धानी … बड़े पापा क्रोध में जैसे दुर्वासा ऋषि बन गए थे.. तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये प्रस्ताव हमारे सामने रखने की.. तुम अच्छी तरह से जानती हो हमारे #खानदान #में लड़कियों की मर्जी शादी ब्याह में नही चलती… तुम्हारी शादी का फैसला हम तीनों भाई हीं लेंगे…. अंदर जाओ नही तो मेरा हाथ उठ जायेगा…क्रोध से धानी के बड़े पापा अजय प्रताप कांप रहे थे… दादी खींचते हुए धानी को अंदर ले गई.. पर धानी अपने फैसले पर अडिग थी..
और अगले महीने धानी कोर्ट मैरिज कर हर्ष की दुल्हन बन अपने दरवाजे पर खड़ी थी.…तीनों भाई संयोग से घर में हीं थे…छोटा भाई दौड़ कर घर में खबर कर दिया दीदी ने शादी कर ली है और उस लड़के के साथ आई है.…तीनों भाई दनदनाते दरवाजे के पास आए.. धानी हर्ष और उनके कुछ मित्र सामने खड़े थे..
बड़े पापा चिल्लाने लगे, तू ऐसी निकलेगी पता होता तो नमक चटा के मार डालते जनम लेते हीं…. छोटे बंदूक ला इसे यहीं दफन कर देते हैं…हमारे खानदान में फिर कोई लड़की सदियों तक ये जुर्रत नही करेगी..पूरा मोहल्ला मुफ्त का तमाशा देख रहा था…धानी अपने बड़े पापा पापा और चाचा की ओर देखते हुए कहा मेरी शादी हो चुकी है, मैं बालिग हूं और ये मेरे पति हैं इनके लिए कोई अपशब्द मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती और ना ही मेरा अपमान हर्ष को बर्दाश्त होगा..
आप तीनों ने अपनी अपनी पत्नियों के साथ जो सलूक किया है वही देखते हुए मैं बड़ी हुई हूं… और मैने ये ठान लिया था जो लड़का मेरी कद्र करेगा मुझे भी इंसान समझेगा मैं उसी को अपना जीवन साथी बनाऊंगी… और मुझे फख्र है हर्ष पर…. मैं जा रही हूं आशीर्वाद की उम्मीद तो मुझे वैसे भी आप सभी से नही थी…
धानी हर्ष के साथ होटल चली गई.. रात को ट्रेन में दोस्तों के साथ हीं लौटने का टिकट था धानी और हर्ष का.. दोनो रात में पुणे के लिए निकल जायेंगे.. होटल पहुंचकर दोनो फ्रेश हुए.. कमरे में हीं खाना मंगवा लिया.. थोड़ी देर में स्टेशन के लिए निकलना होगा.
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ट्रेन खुल गई थी.. धानी के आंखों में नींद नहीं थी.. रह रह कर अपनी बड़ी मां मम्मी और चाची के चेहरे आंखों के सामने आ रहे थे.. मांग में सिंदूर की गहरी चौड़ी रेखा बड़ी सी बिंदी पैरों में बिछिया और पायल… पतिव्रता स्त्री की रोल मॉडल..पति की लंबी उम्र के लिए कभी ये व्रत कभी उपवास… उसी पति के लिए जिसे पत्नी की भावनाओं पसंद नापसंद इज्जत किसी का ख्याल या परवा नहीं थी.. आवाज ऊंची कर के बोलने का अधिकार सिर्फ घर में पुरुषों का था…
कड़ाके की ठंड में घर की औरतें रात बारह बजे भी अगर मर्द खाने बैठे तो गर्म रोटी सेंक कर देती थी… रात में सोने से पहले दादी के बाद अपने अपने पतियों का पैर दबाना एक दिन भी नही छूटता..उसके बाद भी अक्सर देखती कभी बड़ी मां के गाल पर उंगलियों के छाप, कभी चाची के हाथ पर चोट के निशान तो कभी मम्मी के हाथों की भरी भरी चूड़ियां सुबह में एक दो हीं दिखती और जगह जगह हाथ में खून जमा हुआ.. उफ्फ… जब समझने लायक हुई तो मुझे इनसे नफरत सी होने लगी…
बात बात पर तीनो भाई अपनी पत्नियों के# खानदान #का बखिया उधेड़ते…. बेचारी तीनों औरतें आसूं भरी आंखों से चुपचाप सब सुनते रहती.…
चौखट से कदम बाहर तभी निकलता जब तीनों में से किसी को अपने मायके जाना होता या हॉस्पिटल…. क्योंकिइस प्रतिष्ठित खानदान की महिलाएं बेशर्म औरतों की तरह सिनेमा बाजार या किसी फंक्शन में नहीं जाती…. पशु तो कुछ बोल नहीं पाता पर बड़ी मां मम्मी और चाची तो शायद बोलना हीं भूल गई हैं. अपना नाम भी शायद उन्हें याद नही होगा क्योंकि ये लोग तो जाहिल सुअर हीं कहकर बुलाते हैं….
घर के पुरुषों के हर सुख सुविधा का ख्याल रखना वंश बेल को आगे बढ़ाना शरीर की जरूरतों को पूरा करना… बेवजह अपमान सहना क्या यही नियति है इस #खानदान #की औरतों की.…नही मुझे ये जीवन नही चाहिए था…. इसलिए अपने साथ काम करने वाले आईटी सेक्टर के इंप्लाइ हर्ष जिसे तीन सालों से जानती हूं,
अपने जीवन साथी के रूप में मैने चुना… महिलाओं की कद्र करना उन्हें भी इंसान समझना झूठे अहंकार और बेकार का ईगो नही रखने वाले इंसान की तलाश थी मुझे…. और हर्ष में मुझे वो सारी खूबियां मिली…. मुझे पूरा विश्वास है तीनों मांओं की दुआएं मुझे जरूर मिलेगी क्योंकि उनकी बेटी ने# खानदान #को नहीं इंसान को अहमियत दी है..
# स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #
Veena singh
VM
कहानी में पेच है अगर घर की औरतों को घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी तो इस कहानी की नायिका को बाहर नोकरी करने की इजाजत कैसे मिली 🤔
Ha me b yhi soch rhi hu
Qki vo ghr ki beti thi bahu nhi or vo apni jidd ki vjh se nokri kr pai