मोनू आजकल मैं तुम्हारी घनिष्ठता शिशिर के साथ कुछ अधिक ही देख रहा हूँ।मोनू,शिशिर बड़े बाप का बेटा है,उससे हमारा मेल नहीं बैठता है, बेटा,हमारी हैसियत शिशिर के पिता जैसी नही है, मोनू तुम समझ रहे हो ना,मेरा मतलब।
बाबूजी ये बात सही है,शिशिर के पिता बड़े कारोबारी है,काफी धनवान है,पर शिशिर ने कभी भी मेरे सामने अहंकार का प्रदर्शन नही किया है।बाबूजी शिशिर बहुत ही सरल स्वभाव का है।
बेटा, इससे परिस्थितियां तो नही बदलती।शिशिर के पिता बड़े आदमी हैं, बड़े ही रहेंगे,और बेटा हम गरीब है,गरीब ही रहेंगे।बाद में अपमानित ही होना पड़ता है।
सेठ जुगलकिशोर जी के दो बच्चे थे, बेटा था शिशिर और बेटी थी काम्या।शिशिर और काम्या की उम्र में मात्र दो वर्ष का अंतर था। जुगलकिशोर जी की पत्नी सरोज का निधन चार पांच वर्ष पूर्व ही हो गया था।जुगलकिशोर जी ने दूसरी शादी नही की।पैसे की कमी थी नही सो एक पढ़ी लिखी सर्वेंट 24 घंटो की ड्यूटी पर बच्चो के लिये रख दी।इससे बच्चो के लालन पालन में कोई परेशानी नही हुई।अब तो दोनो बच्चे कॉलेज की पढ़ाई करने लगे थे।कॉलेज में ही शिशिर और मोनू की मित्रता हो गयी थी।
मोनू के पिता ईश्वर चंद्र जी नगर पालिका में क्लर्क थे।ईश्वर जी के एकलौता बेटा मोनू ही था,मोनू की माँ सुमन एक बहुत ही ममतामयी और कर्मठ महिला थी।खाली समय मे वे बच्चो के ट्यूशन ले लेती थी,इससे कुछ अलग से आय भी हो जाती थी।
अचानक एक दिन शिशिर मोनू के साथ उसके घर आया तो मोनू की माँ ने शिशिर को अपने पन से स्वागत किया,घर परिवार के हाल चाल पूछे और शाम का खाना खाकर ही जाना ऐसा आग्रह भी किया।ऐसा प्यार आग्रह उसने कभी देखा ही नही था।नौकरानी द्वारा पले शिशिर को इस प्रकार माँ जैसा प्यार कहाँ मिला था।मन ही मन उसे आज अपनी माँ याद आ रही थी।
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मोनू की माँ के स्नेह प्यार के कारण शिशिर अब निसंकोच मोनू के घर अक्सर चला जाता।उस दिन मोनू की माँ ने कहा बेटा शिशिर कभी अपनी मां को भी लाओ ना,उनसे मिलना हो जायेगा।सुन शिशिर आँखों मे आंसू भर बोला मेरी माँ नही है,वो तो हम भाई बहन को छोड़ कब की भगवान के पास चली गयी।सुमन ने शिशिर को अपने से चिपटा लिया अरे मैं हूँ ना तेरी माँ।
इस घटना के बाद से तो शिशिर सुमन को माँ कह कर ही पुकारने लगा था।ईश्वर चंद्र जी भी शिशिर से स्नेह करने लगे थे,पर दुनिया के चलन को देखते हुए ही वे आशंकित रहते थे कि शिशिर से यह स्नेह पाश कहीं उन्हें अपमान से सरोबार न कर दे।उन्हें लगता कि शिशिर बड़े आदमी का बेटा है और वे गरीब हैं, कही कभी उन पर शिशिर को बहलाने का आरोप न लग जाये।इसी कारण वे अपने बेटे मोनू को अपनी हैसियत बता कर भविष्य के प्रति आगाह कर रहे थे।
