सीमा और पूजा पक्की सहेलियाँ थीं।स्कूल से काॅलेज़ में आने के बाद भी उनकी दोस्ती बरकरार रही।कुछ ने तो उन दोनों के बीच दरार डालने की कोशिश भी की लेकिन वे कामयाब न हो सके।
सीमा जब बीए फ़ाइनल ईयर में थी, तभी उसकी शादी शहर के नामी बिजनेस मैन संजीव से हो गई।कुछ महीनों बाद पूजा की शादी भी प्रशांत नाम के एक इंजीनियर से हो गई जो दिल्ली में नौकरी करता था।शादी के बाद पूजा दिल्ली चली गई लेकिन पत्रों के माध्यम से दोनों के बीच दोस्ती बनी रही।
समय के साथ सीमा एक बेटी रिया और बेटा अंकित की माँ बनी।पूजा ने भी एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम श्रद्धा रखा।फिर दोनों ही अपनी-अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गयीं।
कुछ सालों के बाद एक दिन अचानक पूजा के पास फ़ोन आया।हैलो’ की आवाज़ सुनकर वो चौंक उठी।उसके मुँह से निकल पड़ा, ” सीमा…।”
” हाँ…मैं सीमा ही बोल रही हूँ।पिछले महीने मायके गई थी तो तेरे घर भी चली गई और आंटी से तेरा कॉन्टेक्ट नंबर लिया।तू तो भूल ही गई है मुझे..।”
” अरे नहीं…वो क्या है कि मेरे पति का ट्रांसफर …।”
” बस- बस…रहने दे..बहाने न बना…।”
बरसों बाद मिली दोनों सहेलियों के बीच शिकवे-शिकायत होती रहीं और फिर बातों का सिलसिला चल पड़ा।पति के काम.. बच्चों की पढ़ाई…खुद के काम वगैरह -वगैरह की ढ़ेरों बातें एक- दूसरे से करतीं रहतीं।
एक दिन सीमा ने बताया कि अगले महीने मेरी बेटी रिया की शादी है और तुझे आना है।प्रशांत जी को संजीव फ़ोन कर देंगे…बस तू आने की तैयारी कर ले।
विवाह के सुअवसर पर दोनों सहेलियाँ मिलीं…बच्चे भी आपस में मिलकर बहुत खुश हुए।रिया की विदाई के बाद सीमा पूजा से बोली,” अंकित एमबीए करने कनाडा जा रहा है..फिर आकर अपना बिजनेस संभालेगा।तेरी श्रद्धा भी तो अब सयानी हो गई तो क्यों न हम उन दोनों बच्चों का विवाह कराकर अपनी दोस्ती के रंग को और भी पक्का कर ले।”
प्रशांत बोले,” हाँ..दोनों के बीच निकटता को तो मैंने भी अनुभव किया है…फिर भी एक बार बच्चों से पूछ लेते तो अच्छा रहता।” दोनों ने अपने-अपने बच्चे से बात की और अंकित और श्रद्धा की शादी की बाद पक्की हो गई।महीने भर बाद ही प्रशांत का तबादला भी सीमा के शहर में हो गया।सुनकर वह बोली,” ये तो सोने पर सुहागा ” हो गया।
होली के शुभ अवसर पर सीमा सपरिवार पूजा के घर आई।दोनों परिवारों ने एक-दूसरे को होली की बधाई दी।फिर सीमा बोली,” पंद्रह दिनों के बाद अंकित कनाडा चला जाएगा।कल रिंग-सेरेमनी करके फिर शादी…।”
” मैं कुछ कहना चाहती हूँ।” पूजा ने टोक दिया तो सीमा की बात अधूरी रह गई।सीमा का हाथ अपने हाथ में लेकर पूजा बोली,” मुझे माफ़ करना…श्रद्धा अंकित से शादी ने कर सकती क्योंकि वह शशांक नाम के लड़के से प्यार करती है और वो…।”
” बस कर पूजा…।” सीमा गुस्से-से चीख पड़ी।
“घर बुलाकर जो तूने हमारा अपमान किया है, इसे मैं उम्र भर नहीं भूलूँगी…तू कभी….।” सीमा अपनी बात पूरी करती, उससे पहले ही संजीव उसके मुँह पर अपना हाथ रखते हुए बोले,” सीमा…अपशब्द नहीं बोलो।एक बार उसकी बात तो सुन लो…।” लेकिन सीमा पैर पटकती हुई वहाँ से चली आई।इस तरह से उन दोनों की दोस्ती के रंग फ़ीके पड़ गये।
कुछ दिनों के बाद अंकित कनाडा चला गया।जाने से पहले उसने सीमा को बताया कि माँ..श्रद्धा ने इतना ही कहा था कि अंकित अच्छा लड़का है और आँटी ने उसे शादी की सहमति समझ ली..।प्लीज़..आप उन्हें माफ़ कर दीजिये लेकिन सीमा अपना अपमान भूलने को कतई तैयार न थी।
श्रद्धा की शादी शशांक से हो गई।दो महीने तो दोनों के मज़े से कटे लेकिन फिर छोटी-छोटी बातों पर तकरार होने लगा…आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला-सा चल पड़ा था।फिर एक दिन शशांक ने श्रद्धा पर हाथ उठा दिया।नाज़ों से पाली अपनी बेटी के गाल पर शशांक की ऊँगलियों के लाल-लाल निशान देकर पूजा का मन रो उठा।अपने पिता के सीने से लगकर श्रद्धा फूट-फूटकर रोने लगी।ये लोग कुछ सोच पाते..तब तक में शशांक ने तलाक का नोटिस भेज दिया।
ईश्वर की मर्ज़ी के आगे कब किसी की चलती है।आपसी रज़ामंदी से तीन महीनों के अंदर ही श्रद्धा का तलाक हो गया।पूजा ने समझा कि ये सब सीमा की बद्दुआओं का ही परिणाम है…वह मन ही मन सीमा पर बहुत क्रोधित हुई।
अकेलेपन से घिरकर श्रद्धा डिप्रेशन में जाने लगी तब अंकित ने उससे संपर्क किया…उसे समझाने का प्रयास किया और उसे बीती बातों को भूलकर आगे बढ़ने को कहा।वह दिन में एक बार श्रद्धा को अवश्य फ़ोन कर लेता जिससे श्रद्धा में काफ़ी सुधार आने लगा।धीरे-धीरे उसे महसूस होने लगा कि वह शशांक से प्यार करने लगी है।बेटी में आये बदलाव को प्रशांत ने महसूस किया तो उसने संजीव से बात की।सीमा का गुस्सा भी ठंडा हो चुका था लेकिन पूजा…।तब संजीव मुस्कुराते हुए बोले,” अब बेरंग से रिश्तों में रंग भरने का समय आ गया है।कल दोनों सहेलियाँ फिर से होली खेलेंगी…।”
अगले दिन सुबह-सुबह काॅलबेल बजी…पूजा ने दरवाज़ा खोला..सामने सीमा को देखा तो वह चौंक पड़ी।दोनों कुछ समझ पातीं तब तक में श्रद्धा ने दोनों पर रंग डाल दिया…पीछे से आकर अंकित ने भी ‘होली है’ कहते हुए रंग से भरी एक बाल्टी दोनों पर डाल दी। प्रशांत-संजीव ‘हैप्पी होली ‘ कहकर गले मिलने लगे तब दोनों को सारी माज़रा समझ में आ गया। दोनों सहेलियाँ एक-दूसरे के गले मिली तो पुराने गिले-शिकवे रंगीन पानी के साथ बह गया।उन्होंने अपनी दोस्ती के बेरंग से रिश्तों को होली के रंग से सराबोर कर दिया था।
दो दिन बाद सीमा शगुन लेकर आई…अंकित-श्रद्धा ने एक-दूसरे को अंगूठी पहनाई और एक शुभ मुहूर्त में दोनों का विवाह हो गया।इस तरह दो पक्की सहेलियाँ अब एक-दूसरे की समधन बन गईं।
विभा गुप्ता
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# बेरंग से रिश्तों में रंग भरने का समय आ गया है”