धोखा – माधुरी गुप्ता  : Moral stories in hindi

जैसे ही पूनम की मां मालती ने करबट बदली,पूनम चुपके से उठी और मां के तकिए के नीचे से चाबी का गुच्छा निकाला,#गिन गिन कर पांव रखते हुए कमरे के कोने में रखी अलमारी को खोला,उसमें रखे हुए कीमती जेवर व कैश अपने बैग में रखा और चुपके से  घर का दरबाजा धीरे से बन्द करके बाहर निकल आई।

घर से बाहर निकल तो आई थी,लेकिन दिल की धड़कन बढ़ गई थी। मन में बिचारों का द्वन्द्वचल रहा था ,पता नही मैं ठीक कर रहीं हूं या नहीं।बिवेक को मैं जानती ही कितना हूं,कही उसने मुझ धोखा दिया तो कहीं की भी नहीं रहूंगी।इस समय उसे मां की दी हुई सीख याद आ रही थी। मां हमेशा समझाती थी कि बेटा किसी अनजान पर आंख मूंद कर भरोसा करने से पहले उसे परख अवश्य लेना चाहिए ताकि भविष्य में धोखा खाने की गुंजाइश न रहे।

बिवेक उसके घर की गली के किनारे पर जो परचून की दुकान थी,उस पर बैठता था,उसकी पढ़ाई में अधिक रूचि नही थी, अतः पिता ने कुछ दिन उसको दुकान सम्हालने के लिए बोला।बिवेक की उम्र भी यही कोई बीस बाइस के आसपास थी।जब भी पूनम उसकी दुकान से कुछ सामान लेने आती वह उसको बड़ी ललचाई नजरों से देखता,पूनम भी धीरे धीरे उससे बातचीत करने लगी थी। हम उम्र होने के कारण अब इन दोनों की बातचीत दोस्ती तक पंहुच  गई थी।शायद उमर उम्र का तकाजा ही था कि एक दिन बिवेक ने उससे कहा कि उसकी नौकरी लग गई है मुंबई में अब मैं  कुछ दिनों के बाद मैं मुंबई जाने बाला हूं,।मैं तो कहता हूं तू भी मुबंई चल मेरे साथ वहाँ हर किसी को काम मिल जाता है। बवहाँ  जाकर हम लोग ढेर सारा पैसा कमा कर शादी कर लेंगे वैसे  भी सिलाई करके तेरी मां तुझे कहां किसी अच्छे घर परिवार में ब्याह  पाएगी।

तू मुझे बहुत अच्छी लगती है। क्या मैं तुझे अच्छा नही लगता?पूनम ने बिना  कुछ बोले नजरें झुका ली,बिवेक ने इसे उसकी स्वीकृति समझ लिया

बिवेक की बातें सुन कर पूनम के मन में भी मुबंई जाने का सपना मचलने लगा।उसके दिल ने कहा कि बैसेकह तो बिवेक ठीक ही रहा है।मां की उमर भी बढ़ रही है,रात दिन सिलाई करने से चश्मा भी लग गया है, पता नही कब तक मैं मां के उपर बोझबनी रहूंगी। मुझे भी कुछ काम करके मां का हाथ बटाना चाहिए। मुंबई जाकर जब कुछ पैसा कमा लूंगी तो मां को भी अपने पास बुला लूंगी।आखिर मां यह सब मेरे अच्छे भविष्य के लिया हीतोकररही है।

पूनम मालती व रामनाथ की इकलौती बेटी थी। मध्यम वर्गीय परिवार था उनका।पूनम के पापा किसी प्राइवेट कम्पनी में काम करते थे। अधिक तो नहीं लेकिन जरूरी सुख-सुविधाएं जुटाने के लिए उनकी आय काफी थी ।दोनों मां पापा पूनम को पढा लिखा कर एक अच्छा भविष्य देने की कोशिश में जुटे रहते थे।

पूनम जैसा उसका नाम था उसी के अनुरूप एकदम पूनम के चांद की तरह ही सुन्दर थी। स्कूल से आने में जरा भी देर होने से दोनों चिंतित हो उठते।जब पूनम घर आ जाती तो दोनों को तसल्ली हो जाती।

कोबिड के चलते पूनम के पापा की नौकरी चली गई फिर धीरे-धीरे उन्हें डिप्रेशन ने घेर लिया,अपनी हालत से तंग आकर एक रात नींद की गोलियां खाली , जिससे उनके जीवन का अंत हो गया।

मां बेटी अकेली रह गई कुछ दिनों तक रो धोकर निकाले फिर पूनम की मां ने अपनी आजीविका चलाने के लिए सिलाई का काम शुरू कर दिया क्यों कि पूनम के पापा की बीमारी में बचत की हुई जमा-पूंजी खतम हो चुकी थी।

पूनम उम्र के उस मोड़ पर पहुंच गई थी जब दिल में किसी का हो जाने की उमंगें मचलने लगती हैं। उम्र के साथ साथ ही उसका सौन्दर्य भी निखर गया था,साथ ही मन में प्यार प्रेम की भावनाऔ ने भी अंगड़ाई लेनी शुरू करदी थी। गली के लड़कों ने छींटाकशी करके उसको परेशान कर रखा था।

पूनम की मां का सिलाई का काम अच्छा चल निकला था।वह हर महीने जितनी बचत होती उससे धीरे पूनम के लिए गहने बनवा कर अलमारी में रखती जा रही थी। उनका इरादा था कि जैसे ही कोई अच्छा लड़का मिल जाएगा, पूनम की शादी कर देंगी। लड़की की जात उपर से सुन्दर कब तक इसकी पहरेदारी कर पायेगी। पूनम बिवेक की दुकान से घर का सामान लेने अक्सर जाती रहती थी। 

उस दिन जब सामान लेकर पूनम जब घर लौटी तो कुछ खोई-खोई सी थी,।उसके मन में विचारों की गफलत फैली हुई थी।कुछ निश्चय नही कर पा रही थी कि बिवेक पर विश्वास करे या नही।फिर मां की कही सीख याद आई ,जब से जवानी की दहलीज पर कदम रखा था ,मां ने जमाने की ऊच नीच समझाते हुए हमेशा यही कहा था,कि बेटा पूनम जमाना बहुत खराब है।किसी पर भी आंख मूंद कर कभी भरोसा मत करना,किसी रिश्ते में आगे बढ़ने से पहले उसे परख जरूर लेना कि उसके रिश्ते में कितनी गहराई है,खाली पीली बातें बनाना बहुत आसान है,निभाना बहुत मुश्किल होता है।

पूनम ने दिमाग से काम लिया कि एक बार आगे बढ़ने से पहले बिवेक को परख लेना चाहिए कि वह कितना सच बोल रहा है।बिवेक ने पूनम से सन्डे के दिन रात को गली के नुक्कड पर मिलने को कहा और हां यह भी कहा कि घर से निकलने से पहले घर से नकदी व जेवर साथ में जरूर लेकर निकले,ताकि मुंबई जाकर कुछ दिन आराम से निकाल लें।

पूनम ,बिवेक के कहे अनुसार घर से निकली #गिन गिन कर पांव रखते हुए,।अभी सिर्फ रात के नौ बजे थे,सर्दी की रात में नौ बजे से ही सुनसान था । कहीं कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाज आरही थी।बिवेक ने प्लान बनाया था कि जब तुम जेबर व नकदी लेकर आ जाओगी फिर हम मुंबई की ट्रेन ले लेंगे, रिजर्वेशन मै पहले से करवा लूंगा

पूनम,बिवेक के कहे अनुसार गली के नुक्कड़ तक पहुंच गई,उसको देखते ही बिवेक ने कहा ,ले आई जेवर व कैश।

अरे मैं खुद तो आगई हूं न तुम्हारे पास फिर जेवर व कैश के लिए इतने उतावले क्यों हो रहे हो।जब हम दोनों साथ हैं तो मिल कर कुछ न कुछ करही लेंगे अपने जीवन-यापन के लिए। नहीं जेवर व कैश मैं नहीं ला पाई।

क्या,!तुम सच कह रही हो बिना  जेबर व कैश के क्या मै तुम्हारी सुन्दरता को चाटूंगा‘यह कहते हुए उसने पूनम को धक्का दिया।लौट जाओ अपने घर मुझे तुमसे कोई मतलब नही है।

पूनम की समय रहते आंखें खुल गई वह #गिन गिन कर पैर रखते हुए। अपने घर आ गई।मां की सीख व मां की ममता ने उसके बहकते कदमों को रोक लिया था।घर वापस आने पर देखा मां गहरी नींद में सोई थी,उनके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी लगा जैसे वे पूनम के सुखद भविष्य के लिए सपना देख रही हों ।पूनम भी मां की बगल में आकर लेट गई।उसका मन फूल सा हल्का महसूस कररहा था इस समय।

स्वरचित व मौलिक

माधुरी गुप्ता

नई दिल्ली

#गिन,गिन कर पांव रखना

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