नैना — जानते हो सुशोभित,
मेरे जीवन की शायद यह पहली या आखरी गलती थी जिसने मुझमें एक बदलाव ला दिया था।
मैं ऐसी तो नहीं थी!
गलतियां तो मैं शुरू से ही करती थी, पर उसकी सजा इतनी जल्दी मंजूर नहीं करती।
मई- जून की गर्मी से पिघलकर मेरे शरीर की बर्फ जैसे मेरे मन पर जम गई हो ।
अब मेरा क्या बनेगा ?
इस नुकीले धारदार सवाल ने दिन-रात मुझे बेधना शुरू कर दिया था।
घर में जया दी की शादी की चर्चाएं जोर- शोर से चल रही थी।
इधर बारहवीं के इग्जाम नजदीक आ रहे थे। सबने पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना शुरू कर दिया था।
इसके साथ ही आगे बारहवीं के बाद के रंगीन सपने भी बुने जाने लगे थे एक दिन ट्यूशन की क्लास में निभा ने घोषणा की ,
” पापा ने आगे की पढ़ाई के लिए मुझे दिल्ली भेजने का निर्णय लिया है “
उसके पिता शहर के मानिंद व्यक्ति थे। अन्य लड़कियां जिसमें मैं भी शामिल थी।
उसे ईर्ष्या से देख रहे थे और उसके भाग्य को सराह रहे थे ,
” उसके धनवान पिता ने उसकी खुशियों का बीमा करवा दिया “
चूंकि हम सब छोटे शहर से थे। तो सबकी तरह मेरी इच्छा भी आगे मेट्रो सिटी में जाकर पढ़ने की थी।
पर मेरा क्या होगा ?
शोभित !
” मैं अच्छी तरह जानती थी,
कि वहां रहते हुए तो मेरी स्थिति जया दी से भी बद्तर होने वाली थी “
तभी कुछ और न समझ आ पाने और ना कुछ कर सकने की वजह से मैं उस डांस एकेडमी में जाने लगी जहां तुमसे मुलाकात हुई।
एक नई नैना का जन्म हो चुका था।
” तो आगे तुम्हारा इरादा दिल्ली जा कर पढ़ाई करने का है या मेरे साथ मेरी नयी नाटक कंपनी ज्वाइन करने का है ? “
” शोभित ,
फिलहाल मैं कुछ सोच पाने की स्थिती में नहीं हूं। साथ ही ऐक्टिंग के मामले में मैं बिल्कुल अनाड़ी हूं “
नैना ने इस बात को टालने की कोशिश करते हुए मोहक मुस्कान के साथ कहा।
” मैं समझ नहीं पाया नैना , तुम्हारे मन का एक हिस्सा मेरे लिए हमेशा पहेली बना रहता है “
” ऐसी बातें मत करो शोभित , आज-कल में जया दी को देखने लड़केवाले आने वाले हैं।
मुझे अब जाना होगा “
शोभित कुछ आगे बढ़कर ,
” ठीक है ! चलो मैं तुम्हें छोड़ कर आता हूं “
नैना रात गए शोभित के घर से वापस आ गई थी।
बहरहाल ,
दो दिनों बाद विनोद भाई के एक दोस्त के छोटे भाई जो दिल्ली में ही किसी प्राइवेट जौब में थे अपनी अम्मा के साथ आए थे।
उसी दिन बाबा हंसते – हंसते ,
” क्यों री , हर समय मां और दीदी की जान खाती रहती है चल आज किचन में जा , दोनों की हेल्प कर “
उनसे ऐसे परिवर्तन के लिए मैं तरस कर रह गई थी।
खूब अच्छे , लंबे कद वाले स्मार्ट से ‘रोहन कुमार ‘ हल्के नीले रंग की फुल बांहों वाले टी शर्ट और जींस में जंच रहे थे।
इसे संयोग ही कहेंगे!
जया ने भी नीले रंग की साड़ी पहन रखी थी।
कंधों पर पल्लू। पीठ पर जब-तब डोलती मोटी सी चोटी।
आगे …
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -19)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi