सजा – डॉ संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

इतनी रात गए,मानसी के कमरे की लाइट जलती हुई देखकर सुलभा का माथा ठनका,ये लड़की अभी तक जाग रही है या बत्ती जलाकर ही सो गई दिखती है…हे भगवान!कब समझेगी ये लड़की,जब से इसके पिता नहीं रहे,ये मेरी सुनती ही नहीं,खर्चे बढ़ रहे हैं और साथ ही इसकी मनमानियां भी।

बड़बड़ाती हुई वो कमरे में घुसी,देखा,मानसी बड़े मनोयोग से अपनी कोर्स की किताबें पढ़ रही थी।

उसे देखते ही चौंकी,मम्मी!सोई नहीं आप अभी तक?मानसी ने अपने चश्मे को साफ करते पूछा।

उसका चश्मा देखते ही सुलभा चिढ़ जाती थी,एक तो इस लड़की का रंग पक्का है, भारी शरीर है और ऊपर से आंखों पर चश्मा…रात रात भर पढ़ाई कर और नंबर बढ़ा लेगी…फिर कौन शादी करेगा इससे?

उसके भाव समझ गई थी मानसी..बस मां!इतना जोर न डालो दिमाग पर…कुछ न बोलो,वैसे भी कुछ होना नहीं,पढ़ लिख कर कोई नौकरी मिल भी जायेगी मुझे,चश्मा हो या न हो,अच्छा लड़का मुझे मिलने से रहा।

कितना जुबान चलाती है तू!इतना दिमाग चला कर मेरी बात मान लेती तो आज तक तेरी शादी हो भी जाती। सुलभा किलसती हुई बोली।

क्या चाहती हैं आप?पढ़ाई न करूं,स्टाइल से रहना सीखूं, मेक अप की परत चढ़ाए घूमूं जिससे कोई अमीर लड़का फंस जाए?यही सब न!

कितनी बेशरम हो गई है मानसी?अपनी मां से कोई ऐसे बात करता है?

तो फिर आप समझ क्यों नहीं लेती कि मुझे इन तरीकों से शादी नहीं करनी है,हर महीने किसी के सामने आप मेरी नुमाइश लगवा देती हैं और वो मुझे कभी मेरे मोटे शरीर पर तो कभी काले रंग पर नकार जाते हैं,मुझे कोई सजा मिली है क्या इस जिंदगी में?आप मुझे सुकून से जीने क्यों नहीं देती?

और तुमहारे अनुसार सुकून क्या है?इन किताबों से आंखें फोड़ना,नौकरी की आस में बूढ़ा हो जाना? मां ने कहा।

अब मां ऐसे भी न कहो,आपको मैं बूढ़ी दिखती हूं?ठीक है जब अपनी मां ही ये कह रही है तो कोई बाहर वाला ही कुछ बोल देता है तो बुरा क्या मानना?

मानसी उदास हो गई थी।

सुलभा को लगा कि उसे ऐसे नहीं कहना चाहिए था,सॉरी बेटा! वो मानसी के पास आई और बोली,हर मां बाप का एक सपना होता है कि उनकी बेटी का विवाह एक अच्छे और सच्चे इंसान से हो और वो अपनी ससुराल में राज करे।बस रात दिन ,तेरे ब्याह की चिंता मुझे सताती है,आज तेरे पापा जिंदा होते ,तो मुझे इतनी चिंता न भी होती पर अब तो मै ही मां बाप दोनो का रोल निभा रही हूं 

दोनो मां बेटी आपस में लिपट कर रोने लगी थीं।

ठीक है मां..बताओ क्या कहने आई थीं? मानसी ने पूछा उससे।

कल तुझे देखने लड़के वाले आयेंगे,बड़ा अच्छा लड़का है,कमाता खाता भरा पूरा परिवार है,अच्छे से तैयार होकर आना उनके सामने,मुस्करा के बात करना,समझी!!

ठीक है, तू टेंशन मत ले मां!जैसा कहती हो वो ही करूंगी,अब तो खुश!जाओ सो जाओ अब।मानसी बोली।

तू भी तो सो जा,आंखों के किनारे सूजन आ गई है,काले गड्ढे पड़ गए हैं,सुलभा फिक्र करती बोली।

ओके मेरी मदर इंडिया!मानसी ने माहौल को हल्का करते कहा,कल मै ब्यूटी क्वीन बनकर आऊंगी और वो लोग मुझे पसंद कर के ले जायेंगे अपने साथ,फिर रोती रहना यहां अकेली बैठकर।

अगले दिन,मानसी ने घर पर ही फेशियल किया,शैंपू किए बाल हवा में लहराते बहुत सुंदर लग रहे थे,वो देखने में थोड़ी मोटी थी,सांवले रंग वाली थी लेकिन फीचर्स बहुत शार्प थे उसके। कजरारी मोटी आंखें, मोती से चमकते दांत और मीठी आवाज़ की मलिका,कुल मिलाकर खूबसूरत लगती थी पर जो भी देखने आता उसे,इस सबके के साथ उसे मोटा दान दहेज भी चाहिए था जो उन लोगों के पास नहीं था बस वो किसी न किसी बहाने बात टाल देते।और तो और, हर बार उसकी मां का पांच सौ हजार रुपया,उनकी आवभगत में खर्च हो जाता।वो खूब दिल से लजीज व्यंजन उड़ाते और बाद ने टका सा जबाव दे देते,”लड़की काली है,मोटी है,हमारे लड़के के साथ जोड़ी जमेगी नहीं उसकी और जो कुछ ज्यादा समझदार होते वो कह देते कि बच्चों की कुंडली मैच नहीं कर रही।”

मानसी चिढ़ के कहती,”तो यहां ठूसने क्यों चले आए थे?ये कोई पिकनिक स्पॉट है क्या?फ्री का खाया पिया,चल दिए।”

आज भी उसकी मां,नाश्ते पानी का इंतजाम करने गई थी,तभी दरवाजे पर आहट हुई,मानसी ने दौड़े दरवाजा खोला।

सामने मां के साथ कोई अजनबी नवयुवक था जो उसकी मां को संभाल कर पकड़े था,सड़क पर वो किसी वाहन से टकरा के गिर गई थीं,वो तो भला हो उस नवयुवक का जिस ने अपना नाम राजेश बताया था,वो उसकी मां को लेकर आ गया था।

मां राजेश की मुंह भर के तारीफ कर रही थीं और वो विनम्रता से यही कह रहा था, “ये तो मेरा कर्तव्य था मांजी,कोई दूसरा भी यही करता ऐसे में।” वो जाने को हुआ, उन लोगों ने भी उसे रोका नहीं क्योंकि उनके मेहमान आने वाले थे।फिर आने का वादा लेकर,दोनो ने उसे विदा किया।

मेहमान आए और एक बार फिर वही प्रक्रिया दोहराई गई।इस बार मां को भी बहुत बुरा लगा।उसने बाद में मानसी का दिल टटोला,”क्यों न राजेश से बात करूं?वो तुझे बड़ी प्यारी निगाहों से देख रहा था।”

“मां! ऐसे हर किसी को बस एक ही नजर से मत देखा करो, माना की वो ठीक होंगे पर सिंगल हों ये जरूरी है?फिर मुझसे शादी करना चाहे इसकी क्या गारंटी है?”

“वो सब तू मुझपर छोड़ दे.”.मां ने कहा और अगले रविवार राजेश को फोन करके अपने घर चाय पर बुलाया।

राजेश ने बताया कि उसके घर में वो और उसकी छोटी बहन है जिसे वो बहुत प्यार करता है,वो उसकी जान है,इसके लिए वो कुछ भी कर सकता है।घुमा फिरा के सुलभा ने उससे शादी को पूछा तो वो इंकार न कर सका कि उसे मानसी पसंद नहीं है।

मानसी भी कुछ क्षण को सोच में पड़ गई।देखती आंखों,उसका व्यवहार बहुत अच्छा था,उसका अपना घर भी था और एक साधारण सी नौकरी भी।

“क्या वो वाकई में,मुझे पसंद करता है? क्या उसकी कोई डिमांड्स नहीं होंगी?” मानसी सोचती फिर उसे लगता कि आखिर उसमे ऐसी क्या कमी है,वो तो लालच में लोग उसे ठुकराते हैं,ये सचमुच अच्छे दिल का मालिक है,उसका रुझान भी राजेश की तरफ होने लगा।

वो दोनो मिलने लगे थे और एक दूसरे को पसंद भी करने लगे थे। जब भी वो मिलते,राजेश की बहन का फोन आ जाता,”भैया!मुझे आपके साथ शॉपिंग जाना है…भैया!आप कहां हो जल्दी आ जाओ,मेरा गोलगप्पे खाने का दिल कर रहा है।”

मानसी को अटपटा लगता पर ये सोचकर कि बहन भाई बहुत क्लोज हैं,वो चुप रह जाती।

उधर राजेश के दोस्त आरिष ने उससे पूछा,”ये सारी खूबसूरत लड़कियों को छोड़कर किस कबाड़ के साथ घूमते हो आजकल..कितनी डार्क कंप्लेकशन की भारी से बदन की है वो।”

 “अरे यार!टाइम पास है”,राजेश ने आंख मारी,”ऐसी लड़कियों के नखरे बहुत कम होते हैं,खर्च भी नहीं करवाती वो,बस मजे लूटकर छोड़ दूंगा।”

और एक दिन,ऐसे ही किन्हीं क्षणों में,राजेश मानसी के लाख मना करने के बाबजूद उससे अंतरंग हो गया।मानसी इसी उहापोह में झूलती रह गई कि ये सही होगा या नहीं,एक तरफ उसे डर था कि गुस्से में आकर राजेश भी उसे छोड़ ना दे ,उसकी मां तो जिंदा ही लाश बन जायेगी फिर और अगर उसने धोखा दिया मानसी को तो वो दोनो ही मर जायेंगी।

राजेश की असलियत सामने आ गई थी,वो मानसी को बस इस्तेमाल ही कर रहा था।दोनो मां बेटियां,बुरी तरह टूट गई।वो उस शहर को छोड़ के जाना चाहती थीं,कई महीने बीत चुके थे और मानसी ने घर से निकलना भी छोड़ दिया था।

अचानक उनके घर के दरवाजे पर दस्तक हुई।

राजेश मुंह नीचे किए खड़ा था,वो मानसी से गिड़गिड़ा के माफी मांग रहा था और खुद शादी का प्रस्ताव उसके सामने रख रहा था।

“अब कोई नया ड्रामा करना है?क्यों आए हो?” मानसी ने चीखते हुए उसे बाहर करना चाहा।

“मुझे मेरे किए की सजा मिल गई है मानसी…” वो कातर आवाज में बोला।

“तो मै क्या करूं?जाओ!सजा भुगतो फिर…” वो कटुता से बोली।

“सुनोगी नहीं…तुमसे कहकर शायद मेरा जलता मन शांत हो,मैंने जो ज्यादती तुम्हारे साथ की,किसी ने ठीक वही मेरी जान से प्यारी बहन के साथ किया और उसने अपनी जान दे दी।”

“क्या??अब मानसी चौंकी,ये कब हुआ? उफ्फ..ये बहुत गलत हुआ,ये तो किसी के भी साथ कभी नहीं होना चाहिए।”

राजेश मुंह लटकाए जाने को हुआ,उसे लगा,मानसी को ठंडक पड़ी होगी कि उसके अपराधी को दंड मिल चुका है पर मानसी ने उसका हाथ पकड़ लिया।

“सुनो!कब आ रहे हो बारात लेकर मेरे घर?”

“क्या??तुमने मुझे माफ कर दिया?” वो आश्चर्य से बोला।

“क्योंकि हम दोनो अपनी सजा काट चुके हैं…,मैंने गरीबी,अपमान का बहुत दंश झेल लिया पर प्यार तो तुमसे ही किया और तुमने अपनी जान से प्यारी बहन को खोकर खुद को पहचान लिया,और लड़कियों की इज्जत करना सीख गए, वो धीरे से बोली। सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते।

प्रिय पाठकों!आपको ये कहानी कैसी लगी,बताइए,आपकी सकारात्मक समीक्षाएं हमें प्रोत्साहित करती हैं।जिंदगी चलते रहने का नाम है इसलिए हर कहानी में कुछ संदेश देते हुए पॉजिटिव समापन करना उद्देश्य रहता है मेरा।

डॉ संगीता अग्रवाल

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