निर्मल और पत्नी महिमा में आज फिर किसी बात को लेकर नोंक झोंक हो रही थी। और वह पत्नी पर बुरी तरह बिफर रहा था जो मुँह में आता बिना सोचे-समझे बोले चला जा रहा था और अन्त में उसका तय वाक्य एक मिनिट में बाहर का रास्ता दिखा दूंगा, जब बेघर हो जाओगी तब पता चलेगा।
यह सब सुन महिमा का दिल छलनी हो जाता पर वह अपना दुःख कहे तो किससे ,इस घर में उसकी कोई सुनने वाला नहीं था। इनकी शादी को दस साल हो गए। किन्तु महिमा को दस सालों में भी सम्मानित बहू एवं पत्नी का दर्जा नहीं मिला था। सास-ससुर को तो छोडो छोटे देवर ननद भी कुछ भी उससे कह देते किन्तु उनको पलट कर जबाब देने का अधिकार उसे नहीं था।निर्मल को अपने परिवार वालों की बात सही लगती और वह अक्सर कहता मेरे परिवार वालों के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोलोगी ।उनसे मेरा खून का रिश्ता है ।
महिमा – यदि वह तुम्हारे परिवार वाले हैं तो में क्या परिवार की सदस्य नहीं हूं। निर्मल नहीं तुम मेरे परिवार की सदस्य कैसे हो सकती हो तुम दूसरे परिवार से आई हो। तुम्हे हमारे परिवार से क्या लेना देना। तुम केवल काम करो और बदले में खाना कपडा लो तुम्हारे सिर पर छत है यह क्या कम है ।
माहिमा की समझ में उसका यह तर्क नहीं आता। वह ज्यादा बात न बढा चुप हो जाती।
सास अक्सर ताना मारती पराई जायी दूसरे घर से आई है उसे परिवार की बातों क्या मतलब। कहीं हमारे परिवार की बातें अपने मायके में, आस पड़ोस में न कह दे।
कोई भी पारिवारिक समस्या पर बात करते तो उसे दूर रहने को कहा जाता । मां बाप भाई-बहन सब एक कमरे बैठ कर, चर्चा करते किन्तु उसे दूर रखते वह सोचती कैसा पति है जिसे अपनी पत्नी पर ही विश्वास नहीं हैं। जबकि पती-पत्नी का रिश्ता विश्वास और आपसी समझ, प्रेम पर आधारित होता है ।माना यह खून का रिश्ता नहीं होता किन्तु उससे भी बढ़कर होता है जो जिन्दगी भर सुख-दुःख में साथ निभाता है ।इतनी सी बात निर्मल क्यों नहीं समझना चाहता।
मायके में उससे छोटी दो बहनें और एक भाई था। माता-पिता उनकी उलझनों में परेशान थे। आर्थिक रूप से भी कमजोर थे सो वह उन्हें अपना दुख बता कर और दुखी नहीं करना चाहती थी। ज़्यादा पढी लिखी भी नहीं थी कि कहीं सम्मान जनक नौकरी पा सके सो अपने दोनों बच्चों की खातिर, सब सहन कर रही थी। समय पंख लगाकर उड़ गया और दोनों, देवर ननद की शादी भी हो गई । ननद अपने घर चली गई ओर यहाँ देवरानी आ गई। अब सबने उसके साथ भी वैसा ही सलूक करना चाहा।
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एक दिन सब कमरे में बैठे किसी बात पर चर्चा कर रहे थे कि नेहा चाय लेकर कमरे में चली गई। उसे देखते ही निर्मल जोर से बोला खडी क्या हो चाय रख दी अब जाओ यहाँ से। यहाँ पारिवारिक चर्चा हो रही है। वह यह सुन अचम्भीत सी रह गई तभी सुमित (देवर), बोला- भैया ये आप नेहा से किस तरह बात कर रहे हैं। वह मेरी पत्नी है और इस नाते इस परिवार की सदस्य है, आप उसे इस तरह अपमानित कर जाने को नहीं कह सकते। वह यहीं वैठेगी।
ये तू क्या कह रहा है छोटै तेरी भाभी भी कभी बैठी हैं। जो यह परिवारिक सदस्य हो गई। तभी बीच में मां भी बोल पड़ी यह पराई जाई, दूसरे घर से आई हमारे परिवार की सदस्य कब से हो गई। महिमा तो दस साल में भी नहीं बैठ पाई और यह कल की आई यहां, हमारी बातें सुनेगी।
मां क्यों नहीं सुनेगी,यह मेरी पत्नी है। फिर
आप कैसे बैठी हैं , आप भी तो दूसरे घर से ही आई हैं यह सुनते ही निर्मल अगववूला हो गया बोला छोटे तू मां से कैसे बोल रहा है।
भैया सच बात कहने में डर कैसा। में नेहा का हाथ पकड इस घर में लाया हूँ अव उसके सुख-दुख सम्मान की रक्षा करना
मेरा कर्तव्ध है।
तूने मुझे कभी महिमा के लिए इस तरह बोलते देखा है।
वह आप जानो ,भैया आपने स्वयं ही भाभी की इज्जत कब की है आपने तो उन्हें परिवार के हवाले कर दिया है चाहे वो उनका अपमान करें आपको कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता किन्तु मैं आप जैसा नहींं हूं मुझे नेहा की इज्जत का पूरा ध्यान है। ये आपसे ही तो सीखा है जब पति ही पत्नी की इज्जत नहीं करता तो उस पत्नी की ससुराल में दुर्दशा ही होती है जो मैंने नित्य भाभी की होते देखी है,देख कर भी मैं वही कैसे दोहरा सकता हूँ।
निर्मल से बोलते न बना। अभी भी महिमा अपने कमरे में बैठी बच्चों को होमवर्क करा रही थी। उसे इस कमरे में क्या हो रहा है इससे कोई मतलब नहीं था, वह परिवार से पूर्णतया निर्लिप्त हो गई थी। छोटे- तूने और देविका ने कितना परेशान किया महिमा को छोटे छोटे कामों के लिए और न होने पर शिकायत करके मुझ से और माँ से कितनी डॉट खिलवाई उसे और आज अपनी पत्नी आते ही सब भूल गया।
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कुछ नहीं भूला हूं भैया सब याद है जिस पत्नी का आप जैसा पति होगा उसका तो यही हाल होना है। आपने कभी हमें ऐसा करने से रोका, कभी भी मां को उन्हें अपशब्द कहने से रोका, नहींं ना। अब आपकी तो आप जानो मैं तो अपनी पत्नी, का पूरा ख्याल रखूंगा कोई बोल के तो देखे। भैया आप से ही तो सीखा है यह सब जब पति ही पत्नी की उपेक्षा करेगा, उसे अपने परिवार की सदस्य नहींं समझेगा, उस पर विश्वास नहीं करेगा तो क्यों न परिवार के अन्य सदस्य उसे अपमानित करेंगे। सब कोई मौके का फायदा उठाता है।
अब निर्मल अचम्भीत सा आँखे फाडे सुमित को देख रहा था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसका छोटा भाई यह सब उससे कह रहा है।
तभी मम्मी के फोन की घंटी बजती है। मम्मी फोन पर बेटी की आवाज सुनकर एक दम प्रसन्न हो जाती हैं। अरे मेरी लाडो कैसी है तुझे मुझे कोई परेशानी तो नहीं। तभी पापा कहते हैं स्पीकर पर फोन करो में भी तो सुनुं नहीं मम्मी मुझे कोई परेशानी नहीं है मैं बहुत खुश हूं।
भावेशजी मेरा बहुत ध्यान रखते हैं। वे निर्मल भैया की तरह बेवकूफ नहीं है जो परिवार के सदस्यो को छूट दें मुझसे कुछ कहने की मम्मी अपन ने महिमा भाभी को कितना परेशान किया और भैया भी उल्टा उनसे ही लड़ते रहे, कभी समझे ही नहीं कि एक पति को पत्नी का ध्यान रखना चाहिए आरिवर उसका हाथ पकड़ उसके भरोसे ही तो वह पुराना घरोंदा छोड नए में प्रवेश करती है। वहाँ यदि पति ही साथ नहीं देगा तो कौन देगा। मम्मी भावेश जी तो मेरे से किसी को कुछ बोलने ही नहीं देते भैया ने तो कभी भाभी का विश्वास ही नहीं किया, कैसे हमेशा रोती रहती थीं बेचारी ।
निर्मल अब आगे न सुन सका फट पडा फोन बन्द करो।
अपनी छोटी बहन के मुँह से अपने लिए बेवकूफ शब्द सुन खून खौल उठा। बोला तुम सबने मिलकर मुझे छला है मेरे विश्वास को तोड़ा है। मैं तुम लोगों को अपना परिवार समझ तुम्हारी तरफदारी करता था किन्तु आज पता चला मेरे ये रिश्ते कितने मतलबी और खोखले थे। आज मेरे भाई-बहन ने ही जिन्हें में अपने से ज्यादा चाहता था मुझे बेवकूफ समझ मेरे ऊपर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिए।
पर अब ऐसा नहीं होगा। माहिमा पर विश्वास न करके उसे माँ के अनुसार पराई जाई पराये घर से आई समझकर मैंने वहुत बड़ा अपराध किया है। आज तुम लोंगों की बातें सुनकर मेरी आँखें खुल गई। मैंने महिमा पर क्या-क्या जुल्म नहींं ढाए जबकि उसकी कोई गल्ती नहीं थी। माँ अब क्या नेहा पराइ जाइ पराये घर से नहीं आई है जो आप सब उसे कुछ नहीं कहते।
मां- बेटा सीधे का मुँह कुत्ते चाटते हैं कहावत नहीं सुनी ,जब तू ही महिमा को नही पूछता था ,उसका विश्वास नहीं करता था तो हमें क्या पड़ी है।
मां ये तुम कह रही हो मैंने आँख बन्द कर आपका विश्वास किया और उसका यह सिला मिला। मेरे कारण महिमा सालों रोई है कितने अपमान के घूंट पिये हैं। कभी मैंने उसके दुख को नहीं समझा तुम लोगों के आगे और आज तुम सब अलग हो गए अब मैं अपनी भूल सुधारुगां। देर से ही सही आप लोगों ने मेरे सोये अहसास को जगा दिया। अब से महिमा की आँखो से एक ऑसू नहीं निकलेगा। अब उसके जीवन में खुशियाँ ही होगीं सिर्फ खुशियाँ। नहीं रहना अब मुझे खोखले रिश्तों के साथ कह कर वह कमरे से निकल गया।
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वह सीधा अपने कमरे के गया। देखा महिम निर्वीकार भाव से अपने बच्चो को पढ़ाने में व्यस्त थी।
उसने कपडे बदले और बाहर जाने लगा तो महिमा ने पूछा कहीं जा रहे हैं खाने के समय तक आ जायेंगे।
आशा के विपरीत आज उसे कठोर प्रताड़ना भरा स्वर सुनने के बजाये बड़ा ही नम्र स्वर सुनाई दिया हां महिमा आ जाऊँगा।
यह सुन वह उसकी तरफ देखती रह जाती है।
ऐसे क्या देख रही हो
कुछ नहीं आप की तबियत तो ठीक है ना। क्यों क्या हुआ है मुझे
महिमा डरते-डरते बोली आज मेरे पूछने पर आप गुस्सा नहीं हुए अजीब सा लगा सो पूछ लिया ।यह सुन निर्मल महिमा की मनोदशा का ख्याल कर लज्जित होगया। और चुपचाप बाहर चला गया।
वह एक किराये का मकान तय कर आया। और खाना खाते ही बोला महिमा अपना सामान पैक कर लो हम अलग रहने चल रहे हैं। आज ही शिफ्ट करना है।
महिमा यह सुन अवाक रह गई। क्या आपने मम्मीजी से पूछ लिया। नहीं मुझे किसी से नहीं पूछना है तुम बस चलने की तैयारी करो कह वह स्वयं महिमा का हाथ बंटाने लगा शाम तक वे अपने नये घर में पहुँच गये।
अब निर्मल महिमा से बोला महिमा मुझे मेरी गलतियों के लिए हो सके तो माफ कर दो। अब पुरानी गलतियाँ, ज्यादतियां नहीं दोहराई जाएंगी। हम नये सिरे से अपना खुशहाल जीवन व्यतीत करेंगे।अब से कोई तुमसे कुछ नहीं कहेगा ,ना ताना मारेगा। गुजरा समय तो मैं नहीं लौटा सकता किन्तु भविष्य में दुख की छाया तुम पर नहीं पड़ने दूंगा।
यह सुन महिमा की आँखो से आंसू निकल पड़े।उसे प्यार से गले लगाते बोला पगली अब रोने का समय गया। अब हम खुशहाल जीवन बितायेंगे अपने बच्चों के साथ।
शिव कुमारी शुक्ला
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
25-3-24
छठा जन्मोत्सव के अन्तर्गत कहानी प्रतियोगिता
छठी कहानी