Moral stories in hindi :
सुनीता गहरी नींद में सो रही थी । उसे लगा कि जैसे कोई उसे उसका नाम लेकर पुकार रही है धीरे से उसने अपनी आँखें खोली देखा तो बाप रे यह तो सुबह के छह बज रहे थे।
वह जल्दी से उठकर फ्रेश होकर बाहर आई तो सासु माँ कह रही थी कब से उठा रही हूँ बेटा तुम उठ ही नहीं रही थी देर हो गई तो फिर काम के ना होने से भागमभाग करेगी।
मुझे लगा ओह तो वह सासु माँ की आवाज़ थी ।
अच्छा हुआ उन्होंने आवाज़ दे दी वरना कब नींद खुलती थी कि? जल्दी से वह बच्चों के लिए टिफ़िन तैयार करने में लग गई । बच्चे तो बच्चे उनके पिता के भी नखरे बहुत हैं किसी को पूरी तो किसी को रोटी और पति को चावल पसंद है । सासु माँ इन सबसे अछूती कैसे रह सकतीं हैं उन्हें तो दलिया ही चाहिए उनका कहना है कि वही मुझे पचता है ।
वैसे तो घर में हैं तो हम पाँच लोग ही हैं पर सबको अपनी पसंद की ही खानी है वरना लंचबॉक्स बिना खाए ला देते हैं ।
सुनीता चाय!! पति उठ गए थे शायद जल्दी से चाय बनाते हुए उसे याद आया अरे सासु माँ को अभी तक चाय नहीं पिलाई है बेचारी
किस हाल में होगी ।
ऐसा सोचकर पति के हाथ में चाय की कप पकड़ाया और सासु माँ के कमरे की तरफ़ गई देखा वे दोनों पैर पेट की तरफ़ मोड़कर सो रही थी ।
सुनीता को उन पर दया आ गई । उन्हें उठाया और चाय की प्याली पकडाई । वे जल्दी से चाय पीने लगीं मैंने कहा और चाय लाऊँ उन्होंने इशारे से हाँ कहा मैं एक कप चाय और लाई अब वे धीरे-धीरे मज़े लेकर चाय पी रही थी ।
बच्चे स्कूल चले गए थे पति ऑफिस चले गए थे तो सुनीता अपने लिए एक कप चाय बनाकर लाई आराम से बैठ कर पीने लगी । चाय ख़त्म होते ही सासु माँ के लिए दलिया देकर आई और घर को समेटने लगी तभी पड़ोस की मालती पुकारने लगी । पिछवाड़े के दीवार के पास खड़ी थी । सुनीता पहुँची तो कहने लगी कि चल सुनीता आज बाज़ार चल कर शापिंग करते हैं । अपनी सहेली सोनिया भी आ रही है ।
ओहो मालती तुझे तो मेरे घर के हालात मालूम ही है ना मैं सासु माँ को अकेले छोड़कर कहीं नहीं जा सकती हूँ । मुझे बक्श दो भाई तुम दोनों जाओ ।
अरे पगली मेरी मौसी की बेटी है ना उसकी सास भी तेरी सास के जैसे ही बिस्तर पकड़ ली थी । सोच अब कोई कितने दिन तक घर में कैद होकर रह सकता है । जो बीमार है उनकी तो मजबूरी है कि वे घर पर ही रहें । लेकिन तंदुरुस्त लोगों से तो यह आशा नहीं कर सकते हैं ना कि वे घर से बाहर कदम ना रखें और सजा भुगतें ।
इसलिए उसने एक उपाय सोच लिया था । जब भी उसे घर से बाहर जाना रहता था तो वह अपनी सास को घर के अंदर रख कर बाहर से ताला लगा देती थी ।
जब तक वह वापस नहीं आती थी वे अंदर बंद रहती थी । तुम भी सास को अंदर रख कर ताला लगाकर चलो दो तीन घंटों में आ जाएँगे ।
मालती की बातें सुनकर सुनीता का दिल धकधक करने लगा । हे भगवान यह मैं क्या सुन रही हूँ । एक अपाहिज इंसान को घर के अंदर बंद कर देना यह कहाँ का इंसाफ़ है । उसने मालती को मना कर दिया और घर के अंदर आकर कपड़े घड़ी करते हुए
उसे वे दिन याद आए थे जब वह शादी करके इस घर में आई थी तो सासु माँ ने उसे इतना प्यार दिया था कि कभी उसे मायके की याद नहीं आती थी ।
वे हमेशा कहती थी कि बहू तुम मेरी बेटी की तरह हो मैंने ससुराल में जो तकलीफ़ों पाईं हैं । उन जैसी तकलीफ़ों को तुम्हारी तरफ़ फटकने भी नहीं दूँगी कहते हुए मुझे काम नहीं करने देतीं थीं बहुत ही प्यार दुलार करतीं थीं । ।
त्योहार हो या कुछ स्पेशल दिन हो सबके साथ मेरी भी पसंद पूछा जाता था । मेरे से कभी खाना बनाने में गलती हो जाती थी तो किसी को कुछ कहने नहीं देती थी ।
जब मैं पेट से थी तो उन्होंने मेरे लिए इतना किया था कि मुझे मेरी माँ भी याद नहीं आई थी । जब बच्चा हुआ तो घर में नौकर चाकर रख कर छह महीने तक मुझे यह कहकर बिठाकर खिलाया था कि बेटी अभी रेस्ट करोगी तो बाद में शारीरिक तकलीफ़ों से दूर रहोगी ।
मेरे बच्चे भी उनसे बहुत घुलमिल गए थे ।
उन्हें कहानियाँ सुनाना अच्छी बातें सिखाना यह सब वे करतीं थीं ।
मुझे वह घटना कल हुए जैसा ही बात लगता था । हुआ यह था कि कुछ महीने पहले ही ससुर जी का देहांत हो गया था तो वे घर में उदास रहतीं थीं ।
पति ने कहा माँ घर में ऐसे उदास बैठी रहोगी तो बीमार पड़ जाओगी बच्चों को लेकर पार्क में थोड़ी देर बैठ कर आ जाया करो आपका मन बहल जाएगा ।
उन्होंने बेटे की बात मानकर बच्चों को लेकर पार्क में जाने लगीं थी । उस दिन भी वैसे बच्चों को लेकर गई थी । अभी उन्हें गए हुए पंद्रह मिनट भी नहीं हुए थे कि बेटी रोती हुई आई माँ दादी गिर गई है ।
मैं और पति दोनों भागे पार्क हमारे घर के सामने ही था । देखा था कि माँ नीचे गिरी हुई थी । उन्होंने चलते समय केबल के लिए खोदे गए गड्ढे को नहीं देखा और उसमें गिर गई थी ।
वह इस तरह गिरी थी कि फिर खड़ी नहीं हो पाई और बिस्तर पर ही पड़ गई थी । उन्हें बुरा लगता था बार बार कहतीं थीं कि मैं तुम्हारे लिए बोझ बन गई हूँ ना बेटा ।
उन्होंने मेरे लिए इतना किया है कि मैं उनके लिए जितना भी करूँ वह कम ही है ऐसा मुझे लगता है ।
मालती अब घर आ गई और कहने लगी तैयार रहना मैं तुम्हें लेने आऊँगी । मैंने साफ मना कर दिया था कि नहीं मैं नहीं आऊँगी ।
वह बड़बड़ाते हुए चली गई थी ।
मैं शाम की चाय लेकर सासु माँ के पास पहुँची । पहली बार उन्होंने कहा कि सुनीता अपनी चाय भी ले आ साथ पीते हैं । मैं हैरान हो गई थी क्योंकि उन्हें मालूम था कि मैं शाम की अपनी चाय पति के ऑफिस से आने के बाद साथ मिलकर पीती थी ।
उनका मन रखने के लिए मैं उनके साथ बैठ गई । वे मेरा हाथ सहलाते हुए चाय पी रही थी ।
दूसरे दिन सुबह मैं खुद उठ गई थी और जल्दी से सारे काम निपटाकर सासु माँ को चाय देने गई तो देखा वे अभी भी सो रही थी मुझे डर लगा पति को बुलाया तो उन्होंने कहा कि माँ इस दुनिया से जा चुकी है फिर भी डॉक्टर को बुलाया उन्होंने भी यही बताया था कि रात को ही इनकी मृत्यु हो गई है ।
उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी जिसे देख मुझे ऐसा लग रहा था जैसे वे कह रही हैं जा बेटी मैंने तुम्हें आज़ाद कर दिया है ।
के कामेश्वरी