शैली —! चल अब घर जाने का टाइम हो गया है——- क्या तू अब ओवर टाइम करेगी ! शैलजा की सहकर्मी श्रेया ने, शैलजा को धीरे से कहा । शैलजा चाय की आखिरी घूट लेते हुए कहा “यार—- ओवर टाइम ही कर लूंगी” लेकिन अभी घर जाने का मूड नहीं है मेरा।
” क्या हुआ लगता है तुझे घर की कोई टेंशन नहीं ऑफिस के झंझट में ही फंसे रहने का इरादा है । कहीं—— तूने घर के लिए “केयर टेकर” तो नही रख लिया—–! श्रेया ने आंखे मटकाते हुए पूछा ।
“अरे नहीं—-! घर में मेरी कोई कदर ही नहीं है इसलिए कुछ टाइम यही बिताना चाहती हूं। रही बात घर संभालने की तो वह मैं लेट जाऊं या जल्दी, “जियू या मरु” सभी परिस्थितियों में मुझे ही घर का काम करना होगा । शैलजा ने उखड़े हुए शब्दों में कहा ।
अच्छा चल—-! अब अपना मूड ठीक कर ले “मैं नीचे जा रही हूं तू भी आ जाना ।
कहते ,हाथ में पर्स और कुछ पेपर लेकर श्रेया चली गई ।
शैलजा एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करती थी पति भी इंजीनियर थे दोनों की शादी के 6 साल बीत चुके थे। इनकी एक बेटी रूही थी जो अभी सिर्फ 2 साल की थी। कुछ दिन पहले शैलजा की मम्मी आई तो स्नेहवश अपनी नातिन को ,अपने साथ ले गई ।
अब शैलजा थोड़ी फ्री हो गई थी ।
लेकिन कल रात शैलजा के पेट में अचानक से दर्द उठा पति साकेत जो गहरी नींद में सो रहे थे, को उठाना चाहा लेकिन उनकी नींद थकान के कारण नहीं खुल पाई। फिर शैलजा को वोमिटिंग के साथ में लूज मोशन भी शुरू हो गया सभी से निपटने के बाद उसने दवाइयां ली और सोने की कोशिश करने लगी लेकिन दर्द की वजह से उसे नींद नहीं आ रही थी। जैसे तैसे कर उसने रात तो गुजारी पर सुबह उसे होश नहीं था। वह गहरी नींद में सो रही थी ।” शैलजा उठो—— मुझे चंडीगढ़ जाना है फटाफट—- मेरा नाश्ता तैयार कर दो”। जब शैलजा जागी ,तब तक साकेत जा चुका था अरे लगता है मेरी आंख नहीं खुली, और साकेत बगैर मेरा हाल-चाल जाने चंडीगढ़ चले भी गए। अंदर-अंदर कूढती रही कि मेरे बीमार होने पर भी,मेरे पति को कोई फर्क नहीं पड़ता। “अभी परसों सब्जी काटते वक्त मेरा हाथ कट गया,” साकेत वहीं बैठे ऑफिस का काम कर रहे थे लेकिन उन्होंने मुझे इग्नोर कर दिया । सोचती- सोचती ऑफिस के लिए तैयार होने लगी ।
ऑफिस में “ऑफिस और घर” दोनों टेंशन के साथ ,वह जल्दी-जल्दी अपना काम निपटा ही रही थी कि तभी फिर से श्रेया का फोन आया!
हां श्रेया,। अभी आ रही हूं बस 5 मिनट ।
देख एक सरप्राइज है तेरे लिये। श्रेया ने मस्ती में बोला
क्या है जल्दी बाता! शैलजा काम करते बोली।
नहीं तू अभी नीचे आ, कब से “मैं इंतजार कर रही हूं बाकी काम कल के लिए छोड़ दे । श्रेया बोली।
नीचे आते ही शैलजा आश्चर्यचकित हो गई ।
“अरे आप?? आप तो चंडीगढ़ गए थे और इतनी जल्दी चंडीगढ़ से आना पॉसिबल नहीं है । शैलजा ने साकेत को देखते ही पूछा।
” हां गया तो था ,पर मुझे पता नहीं “तुम्हारी तबीयत कुछ सही नहीं लगी।
रात में भी लगा जैसे तुम मुझे उठा रही हो। और सुबह जब तुमको उठाया तो तुम 5 मिनट, कह दोबारा सो गई। नहीं तो “तुम जल्दी उठ जाती हो जिस दिन मुझे कहीं जाना होता है ।”
मैं आज बॉस से “अपनी तबीयत का बहाना कर, आधे रास्ते से ही लौट आया हूं।
यहां टाइम से पहुंचते ही सोचा, तुमको पिक कर लूंगा और तुम्हें डॉक्टर को भी दिखला आऊंगा।
अच्छा —-! मुझे लगा कि उस दिन जब मेरी उंगली कट गई और तुमने मुझे इग्नोर कर दिया था तो, शायद आज भी इग्नोर करोगे। शैलजा ने शिकायती लहजे से कहा।
” नहीं शैली हम मर्द ज्यादा दिखावा नहीं कर पाते हैं लेकिन प्यार भरपूर करते हैं । वैसे मुझे लगा था कि थोड़ी सी कट है ठीक हो जाएगा । साकेत हंसते हुए बोला।
पर उस दिन मुझे तो सिर्फ तुम्हारी सिंपैथी चाहिए थी और कुछ नहीं। शैलजा इठलाते हुए बोल पड़ी ।
” अच्छा बाबा चलो!” मैं तुम्हें सॉरी कहता हूं!
साकेत ने कान पकड़ ली और हंसते हुए बोला अब तो चलो मेरी मां ।
डॉक्टर को दिखाना है तुम्हें।
“सॉरी मैंने तुमको गलत समझा “बट नाउ आई एम रिलाईजिंग दैट यू लव मी लाटस—–!
तो चलें अब डॉक्टर –अब मैं बिल्कुल ठीक हूं चलो घर चलते हैं!
शैलजा साकेत के बात को बीच में ही काटते और उससे लिपटते हुए बोली ।
“तो दोस्तों जरूरी नहीं है कि प्यार दिखाया जाए ,प्यार को हम महसूस भी कर सकते हैं”। खासकर मर्दों में दिखाने वाली प्रवृत्ति नहीं होती इसका मतलब यह तो नहीं कि उनको कोई फर्क नहीं पड़ता। और मर्दों को भी प्यार जताना आना चाहिए।
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धन्यवाद।
मनीषा सिंह