चमत्कार – करुणा मलिक : Moral stories in hindi

माला और हेमंत की शादी को सोलह साल हो चुके थे ।  इन बीते सालों में उन दोनों ने  शहर के बड़े से बड़े डॉक्टरों को दिखाया, न जाने कितने टैस्ट हुए पर सभी मेडिकल रिपोर्ट नार्मल थी । डॉक्टरों की पूरी – पूरी टीम केस डिस्कस करती लेकिन माला मातृत्व के सुख से वंचित रही । टैस्ट ट्यूब बेबी, सोरोगेसी , सभी बिंदुओं पर सलाह तो दी गई  पर इन सब में से किसी के लिए  भी कदम नहीं उठाया । माला और हेमंत के दिल में न जाने  , किस बलबूते पर एक विश्वास पल रहा था कि ईश्वर हमें औलाद का सुख अवश्य देगा । दोनों ने , न  जाने कहाँ-कहाँ की ख़ाक छानी , किस-किस चौखट पर माथा टेका , किस-किस दरगाह पर चादर चढ़ाई पर भगवान की नजरेकरम न हुई । 

गाँव से बार-बार दादी का फ़ोन आता और वे एक ही बात की रट लगाती-

अरे मुन्ना! कैसी डाक्टरी की है रे तूने ? अपना और बहुरिया का इलाज ही ना होता तुझसे ?  तो दूसरों का कैसा इलाज करोगे ? ऐसी नवी-नवी तरकीबें चली हैं । सब के बच्चे हो रहे , राम जाने , कौन सा पाप हो गया, कोई दवा भी ना असर कर रही?

अब हेमंत दादी-दादा और माँ- बापू को कैसे समझाए कि बीमारी में ही तो दवाई ली जाती है । टैस्ट में हर चीज़ नार्मल है। उसने अपने डॉक्टर मित्रों से सलाह-मशवरा करके अंत में टैस्ट ट्यूब बेबी के लिए ही फ़ैसला किया । पर माला इसके लिए तैयार ही नहीं थी । पता नहीं, उसने कहीं पढ़ा था या किसी से सुना था कि अनटोलरेबल प्रोसेस होता है आई० वी० एफ० और कई बार कामयाब भी नहीं होता । इसी वजह से उसने हेमंत से कह दिया—

नहीं हेमंत!  मानसिक परेशानी तो झेल रही हूँ पर शारीरिक परेशानी झेलने के लिए मत कहना प्लीज़ । अगर गारंटी दो कि बेबी हो जाएगा तो तैयार हो भी जाऊँ ।

अब हेमंत गारंटी कैसे दें ? भले ही विज्ञान ने कितनी भी तरक़्क़ी कर ली हो पर ईश्वर को मात नहीं दे सका है । सोरोगेसी का तो प्रश्न ही नहीं उठता था । हेमंत के पारंपरिक विचार इसके पूरी तरह से ख़िलाफ़ थे ।अंत में, दोनों ने निश्चय किया कि अगर कोई चीज़ भाग्य में नहीं होती तो भगवान देकर भी छीन लेता है । इसलिए इस बारे में ज़्यादा सोचना बंद , जैसी ईश्वर की मर्ज़ी । 

परपोते को  गोद में खिलाने की लालसा लिए , हेमंत के दादा-दादी तो चल बसे । अब माँ- बापू ने वही रट पकड़ ली ।

अरे बेटा, कोई पुरखों का नाम लेवा भी नहीं रहेगा । बहू को राज़ी कर , दूसरे विवाह के लिए । कोई बाहर की नहीं तो अपनी बहन को ही ले आए ।

माँ, अगर आपने दुबारा ऐसी बात की तो मैं कभी  यहाँ आना तो दूर , फ़ोन  तक भी नहीं करूँगा । जब हम बच्चा गोद लेने के लिए तैयार हैं तो आपको क्या समस्या है? 

