मयूरी और परिंदा -शिव कुमारी शुक्ला Moral stories in hindi

मयूरी एक आठ बर्षीय बच्ची सुबह के समय अपनी बालकनी मे बैठी  कामिक्स पढ़ने में तल्लीन थी। तभी एक परिन्दा घायल अवस्था में वहाँ आ गिरा। वह तड़प रहा था। उसके शरीर से खून निकल रहा था। पहले तो उसे देख वह सहम गई, फ़िर उठकर उसके लिए पानी लाई और अपने मम्मी- पापा को भी बुला लाई।

मम्मी इसको देखो विचारे को किसी ने मारा है। बच्ची की उस परिन्दे के प्रति सहृदयता को देखते पापा ने उसे उठा कर पानी पिलाया फिर घाव को देखा तो कुछ ज्यादा ही कटा था शायद पतंग की डोर से। तभी मयूरी चिल्लाई पापा जल्दी -करो इसे डाक्टर को दिखाओ वर्ना इसकी तबीयत ज्यादा खराब हो जाएगी।

जल्दी चलें पापा में भी चलती हूँ। उसने उस परिंदे  को अपने हाथ में उठा लिया। किन्तु  पापा ने कहा रुको मयूरी और एक पट्टी बाँध दी। अब वे दोनों डाक्टर के पास गये। डाक्टर ने उसकी मरहम पट्टी कर दी। और तीन चार दिन बाद दुबारा लाने को कहा। अभी वह  उड़ने में सक्षम नहीं  था सो  चुप-चाप बैठा रहता।

मयूरी उसे अपने हाथ से दाना खिलाती कटोरी में ले जाकर पानी पिलाती । प्यार से उसे सहलाती बिल्ली से बचाव के लिए उसके पापा एक पिंजरा ले आये।

 स्कूल से आते ही अपने खाने पीने की

सुध किये बिना मयूरी  सीधे  उसके पास पहुंच जाती और उससे बातें करती । तुम्हें दर्द तो नहीं हो रहा। भूख लगी लो दाने खाओ, पानी  पिलाऊं  कहते पानी की कटोरी उसके  आगे कर देती,उसे प्यार से सहलाती । मम्मी के  बुलाने पर आती हूँ बाबा खाती हूं खाना ,  पहले मैं अपने कुहू से तो बात कर लूं । यह नाम मयूरी ने ही प्यार से रखा था।

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दुबारा मरहम पट्टी करने के बाद डाक्टर ने कहा अब यह अगले चार-पाँच दिन बाद शायद उड़ने लगे।

 यह सुन मयूरी उदास हो गई। रास्ते में गाड़ी में अपने पापा से बोली पापा मेरा दोस्त अब  उड़  जाएगा ।  कहां जाएगा। इसका भी कहीं घर है क्या।अभी उन्हें अपने बच्चे की याद आती होगी इतने दिनों से वे ढुंढ रहे होंगे।

 पापा बोले हां बेटा इनका भी घर होता है , ये  पेड़ों पर घोंसला बना कर रहते हैं। मम्मी पापा भी होते हैं।

तो  पापा उन्होंने पुलीस में कम्प्लेन्ट क्यों नहीं करवाई, उन्हें जल्दी  मिल जाता कुहू।

 बेटी की मासूमियत भरी बात सुन पापा को हंसी आ गई और बोले हाँ यह बात तो सही है तुम्हारी  उनसे गल्ती हो गई।धीरे-धीरे सात आठ दिनों में वह ठीक हो गया ।अब वह पंख फड़फड़ाने लगा किन्तु उड़ान अभी भी नहीं भर पा रहा था। मयूरी नियमित रूप से उसकी सेवा करती, बातें करती, उसे तो एक बहुत प्यारा दोस्त मिल गया था।

अब वह छोटी-छोटी उड़ान भरने लगा था कभी उड कर मयूरी की टेबल पर बैठ जाता और इधर उधर देखता रहता। मयूरी भी पढ़ाई छोड़ उससे  बातें करने में निमग्न हो जाती।उसकी मम्मी  कमरे का दरवाजा बंद कर देती ताकि बिल्ली न आ जाए। और वह पूरे कमरे में उडान भरता रहता।

अब मयूरी उससे कहती कुहू  तू उड जा, जा अपने घर तेरी मम्मी याद करती होगी, किन्तु खुला  रखने पर भी वह नहीं उडता। तभी एक दिन मयूरी स्कूल से आई और सीधी पिंजरे के पास  कुहू से मिलने गई। पिंजरा खुला देखकर उसे समझ नहीं आया कि कुहू कहां गया। मम्मी  कुहू कहां गया। 

बेटा आज वो उड कर आपने  घर चला गया। 

अच्छा किया उसने, उसके  मम्मी पापा कितने खुश हो जायेंगे उससे मिल कर।

और तुम्हें उसकी याद नहीं  आएगी। आएगी तो मम्मा वो बहुत प्यारा था किन्तु उसका घर जाना भी जरूरी था,  कह चुप हो गई। दो दिन वो उदास सी रही। बार बार पिंजरे तक देखकर लौट आती।

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एक दिन वह वालकानी में बैठी पढ रही कि अकस्मात कुहू आया और उसकी टेबल पर बैठ गया।वह खुशी से उछल पडी उसे  गोद में उठा बहुत प्यार किया। दाना खिला पानी  पिलाया। फिर उससे पूछने लगी तू कहां गया था कुहू अपनी मम्मी से मिल आया बताऊं मेरे को तेरी बहुत याद आ रही थी। वह भी गूं गूं आवाज निकाल रहा था जैसे सबकुछ समझ रहा हो।वह मयूरी के पीछे पीछे घर में घूमता रहता ।

 दोनों का दिल से रिश्ता जो जुड गया था इन्सान हो या जानवर प्रेम की भाषा सब पहचानते हैं। जिस तरह मयूरी ने उसका ख्याल रखा था वह उससे जुड गया था। दोनों के बीच प्यार आत्मीयता का बंधन बंध गया था  जो उनके दिलों को जोड़ गया था। दिल का रिश्ता किसी से भी जुड सकता है।

अब कुहू कभी भी उड कर कहीं चला जाता दो-तीन दिन में वह वापस आ जाता। जैसे  उसे मयूरी की उदासी का पता लग जाता। 

मयूरी अपने इस दोस्त के साथ बहुत खुश थी दिल से दिल का रिश्ता जो बन गया था।

शिव कुमारी शुक्ला 

15/4/24

स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित

 

#दिल का रिश्ता

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