हलवा – हेमलता गुप्ता : Moral stories in hindi

पापा पापा… देखो.. मैंने  आपके लिए आटे का हलवा बनाया है, आप खाकर बताइए कैसा बना है? 15 साल की रितु ने अपने पापा विजेंद्र से कहा! पापा अपनी बेटी की बात कैसे टाल सकते थे उन्होंने हलवे को खाते ही कहा.. वाह… मैंने अपनी पूरी जिंदगी में ऐसा हलवा नहीं खाया! शाबाश बेटा.. ऐसे ही मन लगाकर बनाओगी तो देखना एक दिन अपनी मम्मी से भी अच्छा खाना बनाने लग जाओगी! 

आज मेरी बिटिया की पहली कोशिश है, तो इतना अच्छा बना है आगे तो जबरदस्त बनेगा!  इतना कहकर विजेंद्र जी अपनी दुकान के लिए निकल पड़े! तब रितु ने अपनी मम्मी से कहा.. मम्मी.. अब आप खाकर बताइए हलवा कैसा बना है? मैंने पहली बार में ही इतना अच्छा हलवा बना लिया कि पापा तो तारीफ करते ही नहीं थक रहे! जैसे ही मम्मी ने हलवे को मुंह में डाला तुरंत उसे थूकते हुए कहा … यह हलवा है.?

इसमें पूरा ही आटा कच्चा रखा है, तुमने घी आटा चीनी और पानी सब एक साथ मिलाकर इसको बना दिया, कहां से मिला इतना ज्ञान! मैं तो यह सोच रही हूं कि इस हलवे को खाकर तेरे पापा की तबीयत ना खराब हो जाए और  बेटा जब कुछ चीज बना रही थी तो मुझसे पूछ तो लेती, सामान भी बिगड़ा और मजा भी नहीं आया! खैर… कोई बात नहीं,

आगे से ध्यान रखना! तब रितु ने खुद हलवा चखा और सच में वह हलवा इतना खराब बना था की रितु की आंखों में आंसू आ गए, इतने खराब हलवे को भी मेरे पापा ने कितने प्यार से खा लिया और मुझे शाबाशी भी दी, आगे से मैं पापा की पसंद का हर अच्छे से अच्छा खाना बनाऊंगी! दो-तीन दिन बाद रितु ने अपने पापा की पसंदीदा प्याज की पकौड़ियां बनाई,

पापा ने फिर से उसकी तारीफ की! मम्मी ने फिर कहा.. बेटा.. आज पहले से सुधार है किंतु अभी भी बेसन कच्चा रह गया है, तुमने तेज आंच पर पकौड़ियां बना दी जो बाहर से तो सिक गई किंतु अंदर से कच्ची रह गई! तो मम्मी.. पापा मेरी हर बात की इतनी तारीफ क्यों करते हैं, पापा भी तो कह सकते थे ना की चीज खराब बनी है! हां बेटा पापा कह सकते थे

किंतु पापा अपनी लाडली बिटिया का दिल कैसे दुखाते, तुम बाप बेटी का तो अटूट बंधन है, दोनों ही एक दूसरे के बारे में गलत बात सुन ही  नहीं सकते, किंतु मैं तुम्हें समझा देती हूं और तुम समझ जाती हो, आगे से थोड़ा और ध्यान रखोगी तो मजा डबल हो जाएगा! चार-पांच दिन बाद  रितु ने फिर खीर बनाई, सब अच्छा था

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किंतु उसमें भी चावल थोड़े से कच्चे रह गए,  विजेंद्र जी ने वही तारीफ करी और मां ने उसकी कमी को सुधारने के लिए कह दिया! धीरे-धीरे रितु अपने पापा की पसंद का सारा खाना बनाना सीख गई, अब वह अपने पापा को तरह-तरह की चीज बनाकर खिलाती और पापा अपनी बेटी को  आशीर्वाद देते! पापा की लाडली बिटिया अब सच में खाना बनाने में निपुण हो गई थी!