मोनू क्या कहता उसने अब शिशिर को अपनी ओर से अपने घर आमंत्रित करना लगभग बंद कर दिया।शिशिर खुद इस परिवर्तन को महसूस कर रहा था।परंतु वह अपने को मोनू की मां से भावनात्मक रूप से इतना जुड़ चुका था कि उससे ये परिवर्तन सहन नही हो रहा था।शिशिर के पिता जुगलकिशोर जी ने जब अपने बेटे को उदास देखा तो उससे कारण पूछा।
काफी ढाढस देने पर शिशिर अपने पापा के कंधे पर सर रख रोने लगा।संयत होने पर उसने बताया कि उसके मित्र मोनू कैसे उसे पुत्रवत प्रेम करती है,पर अब मोनू कुछ कट रहा है,वह ऐसा क्यूँ कर रहा है, समझ नही आ रहा।जुगलकिशोर जी मोनू से परिचित थे,वह भी उनके घर आता रहता था।वे मोनू को अपने शिशिर के लिये परफेक्ट दोस्त मानते थे।
शिशिर को वे उदास नही देख सकते थे,वे अगले दिन ही शाम को शिशिर के साथ मोनू के घर स्वयं चले गये।जुगलकिशोर जी को अपने घर आया देख ईश्वर चंद्र जी भौचक्का रह गये।उस समय घर भी अस्तव्यस्त सा था,एक बड़े व्यक्ति के ऐसे अचानक घर आने से ईश्वर चंद्र जी अपने को असहज महसूस कर रहे थे।जुगलकिशोर जी अनुभवी व्यक्तित्व के मालिक थे,
उनमें छोटे बड़े की भावना थी ही नही,वे सब समस्या की जड़ को समझ गये।उनकी समझ मे आ गया कि ईश्वर चंद्र को संशय है कि हैसियत का अंतर से उन्हें आगे कभी शर्मिंदा न होना पड़े।जुगलकिशोर जी सब समझकर भी बड़ी ही बेतकल्लुफी से सोफे पर पसर कर बोले भाई ईश्वर हम तो बहन सुमन के हाथ की चाय पीने आये है,
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ये शिशिर तारीफ करता रहता है।इतने में ही सुमन हाथ मे चाय नाश्ते की ट्रे लेकर आ गयी,भाई साहब अच्छी बुरी का तो पता नही पर मैं तो चाय ले आयी।एक जोर दार ठहाका कमरे में लगा।वातावरण हल्का हो गया था।जुगलकिशोर जी जो तारीफ शिशिर से सुनते आये थे,आज वे प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे थे।
जिस घर मे सुमन जैसी स्नेहशील, ममतामयी महिला हो वह घर कभी गरीब नही हो सकता,संस्कारो से अमीर होता है।चाय की चुस्कियां लेते लेते जुगलकिशोर जी के मन मे एक योजना तैयार हो गयी और उन्होंने तभी निर्णय ले लिया।फिर बोले भाई ईश्वर मैं आज आपसे कुछ मांगने आया हूँ।
आश्चर्यचकित ईश्वर जुगलकिशोर जी की ओर टुकुर टुकुर देखने लगा,उस गरीब के पास ऐसा क्या है जो जुगलकिशोर जैसे रईस उससे मांगने को कह रहे हैं।जुगलकिशोर जी ने आगे बढ़ ईश्वर चंद्र जी के हाथ अपने हाथ मे लेकर बोले भाई मुझे मोनू दे दो अपनी बेटी काम्या के लिये।अरे सुमन जैसी संस्कारवान महिला जिस घर मे हो तो वह घर तो स्वर्ग होता है,मुझे अपनी बिटिया को यही घर चाहिये।जुगलकिशोर जी ने अपनी दौलत को गरीब ईश्वर के संस्कारित परिवार से तौलकर जो देखा तो पलड़ा संस्कारो का भारी पाया था।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित