थप्पड़ की गूंज से रोहिणी जी की नींद खुल जाती है, बगल वाला कमरा उनके बेटे विक्रम का था, आवाज वही से आई थी, उन्होंने चश्मा लगाया और उस तरफ चल दी, दरवाजे पर कान लगाया तो बहू मेघा की सिसकियों की आवाज सुनाई दी, उन्होंने खटखटाना चाहा, पर फिर खुद को ही रोक लिया, इतनी रात को दरवाजा खुलाना सही तो नहीं रहेगा, अपने आप को समझाकर वो वापस अपने बिस्तर पर आ गई, काफी देर तक करवटें बदलती रही, सुबह मेघा से बात करूंगी, ये सोचकर वो सो गई।
सुबह वो उठकर मंदिर जाकर आ गई, तभी उन्हें मेघा को देखकर रात वाली बात याद आई, ” मेघा रात को तुम्हारे कमरे से अजीब सी आवाजें आ रही थी, मै आई थी पर फिर तुम्हें जगाना उचित नहीं समझा।”
“हां, मम्मी जी वो टेबल पर से पानी का गिलास गिर गया था।” मेघा ने बात को छुपाते हुए कह दिया।
मेघा की सूजी हुई आंखें सब बता रही थी, आखिर वो रात को कितनी रोई थी और ढंग से सो भी नहीं पाई, रोहिणी जी उसका हाल देखकर सब समझ तो गई थी।
तभी गुस्से में दनदनाता हुआ विक्रम आया, “अभी तक नाश्ता भी नहीं बना, मुझे दुकान जाना है, मेघा तुम कोई काम ढंग से कर सकती हो या नहीं? या तुम्हारे कारण मै हमेशा ऐसे ही परेशान होता रहूंगा।”
मेघा ने एक शब्द भी मुंह से नहीं निकाला और फटाफट से पोहे की प्लेट विक्रम के आगे रख दी, “फिर से पोहे? और विक्रम ने पोहे की प्लेट फेंक दी, तुम्हें तो कुछ नहीं आता है, मै बाहर ही नाश्ता कर लूंगा, खाना बनवाकर भी दुकान भेजने की कोई जरूरत नहीं है।” और गुस्से में दरवाजा पटकते हुए विक्रम चला गया।
रोहिणी जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था, आखिर अभी शादी को कुछ ही महीने हुए हैं और विक्रम मेघा के साथ ऐसे कैसे दुर्व्यवहार कर रहा है, मेघा भी दिनभर खामोश सी रहती है, घर का काम करती है और अपने कमरे में चली जाती है।
विक्रम का व्यवहार मेघा के प्रति दिनों-दिन बिगड़ रहा था, एक सुबह जब विक्रम मेघा पर चिल्ला रहा था तो रोहिणी जी ने उसे थप्पड़ जड़ दिया, “ये क्या बदतमीजी है, मै कई दिनों से देख रही हूं, अपनी पत्नी से कोई ऐसे बात करता है क्या? मेघा तेरी नौकरानी नहीं है, वो तेरी पत्नी है, अपनी पत्नी से इज्जत से बात किया कर!”
विक्रम कुछ ना बोला ं और चला गया, ” मेघा क्या बात है? मेरा पूछना सही तो नहीं लगता है, वैसे भी ये तुम दोनों के बीच का मामला है, लेकिन अब ये कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है, मुझसे ये रोज-रोज के झगडे अब देखे नहीं जाते हैं।
अपनी सास की सहानुभूति पाकर मेघा आज पिघल गई, ” मम्मी जी ये रोज मुझ पर ऐसे ही गुस्सा करते हैं, कमरे के अंदर तो ये मुझ पर हाथ तक उठा देते हैं, मेरे भाई ने एक महंगी कार ली है, तब से ही ये मुझ पर दबाव डाल रहे हैं कि मै अपने मायके से वैसी ही कार लेकर आऊं, मैंने अपने पापा से कार मांगने से इंकार कर दिया, क्यों कि पापा ने अपनी सारी जमा पूंजी मेरी शादी में लगा दी थी, भाई तो वहां दूसरे शहर में अच्छी नौकरी करता है, उसने अपनी कमाई से वो कार ली है, मै अपने पापा से कैसे कह सकती हूं? मेरे पापा अकेले मेरे लिए कितना करेंगे? अभी शादी में उन्होंने इतना कुछ दिया है।’
मेघा के मुंह से ये बात सुनकर रोहिणी जी के पैरों के नीचे से जमीन सरक गई, उनका बेटा घरेलू हिंसा कर रहा है और दहेज मांग रहा है।
अगले दिन बेटे के दुकान जाते ही उन्होंने अपनी सहेली के बेटे को घर पर बुला लिया, जो वकील था, उसने मेघा और रोहिणी जी की पूरी बातें सुनी, और रोहिणी जी के कहने पर विक्रम के खिलाफ केस दर्ज कर लिया।
मेघा बहुत घबराई हुई थी, “मम्मी जी आप अपने ही बेटे के खिलाफ केस कैसे कर सकती है? विक्रम आपका बेटा है और मै तो बहू हूं, जबकि मां को हमेशा अपना बेटा प्यारा होता है, आप अपने ही बेटे के खिलाफ कैसे जा सकती है?”
“हां, मैंने अपने ही बेटे के खिलाफ केस किया है, क्योंकि एक मां से पहले मै एक पत्नी हूं, एक स्त्री हूं, मै तुम्हारा दर्द अच्छे से समझ सकती हूं, विक्रम के पापा भी मुझ पर बात-बात पर हाथ उठा लिया करते थे, मै चुपचाप सहन कर लेती थी, जैसे तुम सहन कर रही थी, वैसे भी एक पत्नी अपने पति की गलतियों पर पर्दा डाल देती है, मै भी रोज सहन करती थी पर अब मै तुम्हे सहन नहीं करने दूंगी, मै एक मां हूं जो बच्चे के अच्छे काम करने पर उसे प्यार करती है तो बुरे काम करने पर उसे सजा देना भी जानती है, सजा मिलेगी तो ये सबक उसे जीवनभर याद तो रहेगा।”
कोर्ट में विक्रम को बुलाया गया, अपनी ही मां ने उस पर केस किया है, ये बात उससे सहन नहीं हो रही थी, वो बौखलाकर बोला, “मम्मी ये सब क्या है? आप अपने बेटे के खिलाफ?”
“हां, विक्रम, तूने मुझे मजबूर कर दिया है, मै अपनी बहू की ये दुर्दशा नहीं देख सकती हूं, वो पत्नी है इसका मतलब वो कुछ भी सहेगी, तू अपनी मां की इज्जत करता है तो पत्नी की इज्जत भी करना सीख, वो घरेलू हिंसा का शिकार हो रही थी तो मेरा फर्ज है मै एक स्त्री होने के नाते एक स्त्री के अधिकारों की पूरी रक्षा करूं। तभी तो घरेलू हिंसा में कमी आयेगी, वरना तुझ जैसे बेटे अपने लालच और स्वार्थ के खातिर अपनी पत्नियों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते रहेंगे, सजा मिलेगी तो दोबारा ऐसा करने तक की सोचेगा नहीं।’
विक्रम ने माफी मांगी, कोर्ट ने उसे जुर्माना भरने को कहा, और चेतावनी देकर छोड़ दिया कि आगे से वो ऐसा नहीं करेगा। मेघा ने अपनी सास का धन्यवाद किया क्योंकि उन्हीं की वजह से उसे अपनी खोई हुई इज्जत मिली और घरेलू हिंसा से मुक्ति मिल गई।
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
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