभाव अच्छी तरह से जानती हैं।
बुद्धिमान , पर हालात की वजह से कुछ सकुचाई हुई सी…
“बहुत सुंदर दिख रही हो, यह लाॅकेट ? ,
” हिमांशु ने दिया है “
नैना ने नर्म स्पर्श से लाॅकेट छू लिया जैसे हिमांशु को छू रही है।
उसे ऐसा करते देख शोभित संकुचित हो गया। यह भाव उसके चेहरे पर स्पष्ट प्रकट हो उठे।
जिसे परख कर नैना मुस्कुराई ,
” तुम नहीं समझोगे ,
इट्स ए वे ऑफ सेइंग – आई मिस यू “
” ओ… आई सी !”
शोभित ने जोरदार ठहाका लगाया जिससे उसके मन की भड़ास निकलती दिखाई दी।
उसने पैकेट से सिगरेट निकाली और आराम से सुलगाई।
” बहुत मज़े में दिख रहे हो ? “
” हां, अब कुछ काम की बात करें ? “
नैना ने घड़ी देखी। अभी औफिस में बहुत काम है। रात में सपना के घर भी जाना है ,
” कल शनिवार है , क्यों ना तुम मेरे घर आ जाओ “
नैना का खुला निमंत्रण ,
” इससे अच्छी बात क्या होगी, वहां इत्मीनान से बातें हो पाएगी “
शोभित आत्म विभोर हो गया।
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -80)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi