कहाँ हो भाभी , आज जा रही हूँ , सोचा …… चलो मिल आऊँ बताओ मंजू भाभी , मैं तो कमला भाभी के यहाँ बेटे की शादी में इतना ख़र्च करके आई , पर बदले में कुछ भी ना मिला ..
हाय क्या कह रही हो जिज्जी, सुना तो था सुबह रोटी बनाने वाली से कि कमला ने दोनों ननदों की कोई मानतान नहीं की पर मैंने सोचा कि झूठी अफ़वाह है….. भला ऐसा कौन करता है …..कमला ने ये भी ना सोचा कि ससुराल में लड़कियों की थू-थू होगी , हमारा तो कई महीनों से आना-जाना , बोलना सब बंद है ….. जब छोटे-बड़े का लिहाज़ ही ना हो तो दूर ही भला…. वैसे शादी में सलाहकार कौन बनी थी ?
अरे वही थी ममता । जहाँ बहनों की चलती है ना , वहाँ तो ननदों की बेइज़्ज़ती ही होती है । सुनो भाभी, कहीं ज़िक्र करने की तो बात नहीं , पर ये लगाया कान पर लपेटा , आगे से मैं तो कभी कमला भाभी के यहाँ कभी ना आऊँ….
ए जिज्जी, दिल पे मत लो , तुम्हारा घर है, तुम्हारे भाई- भतीजे हैं । क्यूँ ना आओगी भला ? और सुनो , ना आओगी तो इसे कौन सा फ़र्क़ पड़ेगा बल्कि कोई रोक टोक ना रहेगी । जिज्जी , ये कमला की गलती ना है । लेने-देने का सबे पता ना होता …. भूल गई क्या …. इसके पीहर से ही क्या आया था ? चलो , उठो , कल ही कुछ साड़ियाँ मँगवाई थी …. मैं करूँगी पूर्ति ….. तुम्हारी कौन सा एक भाभी है …. उसके भरोसे थोड़े ही हो ……
इतना कहकर मंजू अपनी छोटी ननद सुनीता को लेकर अपने बेडरूम की तरफ़ चल पड़ी ।
वैसे अनीता जिज्जी को क्या दिया कमला ने ? वे तो शादी से दस दिन पहले आ गई थी….
आपको तो पता ही है भाभी ….. अनीता जिज्जी को कुछ पता तो चलता नहीं….. मुँह पर ताला लटकाए रखती हैं । ….. बहुत पूछने पर बस इतना बोली …… जो दिया ….प्यार से दिया …..और इन दिनों राजीव भाई का काम भी ढीला चल रहा है ।
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उह….. काम तो ढीला नहीं चल रहा ….. बस देने की नीयत नहीं …… हमें शादी में बुलावा तक नहीं भेजा ? ये राजीव तो पूरा कमला के रंग में रंग गया है ।
इस तरह सुनीता छोटे भाई राजीव के बेटे की शादी में आई पर मनमुताबिक उपहार न मिलने के कारण बड़ी भाभी मंजू के सामने दिल की भड़ास निकाल रही थी । तभी बड़ी बहन अनीता भी आ पहुँची ।
आ जाओ अनीता जिज्जी, दस दिन से आई बैठी हो … ऐसा भी नहीं हुआ कि भाई-भाभी और बच्चों से मिल जाओ ….. आज कैसे आने दिया तुम्हारी लाड़ली भाभी ने …..
अरे ना ना बड़ी भाभी, कमला भाभी ने कभी ना रोका पर पहले तो आते ही मैं बीमार पड़ गई…., आई थी कि कुछ हाथ बँटाऊँगी पर उल्टे मेरा ही काम बढ़ गया….. फिर शादी का घर …. पहली शादी….. कमला भाभी और राजीव भाई तो बौखला रहे……
हाँ तो जो …. बड़ों की पूछ ना करते वे यूँ ही बौखलाएँगे…,.., कहा-सुनी चल भी रही थी तो आकर कम से कम शादी का कार्ड देते ……. किस घर में झगड़े नहीं होते ….,., इसका ये मतलब तो नहीं कि उम्र भर के लिए रिश्ते ख़त्म……. ख़ैर….. ये बताओ….. चाय पीओगी या खाना लगवाऊँ ? सुनीता जिज्जी ने तो खाना खा लिया….
ना ना भाभी…… बस खाना खाकर ही निकली …. दरअसल ये समधियाने से ताऊ- ताई के कपड़े आएँ है ….. कमला भाभी ने भिजवाए …….
हमें क्या इतना गया गुज़रा समझ लिया कमला ने …. शादी में तो बुलाया नहीं….. कपड़े भिजवा दिए….. जब रिश्ता ही ख़त्म कर दिया तो कैसे कपड़े ….
बड़ी भाभी….. एक बात कहूँ…. वैसे तो आपसे छोटी हूँ पर बुरा मत मानना…… क्या आपने अपने दोनों बेटों की शादी में कमला भाभी और राजीव भाई को तो क्या , अम्मा को भी टोका था….. वे तो दादी थी ….और तो और , अम्मा का तो ,आप परिचय करवाना भी भूल गई थी….
सैंकड़ों काम थे … दिमाग़ से निकल गया था अम्मा का परिचय करवाना …… और इतनी चापलूसी करने की मेरी आदत नहीं…
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भाभी, सुनीता की तो मैं नहीं जानती पर मैं तो अपनी कह रही हूँ, … जो मैंने खुद देखा और अम्मा से सुना … आपके बड़े बेटे की शादी में तो अलग भी नहीं हुए थे…… पर कमला भाभी को ….. घर की घर में अलग कर दिया था आपने …… वो बेचारी पूरा दिन बस रसोई में लगी रहती थी और आप उन्हें बाज़ार से लाया सामान दिखाती तक नहीं थी ….आप कैसे कह सकती हो कि उन्होंने शादी में बुलाया नहीं….. जिस दिन उनके बेटे को पहली बार लड़की वाले देखने आए …. राजीव भाई खुद बड़े भाई को लेने दुकान पर गए पर वे नहीं आए …., लड़की से पहली बार मिलने जाने से पहले आप दोनों को बुलाया…… आप नहीं आए ….. भाई- भाभी तो शायद इस बार भी बुलाने आते पर इस बार अम्मा ने ही मना कर दिया …… भाभी, मुझे आज भी याद है कि आपने हमेशा दोनों भाइयों में छोटी- छोटी बात के ऊपर दूरियाँ ही बढ़ाई है …. … अपने दिल पर हाथ रख के सोचो भाभी……
वैसे जिज्जी…… आपके क्या दिया कमला भाभी ने .. जो इतनी मेर कर रही हो ?
सुनीता, तू लेने-देने से हटकर भी कुछ सोच लिया कर , हर बात में नाप-तोल ….. रिश्ता में कोई तराज़ू नहीं होती ….. कभी-कभी तो अपनी बहन पर ही शर्म आने लगती हैं ।
और बड़ी भाभी…. एक बात बताओ…… क्या आपने समधियाने से चाचा-चाची के कपड़े मँगवाए थे ……,,
उन्होंने किसी के दिए ही नहीं थे ….. तो क्या कपड़े माँगती ?
फिर आपके भाई-भाभी के कैसे आए थे ?
वो तो भाती थे ….. फिर उन्होंने रिश्ता करवाया था ।
भाभी ! बात पैसों या कपड़ों की नहीं होती …. बात मान- सम्मान और रिश्तों की गरिमा की है…… कमला भाभी को मैंने खुद कहते सुना कि बस एक ही माँग है कि मेरे से पहले हमारी अम्मा, जेठ-जेठानी और ननदों- ननदोइयों का मान रखना ……. अब आपकी इच्छा है…,,बड़ी भाभी… कपड़े रखोगी या वापस ले जाऊँ …..
दोनों बहनों ने देखा कि बड़ी भाभी ने कपड़ों का लिफ़ाफ़ा अपनी तरफ़ सरकाया और बोली—-
चलो ….. मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ….. बहू को मुँह दिखाई भी दे दूँगी और अम्मा के सामने ही बड़ी बनकर दिखाऊँगी
करुणा मलिक