बहुत चाहा तुम्हें , अब नही बस तुमने दिया ही क्या मुझे,
बेबसी” तुम आये ही क्यू मेरी जिन्दगी मे ,कुछ भी तो न चाहा था तुमसे ,मैने सिवाय थोडी सी इज्जत और अपनेपन के अलावा ” अब छोड गये न मुझे अकेला” अब कभी वापस मत आना !
मै अकेली ही अच्छी हूँ बन्द अन्धेरे कमरे में फफक कर रोये जा रही थी निहारिका। निहारिका अरे वो निहारिका ऐ लडकी जाने क्या कर रही हैं ! लडके वाले आते ही होगे माँ की आवाज़ बहुत पास आ गई थी ! शायद दरवाजे तक फिर दरवाजे पर ठक ठक भारी कदमो से निहारिका ने दरवाजा खोला ” और वापस मुड गई , माँ ” उसे रोक कर उसके सामने आ गई ,,उसके चेहरे पर नजर पडते ही , क्या हालत बना ली है नीरू तूने ” माँ वो मेरे साथ ऐसा नही कर सकता !
बेटा वो अब कभी वापस नही आयेगा !
तेरे पापा को उसने वचन दिया है ,
पर माँ इसमें मेरा क्या कुसूर है! मैने तो सच्चा प्यार किया था !माँ अपने ही अपनो के दुश्मन क्यूं बन जाते हैं !
माँ बस एक मौका दे दो,
मै फिर जो आप बोलोगी वही करूगी ,ठीक है !
समीर की ट्रैन चार की है !
वो निकलने वाला ही होगा,,, पाँच बजे लडके वाले आ जायेगे ,उससे पहले तुम्हें वापस आना होगा !
इसके आगे मै “कुछ सम्भाल नही पाऊंगी ,,मेरा भरोसा मत तोडना,,
कभी नहीं तोडूगी” और निहारिका तेज कदमो से बाहर चली गई ,
समीर उसी के घर के पीछे कमरे में रहता था !
वो कमरा घर से जुडा था! पर रास्ता बाहर से था, कमरे में पहुचते ही उसका दिल धक से हो गया !
समीर जा चुका था !उसके कदम वही ठिठक गये !
उसने बुझे मन से घर की ओर कदम बढा लिए , कमरे के पीछे बालकनी से आँसूओ से भरी दो आँखे बस उसी को देखे जा रही थी !
जब तक वो आँखो से ओझल न हो गई ,
वो समीर था जो अभी तक जा नही पाया ,उसके दिल ने चीत्कार की ” एक बार और कोशिश , करके देखे, अभी कदम बढाया ही था की गाड़ी की आवाज़ से वही ठिठक गया !
लडके वाले आ गये थे ! वो वही खडा बेबसी से उन्हें देखता रहा !
काफी अच्छा घर सजाया हैं विनय जी। “
जी सत्यपाल जी निहारिका बेटी को बहुत शौक है साज सज्जा की , अच्छा अब निहारिका को बुलवा दीजिए, बडे उतावले पन से बोली शोभा जी ,जाओ निहाल बेटा दीदी को लेकर आओ, कुछ ही पलो मे निहाल निहारिका को लेकर आ गया! अतुल उसे अपलक देखता रहा ,
पर निहारिका कही और ही खोई थी ! सब एक दूसरे का मुह मीठा कर रहे थे !
रिश्ता पक्का हो गया था !
लडके वाले जा चुके थे ! निहारिका पलंग पर निढाल सी पडी थी ,
उसके पास अब सोचने समझने के लिए कुछ न बचा था !
थके कदमो से समीर अपने ही उधेड़बुन मे चला जा रहा था !
उस दिन गाडी लेट ही आयी थी!ज्यादा भीड न थी सीट पर बैग रखकर बैठ गया ,गाडी सुबह अलीगढ पहुंच जायेगी ,सोचते सोचते अतीत में खो गया !
अलीगढ से पापा ने पढाई के लिए इलाहाबाद (प्रयागराज) भेजा था , पापा के दोस्त थे विनय अंकल बहुत प्यार करते थे समीर को ,कभी उसे महसूस नहीं होने दिया की वो बाहर का बच्चा है ! निहारिका से जब उसकी दोस्ती हुई तब उसकी उमर तकरीबन सोलहा साल रही होगी ! निहारिका अपने मामा के घर रहती थी पर अब आगे की पढाई यही घर पर रहकर पूरी करनी थी ।उन दोनों को पता ही न चला की दोस्ती प्यार मे कब बदल गई , समय तेजी से आगे बढ रहा था ! ग्रैजुएट होते होते उस को घर के पीछे हिस्से में बने कमरे में शिफ्ट कर दिया गया !
अब निहारिका और वो खाने के टेबल पर ही मिल पाते पढने मे कुछ समझ नहीं आता तो निहारिका उसके कमरे में आ जाती ,और वो उसे अच्छे से समझा देता !
कभी कभी निहाल घर मे आ जाता , निहारिका नही आती तो वो बेचैन हो जाता ् किसी न किसी बहाने घर आ जाता ्
उस दिन बारिश बहुत तेज थी गँगा मईया उफान पर थी विनय अंकल निहाल को लेने स्कूल गये थे !
साथ मे अन्टी को भी कुछ काम था इसीलिए वो भी साथ गई थी ,
तेज बारिश की वजह से वो फंस गये थे ,काफी देर हो गई थी वो आये नहीं थे !
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रीमा महेंद्र ठाकुर