एक बार रितु और उसकी मम्मी दोनों की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई और दोनों ने बिस्तर पकड़ लिए, घर में करने वाले सिर्फ विजेंद्र जी रह गए, वैसे तो कामवाली सारा काम कर जाती थी पर खाना हमेशा रेवती या रितु ही बनाते थे, अभी तक विजेंद्र जी का रसोई से कोई पाला नहीं पड़ा था, क्योंकि विजेंद्र जी की पत्नी रेवती खाना बनाने में बहुत निपुण थी,

उनके खाने की तारीफ हर कोई करता था किंतु आज मजबूरी ऐसी आ गई की विजेंद्र जी को रसोई में जाना ही पड़ा, उन्होंने सबके लिए दाल चावल की खिचड़ी बनाने की सोची और खिचड़ी बनाकर दोनों मां बेटी को एक-एक कटोरा में दे दिया! बेटी को अपने हाथ से खिचड़ी खिलाई और उससे पूछा… हां तो रितु बेटा… पापा के हाथ की खिचड़ी कैसी बनी है?

तब रितु ने कहा.. पापा इससे बढ़िया खिचड़ी तो मैंने आज तक नहीं खाई, आप सच में दुनिया  के  सबसे अच्छे पापा हो! मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि मुझे इतना प्यार करने  वाले पापा मिले! यह सुनकर विजेंद्र जी खुश हो गए कि चलो उन्होंने अच्छी खिचड़ी बनाई! पापा बेटी की बात सुनकर रेवती ने भी कुछ नहीं कहा!

थोड़ी देर बाद जब विजेंद्र जी ने खिचड़ी खाई तो थू थू करते हुए उठ गए और रितु और रेवती से कहा… तुमने इतनी घटिया खिचड़ी कैसे खाली ? इसमें तो दाल चावल भी कच्चे हैं, और नमक बहुत ज्यादा है, बिल्कुल कड़वी खिचड़ी बनी है! बेटा मुझे माफ कर दे, तेरे पापा से कुछ नहीं आता और तू कह रही थी कि यह तो दुनिया की सबसे अच्छी खिचड़ी बनी है,

नहीं पापा आप रोना नहीं, आपको याद है जब मैंने खाना बनाना सीखा था आप मेरे हर खाने की  कितनी तारीफ करते थे, आपने तो कितनी बार मेरे हाथ का खराब से खराब खाना खाया है! तो क्या मैं एक बार आपकी बनाई हुई खिचड़ीभी नहीं खा सकती! पापा इस खिचड़ी में तो दुनिया का सबसे ज्यादा प्यार मिला हुआ था!

रितु की ऐसी बातें सुनकर पापा की आंखें हमेशा नम हो जाती, और सोचते.. पता नहीं मेरी बिटिया को कैसा घर- वर मिलेगा? कुछ समय पश्चात उन्होंने अच्छा संबंध देखकर रितु की शादी कर दी! उस दिन पापा बहुत ज्यादा रोए! विजेंद्र जी को इतना रोते हुए कभी किसी ने नहीं देखा था! पापा से अपनी बेटी की  विदाई  बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी! यह कैसा अटूट बंधन था जो दोनों बाप बेटी को अलग नहीं होने दे रहा था,

किंतु समाज की विडंबबना रही है की बेटी को पराया घर जाना ही पड़ता है! ऋतु के ससुराल वाले भी बहुत अच्छे थे! शादी के बाद आज रितु की  पहली रसोई थी, रितु की सास ने सभी मेहमानों के लिए आटे का हलवा बनाकर लाने को कहा, क्योंकि रितु तो खाना बनाने में निपुण थी अतः उसे किसी भी बात का डर नहीं था,

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किंतु ससुराल का मामला था, रितु को लग रहा था अगर यहां कुछ गड़बड़ हो गई तो क्या होगा! फिर भी रितु ने आटे का हलवा बनाना शुरू किया जैसे ही रितु ने हलवा बनाना आरंभ किया उसे अपने पहली बार बनाए हुए हलवे की याद आ गई, जिसे उसने कितना खराब बनाया था और फिर भी उसके पापा ने कितने प्यार से उसे खाया था,

यह सोचकर रितु की आंखों से आंसू बहने लगे और इसी चक्कर में रितु हलवे में चीनी डालना भूल गई और सबके लिए बिना चीनी का हलवा लेकर आ गई! सबसे पहले उसके साथ ससुर ने  हलवा खाया और जैसे ही सास रितु से कुछ कहने को हुई की ससुर जी ने अपनी पत्नी का हाथ दबा दिया और इशारों में उन्हें चुप रहने के लिए कहा!

फिर उन्होंने सबके सामने रितु के हलवे की तारीफ करते हुए कहा….  वाह बेटा.. हमने तो इतना अच्छा हलवा आज तक नहीं खाया, शुक्र है भगवान का हमें इतनी प्यारी बहू मिली भगत और उसे  नेग में एक सुंदर सी अंगूठी उपहार स्वरूप दी, यह देखकर रितु बहुत खुश हो गई इसे अपने ससुर में अपने पिता नजर आने लगे! रितु ने सोचा..चलो कुछ भी गड़बड़ नहीं हुई! 

जब सभी ने हलवा खाया तो ऋतु के ससुर जी के सामने किसी ने कुछ नहीं कहा, और सभी  चुपचाप  हलवा खा गए! सबसे अंत में रितु ने जब हलवा खाया तब उसके मुंह से निकल पड़ा.. हे भगवान…. यह तो बिल्कुल फीफा हलवा है, आप सभी ने कैसे खा लिया? मैं तो इसमें चीनी डालना ही भूल गई!

तब ऋतु के ससुर जी ने उसके सिर पर हाथ फेरते  हुए कहा …कोई बात नहीं बेटा कभी-कभी ऐसी गलती हो जाती है, हम जानते हैं तुम खाना बनाने में बहुत अच्छी हो किंतु तुम्हारे पापा ने कहा था… की समधि जी… मेरी बिटिया को अपनी बिटिया ही समझना, अगर कोई भी भूल  हो जाए तो अपनी बिटिया समझ कर माफ कर देना, तो हम भला उनकी बात कैसे टाल सकते थे !

बेटा… बाप बेटी का रिश्ता अटूट होता है और इस अटूट बंधन को कोई नहीं तोड़ सकता! कहने को तो मैं तुम्हारा ससुर हूं किंतु मैं चाहता हूं कि मैं भी तुम्हारा पिता बनने की कोशिश करूं और कभी भी तुम्हें अपने पिता की कमी नहीं महसूस होने दूंगा !यह सुनकर रितु को बहुत खुशी हुई, किंतु ऐसी बातें सुनकर उसे अपने पापा की और भी याद आने लगी,

किंतु उसके मन में एक सुकून था कि चाहे आटे का हलवा फीका था लेकिन सबके दिलों का प्रेम तो मीठा था!  यह पूरे परिवार का अटूट बंधन ही तो है एक दूसरे को जोड़ने की कोशिश कर रहा है! एक पापा वहां थे और आज एक पापा यहां मिल गए! काश हर लड़की को ऐसे ही ससुराल में पिता मिल जाए तो बात ही क्या हो!

  हेमलता गुप्ता स्वरचित 

  साप्ताहिक प्रतियोगिता अटूट बंधन

2 thoughts on “हलवा – हेमलता गुप्ता : Moral stories in hindi”

  1. ससुराल में पिता जी तो मिल ही जाते हैं पर माँ मिलना (विशेषकर भारतीय समाज में ) असम्भव लगता है।

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