“ देखो तुम्हारी चिंता तो जायज है, पर ये भी तो समझो ना वो भी अब उसका ही परिवार है….. सरला अपने बच्चे पर भरोसा रखो….एकतो तुम्हारी वो बेकार सी सहेलियाँ जाने क्या पटी पढ़ा जाती तुम्हें और तुम बस चिन्ता में मरी जाती हो…. अरे अपने दिए संस्कार परभरोसा तो रखो…बेकार की चिंता कर अपना बीपी मत बढ़ाओ ।”गगन जी पत्नी को परेशान देख बोले
“ आप नहीं समझ रहे हैं जी…. देख लेना एक दिन निकुंज हमारा नहीं उनका बेटा बन कर रह जाएगा…चलिए आप खाना खा लीजिएमुझे भूख नहीं है।” कह ख़्यालों में खोई सी सरला जी पति गगन जी को खाना परोसने लगी
“ ये औरतें भी ना जाने क्यों दोस्तों की बात पर आँख बंद कर भरोसा कर लेती है… सबके बच्चे एक जैसे नहीं होते ये बात सरला को कैसेसमझाऊँ?” मन ही मन रोटी का टुकड़ा मुँह में डालते गगन जी सोच रहे थे
“ सरला तुम भी थोड़ा खा लो…. ऐसे भूखे पेट एसिडिटी होगी सो अलग ।” चिंतित पत्नी को पास की कुर्सी पर बिठा कर हाथों सेनिवाला खिलाने की कोशिश करते गगन जी ने कहा
“ पता नहीं एक ही बेटा मेरा अगर वो भी….. मैं सच कहती हूँ जी जीते जी मर जाऊँगी ।” कह वहाँ से उठ सरला जी कमरे में जाकर सोनेकी कोशिश करने लगी
कानों में बार बार दोस्त कस्तूरी की बात गूंज रही थी… देखना गया तेरा बेटा भी अब तेरे हाथ से……
सोच ही रही थी कि मोबाइल की घंटी बजी देखा तो बेटे निकुंज का फ़ोन था
“ हैलो ” सरला जी ने कहा
“ क्या हुआ माँ इतने मद्धिम स्वर में बोल रही हो तबियत ठीक नहीं है क्या ?” निकुंज ने पूछा
“ नहीं नहीं ठीक हूँ ।” आवाज़ दुरुस्त कर सरला जी बोली
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बहू ससुराल को करे तो अच्छी पर बेटा ससुराल को करता बुरा क्यों लगता… (भाग 2) – रश्मि प्रकाश
रश्मि प्रकाश