अरे नासमझ , कौन , किसका बच्चा होगा ? ऐसे ही कैसे पुरखों की अमानत सौंप देंगे ? मेरे जीते जी तो ये ना होगा , मरने पे जो कर लेना ।  देई- पितर जोत भी स्वीकार नहीं करेंगे । 

माँ, दुनिया कहाँ की कहाँ जा पहुँची है । फिर बच्चे को जैसा माहौल देंगे, परवरिश करेंगे वो वैसा ही होगा । माँ ! दरअसल अस्पताल में अक्सर ऐसे बच्चे मिल ही जाते हैं । जिनके माँ-बाप उन्हें किसी मजबूरी के कारण नहीं ले जाते । 

मुझे बेवकूफ मत समझ छोरे ! दो अक्षर का पढ़ लिए ? खुद को ज़्यादा बड़ा समझने लगा । बहू को फ़ोन दे , मुझे तेरे से कोई बात ही नहीं करनी । मुझे सब पता है कि कौन से लोग अपने बच्चों को अस्पताल से नहीं ले जाते ।

इस तरह कहासुनी के बाद फ़ोन कटता ।  ईश्वर की लीला ……एक दिन हेमंत ने माला को फ़ोन करके बताया कि —-

शहर के एक प्राइवेट अस्पताल में कुछ घंटों पहले ही एक बच्ची का जन्म हुआ है और वे लोग उस नवजात को अपने साथ लेकर नहीं जाना चाहते , कहो तो डॉ० से बात कर लूँ ?

कर लीजिए हेमंत, इस बार बच्चे को हाथ से ना जाने देना । मैं अभी पहुँचती हूँ, लोकेशन शेयर कीजिए । माँ को फ़ोन कर दूँ क्या ? 

अभी नहीं, तुम सबसे पहले वहाँ पहुँचो । माँ- बापू को बाद में बताएँगे ।

दो घंटे के भीतर ही माला की गोद में एक छोटी सी बच्ची थी । उसे तौलिए में लपेटकर , कंधे से लगाते ही माला को ऐसा लगा मानो उसके जीवन की सबसे बड़ी कमी पूरी हो गई हो । 

शाम को  हेमंत ने माँ- बापू को बताया तो उन्होंने माला और हेमंत को जी भर के खरी खोटी सुनाते हुए कहा—

किसी का पाप लेकर बाप- दादा की भूमि पर पैर रखने की कोशिश मत करना । तेरी तरफ़ से तो हम मर गए ।

जहाँ एक ओर  बच्ची को पाकर माला  और हेमंत का दिल बाद-बाग हो रहा था वहीं माँ- बापू के शब्दों ने ह्रदय को छलनी कर दिया । ख़ैर यह सोचकर दोनों ने एक-दूसरे को तसल्ली दी कि माँ-बाप का ऐसा व्यवहार स्वाभाविक है, समय के साथ ठीक हो जाएगा ।

अभी माला और हेमंत की लाड़ली सिर्फ़ तीन महीने की हुई थी कि  ईश्वर ने वो चमत्कार कर दिया जिसकी कल्पना भी माला और हेमंत ने अब नहीं की थी ।माला के माँ बनने की खबर ने हेमंत को  गाँव जाकर  रूठे माँ- बापू को मनाने के लिए मजबूर कर दिया ।

हेमंत ने अब तक केवल सुना था कि मूल से ब्याज प्यारा होता है पर आज उसने प्रत्यक्ष देखा और अनुभव किया था कि किस तरह अपने पोता / पोती के आने की खबर सुनकर माँ बोली —

वो कोई साधारण छोरी ना है मुन्ना ! साक्षात देवी है जो अपने पीछे इस घर का वारिस लेकर आई है । अरे , मैं तेरे साथ चलूँगी, बहू छोटी बच्ची के साथ अपना ख़्याल ना रख पाएगी । यहाँ का क्या है ? फसल कटने तक तेरी बुआ आ जाएगी, फिर यहाँ का ताला मारके तेरे बापू भी आ जाएँगे ।  बहुत रह लिए अकेले , अब अपने पोते/ पोती के साथ जीवन के दिन बिताएँगे।  मैं तो अपनी पोती को दुर्गा पुकारूँगी । तुमने जो नाम रखना होगा, रख लेना ।  जब तक बहू की जचगी ना हो जाएगी, तू उसका ख़्याल रखना और  दुर्गा पर सिर्फ़ मेरा अधिकार रहेगा । 

करुणा मलिक

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