कल इतवार था। इतवार को हमारे यहाँ साप्ताहिक बाज़ार लगता है। सब्जी से लेकर लगभग सभी घरेलू सामान, बाज़ार में आसानी से मिल जाता है। आसपास के लोग भी इसी बाज़ार में ख़रीदारी करने आते हैं।
मैं भी हर हफ्ते की भाँति सब्जी, दालें और कुछ सामान लेकर आ रहा था। आइसक्रीम वाले के पास से गुजरा तो कदम रूक गये । आइसक्रीम बचपन से ही मेरी कमज़ोरी रही है और पत्नी व बेटी की भी डिमांड थी । मैंने आइसक्रीम वाले के पास जाकर पूछा- भैया, आइसक्रीम तो उसने मेरे हाथ में प्राइज लिस्ट थमाकर कहा- देख लीजिए भैया जी।
मैंने सरसरी नज़रों से प्राइज लिस्ट का मुआयना किया और पाया कि 15 रूपए से 90 रूपए तक की आइसक्रीम है।
मैंने अपनी जेब से 25 रूपए निकालकर अपनी हैसियत के अनुसार आइसक्रीम ख़रीद ली और आइसक्रीम वाले के पास खड़ा होकर, उससे बातें करता हुआ, आइसक्रीम खाने लगा ।
मैंने पूछा – क्यों भाई, यह तुम्हारी अपनी ही आइसक्रीम गाड़ी है। हाँ बाबू जी, आइसक्रीम वाले ने कहा । अब भला कब तलक दूसरों की मज़दूरी करें और महंगाई का टेम है, 200-250 रूपए में क्या होता है। तीन बच्चे भी हैं, बच्चे पढ़ते भी हैं, किराया भी है, बिजली का बिल वगैरह आदि। बड़ी मुश्किल है साहिब, कैसे जीया जाए, इस महंगाई में।
मैंने भी अपना दुखड़ा रोना शुरू किया – हाँ भाई, सही कह रहे हो गुजर बसर करनी मुश्किल हो रही हैं, इस देश से मीडिल क्लास वाले ख़त्म ही हो जायेंगे, या तो एकदम
अपर या एकदम लोअर क्लास बचेगी।
अभी मेरी बातचीत आइसक्रीम वाले से हो ही रही थी कि तभी एक आदमी, औरत, एक बच्चा (आयु लगभग 5 वर्ष), आइसक्रीम वाले के पास आकर रुक गए। देखने में दोनों ईंट भट्टा मज़दूर लग रहे थे क्योंकि हमारे यहाँ ईंट भट्टा कम्पनियों की भरमार है।
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उस आदमी ने सकुचाते हुए आइसक्रीम वाले से कहा – तीन ठो, आइसक्रीम तो दीजिए 5-5 वाली ।
आइसक्रीम वाला- कड़क आवाज़ में बोला, हम 5 वाला आइसक्रीम नहीं रखते, 15 वाला है लीजिएगा ।
आइसक्रीम वाले की बात सुनकर तीनों का चेहरा लगभग उतर गया । बच्चे ने माँ का पल्लू खींचकर धीरे से आसकरीम कहा। उस आदमी ने फिर साहस करके अपनी जेब में हाथ डालकर, जेब में पड़ी चिल्लर को हिलाया और औरत की तरफ़ देखकर कहा- का हो, खा बानी । औरत ने सिर हिलाते हुए कहा- ना , चली बे ।
ऐसा कहकर तीनों वहाँ से चल दिए। मैं वहीं खड़ा होकर यह सब देख रहा था। ना जाने क्यों, मेरा मन मचल रहा था कि मैं उन तीनों को आइसक्रीम दिला दूँ। किन्तु मेरे पास जो पैसे थे, उनसे कुछ बीबी का बताया सामान लेकर जाना था और अपनी बिटिया के लिए भी आइसक्रीम लेकर जानी थी, सो मैं अपने मन के भाव को वहीं मारकर, खड़ा रहा।
जब तक मैं आइसक्रीम वाले से उनके बारे में कुछ कहता कि अचानक तीनों वापिस आ गए और आइसक्रीम वाले से कहा- दीजिए एक ठो आइसक्रीम। आदमी ने अपनी जेब से चिल्लर रूपी 15 रूपए इकट्ठे करके आइसक्रीम वाले को दे दिये और आइसक्रीम लेकर औरत को थमा दी । औरत ने सबसे पहले आइसक्रीम बच्चे को खिलाई और फिर उसके बाद उस आदमी को खाने के लिए दी । आदमी ने आइसक्रीम लेने में संकोच करते हुए बोला- ना बानी , तुम खाबो । लेकिन उस औरत ने जबरदस्ती अपनें हाथों से, उसे आइसक्रीम खिला दी ।
एक बार आइसक्रीम खाकर उस आदमी ने, आइसक्रीम औरत के होंठों से लगा दी। औरत से ज़रा सी चखकर, बाकी की आइसक्रीम बच्चे को थमा दी। मै वहीं खड़ा होकर यह दृश्य देख रहा था तथा कुछ देर पहले आइसक्रीम वाले के साथ मिलकर अभावों का रोना रो रहा था। वो तीनों जीवन के हसीन लम्हे सीमित संसाधनों में खुशी खुशी जीकर जा रहे थे। मैं और आइसक्रीम वाला, दोनों एक दूसरे को चुपचाप समझा रहे थे कि खुशियाँ ना तो ज़्यादा से बढ़ती हैं और ना ही कमी से कम होती है। बस आपको हर परिस्थिति में उत्सव मनाने का तरीका आना चाहिए।
~अंकित चहल ‘विशेष