वरदान और रुद्रा चुपचाप ऊपर चले गये। ऊपर का कमरा कबाड़ से भरा था। छत पर एक लेट्रीन और बाथरूम भी था, लेकिन कमरे की फर्श और दीवारों पर प्लास्टर तक नहीं था और छत टीन की थी। दोनों ने मिलकर उस कमरे को सफाई करके रहने लायक बनाया। सास ने नीचे से एक झाड़ू, बाल्टी और एक पुरानी दरी छोटी ननद से भिजवा दी।
कितनी प्यारी थी उनकी सुहागरात। छत पर दरी बिछाकर दोनों लेटे थे। न दूसरी दरी, न चादर, न तकिया। वरदान बहुत उदास था – ” यह हमारा कैसा विवाह है रुद्रा? सुहागरात के दिन हम छत पर जमीन में लेटे हैं। क्या ऐसे ही विवाह के सपने देखे थे हमने?”
” कोई बात नहीं, हम एक दूसरे के साथ हैं। दो हाथ तुम्हारे हैं और दो हाथ मेरे हैं, इन चार हाथों से हम सब कुछ कर लेंगे। अपनी मेहनत और धैर्य से हम अपना समय बहुत सुखद बनायेंगे।”
” मेरे पास कुछ पैसे हैं, कल चलकर कुछ सामान ले आयेंगे। मम्मी ने भी साथ नहीं दिया।”
” हमारे कारण हमारे माता पिता की भावनायें आहत हुई हैं, उन्हें कुछ न कहो। यही क्या कम है कि उन्होंने घर में रहने की इजाजत दे दी है। हमारे सिर पर एक सुरक्षित छत है, रहने को जगह है।”
” कैसे होगा सब, हम दोनों की शिक्षा ही अधूरी है।” वरदान की मायूसी कम नहीं हो रही थी।
” मुझे पाकर भी खुश नहीं हो क्या? हो सकता है आगे चलकर हमारे पास वह सब कुछ होता जिसके सपने हर लड़का और लड़की देखते हैं। धूमधाम से हमारी शादी होती, फूलों से सजी सुहागरात होती लेकिन हम साथ न होते। तुम्हारे और मेरे पहलू में कोई और होता तो……।” रूद्रा एक पल के लिये रुकी फिर बोली – ” आज अगर हम एक न होते तो जिन्दगी भर एक दूसरे की यादों में सिसकते हुये बिताते वो ज्यादा अच्छा था या आज हम खुले आकाश के नीचे एक दूसरे की बॉहों में है, वह ज्यादा अच्छा है?”
” यह बात नहीं है, मैं भी बहुत खुश हूॅ लेकिन तुम्हारे लिये परेशान हूॅ। मुझे तो आदत है लेकिन तुम तो अभाव जानती ही नहीं हो। तुम्हारे पापा सही कह रहे थे कि मैं तुम्हें कुछ नहीं दे पाऊॅगा।”
रुद्रा ने वरदान के मुॅह पर हाथ रख दिया – ” मैं तुम्हें पाकर बहुत खुश हूॅ। अब चाॅद सितारों से भरी इस रात को अपनी मायूसी से ॲधेरी मत बनाओ। यह नीला आकाश, मुस्कराता चन्दा, खिलखिलाती चॉदनी, टिमटिमाते तारे सभी मिलकर हमें हमारे विवाह की बधाई दे रहे हैं। ऐसी सुहागरात भी तो हर एक के नसीब में नहीं होगी।” वरदान ने रुद्रा को अपने सीने में भींच लिया।
उन दोनों ने अभावों से लड़ने के लिये कमर कस ली। पढ़ाई के साथ वरदान ने अपनी ट्यूशनें बढ़ा दी। रुद्रा के समझाने पर वह माॅ की अनजान में चुपके से अपनी बहनों को पैसे देता रहा।
पढ़ाई रुद्रा ने भी नहीं छोड़ी। उसने बी० ए० का प्राइवेट फार्म भर दिया। सबसे पहले एक सस्ता सा मोबाइल खरीदा, यह अब उसकी प्राथमिक आवश्यकता थी।रुद्रा ने एक विज्ञापन देखा जिसमें घर में पढ़ाने वाले ट्यूटर के लिये सम्पर्क करने के लिये एक मोबाइल नम्बर दिया था। उसने उस नम्बर पर बात की तो उसे ट्यूशन तो मिल गई लेकिन उसे उस व्यक्ति को कुछ पैसे कमीशन के रूप में देने पड़े।
इसके बाद तो उसे इतने ट्यूशन मिलने लगे कि उसे मना करना पड़ने लगा। रुद्रा की अंग्रेजी और गणित बहुत अच्छी थी, इसलिये ट्यूशनों से उसका खर्चा आराम से चलने लगा।
सास ननदों की कटूक्तियाॅ वरदान के प्यार के कवच एवं संघर्षों की दहकती ज्वाला में स्वयमेव नष्ट हो जाते थे।
विवाह की पहली वर्षगॉठ पर उसने जबरदस्ती वरदान को मॉ का आशीर्वाद लेने मिठाई लेकर भेजा – ” मैं नहीं जाऊॅगा, वो कुछ गलत कह देंगी तो मुझसे सहन नहीं होगा और ये मिठाई तो वो फेंक ही देंगी।”
” कोई बात नहीं, वो जो करें करने देना। तुम अपना कर्त्तव्य करना, वो माॅ हैं आज के दिन वो तुम्हें कुछ नहीं कहेंगी। हो सकता है वो तुम्हारा खुद इंतजार कर रही हों।”
” तुम भी चलो।”
” मेरे जाने से वो और भी नाराज हो सकती हैं। फिर मैं और तुम क्या अलग है, उनका दिया आशीर्वाद हम दोनों को मिलेगा।”
वरदान गया तो पहले तो सास ने बहुत बातें सुनाईं लेकिन जब वरदान ने जबरदस्ती उनके गले में बाॅहें डालकर मुॅह में मिठाई ठूॅस दीं तो उन्होंने उस पर आशीर्वाद की झड़ी लगा दी, साथ ही कह दिया कि अपने बेटे को छीनने वाली रुद्रा को कभी माफ नहीं करेंगी। वरदान चुप रह गया क्योंकि रुद्रा से वादा करके आया था कि माॅ से कुछ नहीं कहेगा।
धीरे धीरे नीचे से सास के तानों की आवाज आनी बन्द हो गई और सास से छुपकर ननदें भी ऊपर उसके पास आने लगीं।
विवाह की दूसरी वर्षगॉठ पर जब सास ऊपर उसके कमरे में आ गईं तो वह और वरदान दोनों भौचक्के रह गये – ” मम्मी, आप?”
सास ने कोई जवाब नहीं दिया। रुद्रा उनके चरण स्पर्श करने के लिये जैसे ही आगे बढ़ी उन्होंने रुद्रा का हाथ पकड़ा और सीढ़ियॉ उतरती चली गईं। उनके पीछे घिसटती हुई हतप्रभ रुद्रा और उसके पीछे वरदान था। नीचे पहुॅचकर दरवाजे पर सास ने रुद्रा का हाथ छोड़ा – ” यहीं खड़ी रहना।” एक गंभीर स्वर गूॅज उठा।
रुद्रा और वरदान की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तभी हाथ में थाली लिये सास ने आकर आरती उतारी – ” अब अंदर आओ।”
परन्तु भीतर आने की बजाय वे दोनों वहीं माॅ के पैरों में लिपट गये। सास ने दोनों को उठाकर सीने से लगा लिया।
उस दिन पूरे परिवार ने मिलकर आज विवाह का उत्सव मनाया। सास ने अपने हाथ से बहुत सारे पकवान बनाये और सबको खिलाया। दोनों को उपहार भी दिये, नीचे एक कमरा खाली करवाकर उन्हें दे दिया। रुद्रा की खुशी का ठिकाना न था लेकिन अपने पापा मम्मी भी याद आ गये। काश….. पापा भी इसी तरह उन दोनों को अपना लें।
कुछ दिन बाद सास ने एक नया फरमान जारी कर दिया जिससे वह काफी परेशान हो गई – ” बहू, अब तुम घर घर जाकर ट्यूशन नहीं पढ़ाओगी।”
” ठीक है मम्मी जी, बच्चों के इम्तहानों बाद छोड़ दूॅगी।”
वरदान को एम०एस०सी० बाद एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी तो मिल गई लेकिन उस थोड़े से वेतन में जीर्ण-शीर्ण मकान को बनवाना, दोनों ननदों की शादियॉ करना और आगे भविष्य के सपने पूरे कर पाना असम्भव था। वह सास की बात टालना नहीं चाहती थी।
“कोई बात नहीं ” अभी तो बात टल गई है, बच्चों के इम्तहान होने में अभी सात महीने हैं तब तक कोई न कोई रास्ता निकल आयेगा। वरदान ने कहा भी कि वह मम्मी से बात कर लेगा लेकिन उसने यह कहकर मनाकर दिया कि यह सास बहू का मामला है, वह इस सबसे दूर ही रहे।
एक दिन वह ट्यूशन के लिये गई तो उसके छात्र की मम्मी ने उसे चाय के लिये रोक लिया। बातों में उन्होंने बताया कि उनके पति बैंक में ॠण विभाग देखते हैं साथ ही उन्होंने यह भी बताया की आजकल सरकार की ओर से महिला लघु उद्योग के लिये महिलाओं के लिये बहुत अच्छी योजनायें आईं हैं। किसी महिला को व्यापार के लिये पच्चीस हजार तक का ॠण लेना हो तो बताना।
रुद्रा ने बैंक से ॠण लेकर अपने घर के ऊपर वाले कमरे में ही छोटे बच्चों के रेडीमेड कपड़ों का काम शुरू किया। घर के अंदर काम होने के कारण सास बहुत खुश थीं। उन्होंने रुद्रा को घर गृहस्थी के कामों से बिल्कुल मुक्त कर दिया – ” मेरे होते हुये गृहस्थी की चिन्ता करने की जरूरत नहीं। मैं सब देख लूॅगी।”
संघर्ष के उन दोनों में उसकी ननदों ने भी भरपूर सहयोग दिया। एक ही शहर में रहते हुये न कभी पापा आये और न वह गई। फिर एक दिन नीरजा ने बताया था कि उनका स्थानान्तरण हो गया है।
जिम्मेदारियों में सहभागी बनी रुद्रा को वरदान और उसके परिवार ने प्यार का अनमोल खजाना देकर मालामाल कर दिया। काम बढ़ने लगा तो रुद्रा को घर का कमरा छोड़कर किराये पर जगह लेनी पड़ी।
घर की जिम्मेदारियों के प्रति निश्चिंतता आने पर वरदान ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी और पदोन्नति करते करते अपनी कम्पनी का उच्च अधिकारी हो गया।
शादी के बारह वर्ष के भीतर ही उसका जीर्ण-शीर्ण मकान आधुनिक सुख-सुविधाओं से भरपूर दो मंजिली कोठी में बदल गया। दोनों ननदों की धूमधाम से शादी हो गई और वह दो प्यारे बच्चों की माॅ बन गई। अपने व्यापार को पूर्णतः व्यवस्थित करने, एक ननद की शादी होने और मकान बनाने का लक्ष्य पूरा करने के बाद ही उन्होंने बच्चे के विषय में सोंचा था। जीवन संघर्षों के बाद सुहावना हो गया।
” आज इतना उदास क्यों हो नीलिमा?”
” सुकन्या, पापा का यहाॅ से स्थानान्तरण हो गया है। शायद इसी सप्ताह हम सबको यहॉ से जाना पड़े।” नीलिमा की ऑखों में ऑसू थे।
सुकन्या भी बहुत दुखी हो गई – ” फिर तो हम अलग हो जायेंगे, हमारी दोस्ती का क्या होगा? आठ साल से हम साथ पढ़ते खेलते आ रहे हैं। मेरी तो तुम्हारे अलावा कोई सहेली भी नहीं है।”
” क्या करें, पापा ने स्थानान्तरण रुकवाने का बहुत प्रयास किया है लेकिन प्रोन्नति के साथ स्थानान्तरण हुआ है, इसलिये जाना ही पड़ेगा वरना प्रोन्नति निरस्त हो जायेगी।”
आठ वर्ष से साथ रहते रहते दोनों परिवार एक दूसरे के साथ पूरी तरह घुल मिल गये थे। दोनों घर में बच्चों के कपड़े और खिलौने तीनों के लिये आते थे। पता ही नहीं चलता था कि कौन किस घर का सदस्य है?
इसलिये अलग होते समय सब बहुत दुखी थे। हफ्ते भर के अंदर कश्यप साहब नीलिमा और पत्नी सुमन को लेकर चले गये लेकिन दोनों परिवारों ने मिलकर यह तय किया कि साल में एक बार परिवार सहित वो लोग एक दूसरे से जरूर मिलेंगे और कुछ समय साथ छुट्टी मनायेंगे।
समय बीतने के साथ ही तीनों बच्चे अपने अपने अध्ययन में व्यस्त हो गये। बड़े लोगों की व्यस्तता बढ़ती गई और साल में एक बार मिलना भी संभव नहीं रहा। फोन से दोनों परिवार जुड़े तो रहे लेकिन पहले वाली आत्मीयता का अभाव होता गया। जबकि नीलिमा और सुकन्या की दोस्ती आज भी वैसी ही थी।
कालेज से आकर जब तक नीलिमा पूरे दिन की बातें सुकन्या को न बता दे तब तक उसे चैन नहीं था, यही हाल सुकन्या का था। नीलिमा का जब मन होता वह सुकन्या से मिलने चली जाती और सुकन्या भी नीलिमा के पास आ जाती। सुकन्या ने एक परिवर्तन देखा कि अब उनकी मंडली में नीलिमा का भाई मृत्युंजय शामिल नहीं होता था। नीलिमा ने एक बार पूॅछा भी – ” भाई, क्या तुम्हें सुकन्या का आना पसंद नहीं है , अब तुम हम लोगों के साथ नहीं आते।”
” अब हम बच्चे नहीं रहे नीलू, किसी को अन्यथा सोंचने का अवसर क्यों दिया जाये? तुम कभी ऐसा कुछ न सोंचना। अपने घर में उसके आने से रोशनी हो जाती है। घर में गूॅजती तुम दोनों की चिड़ियों सी चहकती आवाज बहुत अच्छी लगती है मुझे।”
नीलिमा के पापा की मृत्यु पर कश्यप साहब पत्नी और सुकन्या के साथ आये। इस परिवार पर अचानक आई विपत्ति से सभी दुखी थे, लेकिन कुदरत के आगे क्या किया जा सकता था। मृत्युंजय का एम० बी० ए० अभी अधूरा था, नीलिमा भी अभी पढ़ रही थी। घर का एकमात्र सहारा पेंशन रह गई थी। एक अच्छाई कि सिर छुपाने के लिये एक छोटा सा घर था।
कुछ दिन बाद नीलिमा ने सुकन्या से फोन पर कहा – ” कुछ खाकर अपना मुॅह मीठा कर लो फिर तुम्हें एक खुशखबरी सुनाऊॅगी।”
” पहले बताओ क्या बात है? कोई ब्वायफ्रेंड मिल गया क्या?” सुकन्या का हॅसता स्वर।
” तुम तो पागल हो।” नीलिमा भी हॅस पड़ी – ” मुझे नौकरी मिल गई है।”
” तुम नौकरी करोगी? तुम तो आगे पढ़ना चाहती थीं।”
” परिस्थिति ऐसी हो गई है कि मेरी और भाई की पढ़ाई एक साथ नहीं हो सकती जबकि भाई का एम०बी०ए० होते ही उसे नौकरी मिल जायेगी। इसलिये मैंने सबसे कह दिया है कि मैं आगे पढ़ाई नहीं करना चाहती और जब उसे नौकरी मिल जायेगी तो मैं फिर से अपनी पढ़ाई शुरू कर दूॅगी। सिर्फ एक साल की तो बात है इसके बाद मैं यह नौकरी छोड़ दूॅगी।”
” तुम बहुत प्यारी और समझदार हो नीलिमा। आज की परिस्थिति में तुम्हारा निर्णय सही है। मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं।”
फिर नीलिमा ने सुकन्या को अपनी कम्पनी, वेतन आदि के बारे में पूरी बातें बताई तो सुकन्या ने हॅसते हुये कहा – ” मैं आऊॅगी तो बहुत बढ़िया पार्टी और उपहार चाहिये मुझे।”
” पार्टी तो जब तुम आओगी तब जैसी चाहना लेना लेकिन अपने पहले वेतन से तुम्हें उपहार भेजूॅगी, क्या चाहिये?”
” जो तुम्हें अच्छा लगे, मेरे लिये अमूल्य होगा वह।”
नीलिमा बहुत खुश थी। उसके काम से उसका स्टाफ और उसके बाॅस दोनों खुश थे। चूॅकि वह पर्सनल सेकेट्री थी तो उसका अधिकतर काम बॉस से ही सम्बन्धित रहते थे। इसलिये उसे घर पहुॅचने में भी देर हो जाती क्योंकि उसका घर आफिस से बहुत दूर था। अब कई कई दिन तक उसकी सुकन्या से बात नहीं हो पाती थी।
एकाध बार जब नीलिमा को आफिस में देर तक रुकना पड़ा तो उसने बॉस को अपनी पूरी परिस्थिति से अवगत कराने के साथ यह भी बता दिया कि उसे यह नौकरी सिर्फ एक वर्ष के लिये ही चाहिये। अगर बॉस चाहें तो उसे पर्सनल सेकेट्री की बजाय दूसरा काम दे सकते हैं और उसका वेतन भी कम कर दें लेकिन न तो वह रात देर तक रुक पायेगी और न ही उनके साथ शहर के बाहर जा पायेगी।
उसकी स्पष्ट बात से बॉस बहुत खुश हुये – ” तुम तो बहुत बहादुर और अच्छी लड़की हो। अब तुम निश्चिंत रहो, जैसे काम कर रही हो करो, कोई परेशानी हो तो मुझसे कहना।”
इसके बाद बॉस नीलिमा का बहुत ख्याल रखने लगे। उसके काम की, कभी कभी कपड़ों की भी सराहना करते। लंच समय होने पर खुद कह देते – ” नीलिमा, लंच टाइम हो गया है।”
नीलिमा खुश थी उसे इतने अच्छे बॉस मिले हैं, यह बात उसने सुकन्या को और अपनी मम्मी को भी बताई लेकिन कभी कभी नीलिमा को बॉस के व्यवहार और ऑखों के हाव भाव में सामंजस्य नजर नहीं आता तो वह घबड़ा जाती लेकिन अगले ही क्षण अपने मन का भ्रम मानकर शान्त हो जाती।
नये साल की पार्टी बहुत बड़े फाइव स्टार होटल में रखी गई। स्टाफ के कुछ खास लोगों को ही निमंत्रित किया गया था। नीलिमा ने मना कर दिया – ” सर, मम्मी इजाजत नहीं देंगी और मैं रात में घर कैसे जाऊॅगी?”
” देखो नीलिमा, यह भी आफिस के कार्य का एक भाग है। वैसे मैं तुम्हारी मजबूरी समझता हूॅ लेकिन इस पार्टी में कम्पनी के सभी बड़े अधिकारी और कम्पनी के एमoडीo भी आयेंगे। तुम्हारा आना जरूरी है , पार्टी में कुछ खास लोगों को ही बुलाया गया है। तुम एम०डी० साहब के लौटने के बाद चली जाना। मैं तुम्हें किसी के साथ वापस भिजवा दूॅगा। न आने से तुम्हारा नुकसान हो सकता है।”
नीलिमा का मन तो बिल्कुल नहीं था लेकिन नौकरी उसकी मजबूरी थी जिसे वह किसी भी हाल में खोना नहीं चाहती थी। वह मम्मी को जल्दी आने का आश्वासन देकर आ गई। आज वह बहुत सुंदर लग रही थी, सभी ने उसकी सराहना की। उसके बॉस तो उसे देखते ही रह गये। उन्हें ऐसे देखते देखकर नीलिमा शर्माकर रह गई।
बॉस ने आकर बताया कि आवश्यक काम आ जाने के कारण एम० डी० साहब नहीं आ पायेंगे। पार्टी अपने चरम पर थी। नीलिमा का मन नहीं लग रहा था, उसे घर जाने की जल्दी थी। नया साल शुरू हो गया। उसने जाकर बॉस से कहा तो उन्होंने कहा – ” अभी कैसे? देख रही हो कि किसी को अपना होश नहीं है। तुम भी पार्टी का मजा लो, चली जाना।”
” नहीं सर, मैं अब जाऊॅगी। मम्मी इंतजार कर रही होंगी। आपने वापस भिजवाने का वादा किया था इसलिये चली आई थी, वरना मैं कभी न आती। अगर कोई न मिला तो मैं टैक्सी से चली जाऊॅगी।”
बॉस ने कुछ देर सोंचा, फिर कहा – ” तुम चिन्ता न करो, मैं व्यवस्था करता हूॅ।”
नीलिमा को चैन नहीं पड़ रहा था। वह इतनी रात तक कभी घर के बाहर नहीं रही थी। जानती थी कि मम्मी दरवाजे पर टकटकी लगाये खिड़की पर बैठी होंगी। तभी बॉस आते दिखे – ” कोई मिल नहीं रहा है, चलो मैं ही अपनी कार से तुम्हें छोड़ देता हूॅ।”
” आप रहने दीजिये सर, मैं टैक्सी से चली जाऊॅगी। आप मेरे लिये अपनी पार्टी छोड़कर मत जाइये।”
” कोई बात नहीं। एम० डी० साहब के न आने के कारण मेरा भी अब मन नहीं लग रहा है।”
नीलिमा बॉस के साथ आकर कार में गुमसुम सी बैठ गई, कुछ देर बाद बाॅस खुद बोले – ” इस तरह क्या सोंच रही हो?’
” कुछ नहीं, सोंच रही हूॅ कि मेरे कारण आपको पार्टी छोड़कर आनी पड़ी।”
” यह कोई बड़ी बात नहीं है, इस विषय में मत सोंचो।” नीलिमा ने सीट पर सिर टिकाकर ऑखें बन्द कर ली लेकिन जब उसे लगा कि कार उसके घर के रास्ते पर जाने की बजाय दूसरी दिशा की ओर मुड़ने लगी है तो वह चौंक गई -” सर, मेरा घर इधर नहीं है।”
” मालुम है।” बॉस ने मुस्कराकर उसकी ओर देखा – ” इधर मुझे अपने दोस्त से एक जरूरी काम है। बस, पॉच मिनट लगेंगे।”
” इतनी रात को कौन काम? आपका दोस्त तो आराम से सो रहा होगा, आप जाकर उसकी नींद खराब ही करेंगे।”
परेशानी में भी नीलिमा हॅस पड़ी। हॅसते हुये वह और अधिक सुंदर लग रही थी, बॉस एकटक उसे देखने लगे – ” इस तरह क्या देख रहे हैं सर? सामने देखकर गाड़ी चलाइये।”
” कुछ नहीं।” बॉस चुपचाप कार चलाने लगे।
” आओ नीलिमा।” एक स्थान पर कार रोककर बॉस ने कहा। ” मैं यहीं कार में बैठी हूॅ, आप अपना काम करके आ जाइये।”
” इतनी खूबसूरत लड़की को मैं इस रात में अकेले छोड़ कर तो जा नहीं सकता, अगर तुम नहीं आओगी तो चलो, रहने दो।”
बॉस फिर से कार में बैठने लगे तो नीलिमा कार से उतर आई – ” ठीक है सर लेकिन जल्दी कीजियेगा। मम्मी परेशान हो रही होंगी। मोबाइल की बैटरी भी डाउन हो गई है तो उन्हें फोन भी नहीं कर सकती।”
” ज्यादा देर नहीं लगेगी। टैक्सी से आतीं तो अभी आधे रास्ते में होतीं। बस काम होते ही मैं जल्दी से तुम्हें पहुॅचा दूॅगा।”
वो लोग पहुँचे तो नीलिमा को ऐसा लगा कि बॉस का दोस्त जैसे इन्हीं लोगों का इंतजार कर रहा था – ” मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। तुम्हारा काम तो हो गया है,लेकिन क्या मेरी सामान लाये हो ?”
” हॉ, यह लो ।” बॉस ने उसे कुछ पकड़ाया।
” चलें सर?”
नीलिमा का तो एक एक पल भारी था। उसको चैन नहीं था, तभी बॉस का दोस्त बोल पड़ा – ” नीलिमा जी, आप पहली बार मेरे घर आईं हैं, एक कप चाय तो पीनी ही पड़ेगी।”
” नहीं, मुझे चाय की कोई जरूरत नहीं है। पहले ही बहुत देर हो चुकी है।”
” तुम्हें हो या न हो लेकिन मुझे है। बिना एक कप चाय पिये मुझसे गाड़ी नहीं चलेगी।” बॉस ने सोफे पर पसरते हुये दोस्त से कहा – ” तुम जल्दी से चाय बना लाओ।”
नीलिमा इस सूने घर में अंदर से डर रही थी, मगर चुपचाप बैठी रही।
चाय आई तो उसका पीने का बिल्कुल मन नहीं था लेकिन जब बॉस ने अपने हाथ से उसे कप पकड़ाया तो वह मना नहीं कर पाई। इसके बाद उसे कुछ याद नहीं कि वह कैसे घर पहुॅची?
सुबह उठी तो उसका पूरा शरीर दर्द से फटा जा रहा था। सिर में जैसे कोई हथौड़े चला रहा हो। ऑखें खुल नहीं रही थीं, उठकर बैठना चाहा तो चक्कर आने के कारण फिर बिस्तर पर लुढ़क गई। उसमें बाथरूम तक जाने की ताकत नहीं बची थी।
तभी मम्मी आकर उसका सिर सहलाने लगीं – ” अब कैसी तबियत है बेटा? तेरे साहब बता रहे थे कि रास्ते में तुहारी तबियत बहुत खराब हो गई थी और तुम बेहोश हो गईं थी। मैंने और तुम्हारे साहब ने तुम्हें बड़ी मुश्किल से सहारा देकर कार से उतारा था। इसलिये मैं मना कर रही थी, मैं जानती थी कि ऐसी पार्टियों में तुम सामंजस्य नहीं कर पाओगी।”
” मम्मी फोन उठा दीजिये, सर से कह दूॅ कि मैं आज नहीं आ पाऊॅगी।”
मम्मी उसके हाथ में फोन देकर चली गईं – ” हॉ, अब एक- दो दिन की छुट्टी ले लो।”
नीलिमा को अजीब सा लग रहा था, वह तो चाय पी रही थी उसके बाद उसे क्या हो गया, तबियत अचानक कैसे खराब हो गई? कहीं कुछ गलत तो नहीं हो गया, लेकिन नहीं …… बाॅस बहुत अच्छे हैं…..उसका कितना ख्याल रखते हैं…..उसे टैक्सी से नहीं आने दिया …… उसके लिये अपनी पार्टी छोड़कर घर पहुॅचाने आये।
नीलिमा ने बॉस को फोन किया तो उन्होंने खुद कहा- ” तुम तो अच्छी भली चाय पी रहीं थी , अचानक क्या हो गया था तुम्हें? “
” सर, मुझे कुछ याद नहीं।”
” गलती मेरी भी थी, तुम इस तरह के माहौल की आदी नहीं हो और देर के कारण तुम बहुत मानसिक तनाव में हो गईं थी, इसीलिये तुम चक्कर आने से बेहोश होकर गिर गईं थी। बड़ी मुश्किल से तुम्हें होश में लाया था, नये साल के कारण डाक्टर भी नहीं मिल सकता था। मुझे लगता है कि तनाव के कारण तुम्हारा ब्लड प्रेशर बढ़ या घट गया होगा। तुम चाहो तो डाक्टर को दिखाकर दवा ले लो।”
” मुझे एक दो दिन की छुट्टी चाहिये सर।”
” कोई बात नहीं आराम करो। कोई जरूरत हो तो बताना।”
नीलिमा के सारे संदेह मिट गये। बॉस तो सचमुच बहुत अच्छे हैं, उसकी परेशानी समझते हैं।
अगला भाग
श्रद्धांजलि (भाग 4 ) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर