Moral Stories in Hindi : – राघव का सारा चेहरा आंसुओं से भीग रहा था,उसे रहरह कर अपनी गलतियां ध्यान आ रही थीं पर अब उनसे बचने का कोई रास्ता नहीं था सिवाय उसके दुष्परिणाम भुगतने के।
दूर आश्रम में अपने गुरुजन के सानिध्य में बैठा,गौ सेवा करता ,वो सोच रहा था कि कोई सहसा उसे देखे तो विश्वास न कर सके कि ये वो ही व्यक्ति है जो कभी पूरे शहर का सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति हुआ करता था।
आज भी जब भी वो सोचता अपने बारे में तो उसका दिल भर जाता आत्मग्लानि और अफसोस से कि उसे क्या हो गया था,वो इतना क्रूर कैसे बन गया था।
कुछ ही वर्षों पहले की तो बात है, जब ये ही राघव,डॉक्टर आर विश्नोई के नाम से जाना जाता था।शहर के टॉप मोस्ट कॉलेज का प्रिंसिपल,उसके नाम की तूती बोलती चारों ओर।
बहुत दिनों से रुकी हुई लेक्चरर्स की नियुक्तियां शुरू हो गई थीं और लोगों में बहुत उत्साह था नई नियुक्तियों को लेकर।कितने ही परिश्रमी विद्यार्थी जो कई वर्षों से नौकरी के इंतजार में थे और अस्थाई लेक्चरर्स जो स्थाई होने की राह देख रहे थे,उन सबमें खुशी की लहर दौड़ गई थी कि अब उनके सपने पूरे होने को हैं।
इंटरव्यूज शुरू हो गए थे अलग अलग विषयों के,लेकिन उनके परिणाम बड़े चौंकाने वाले थे।जो लोग कई कई वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहे थे,वो नौकरी से बाहर हो रहे थे और नए लोगों की भर्ती हो रही थी।
लोगों में आक्रोश की भावना बलवती होती गई,सबमें एक ही चर्चा थी कि ये प्रिंसिपल इतनी अंधेरगर्दी क्यों मचा रहा है।
किसी ने दबी जुबान कहा भी,ये तो खुद ऑन स्पेशल ड्यूटी है,अपनी स्थाई जॉब का
अतापता नहीं और मेधावी और डिजर्विंग लोगों को बेरहमी से बाहर कर रहा है ये?
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बड़ी ऊपर तक पहुंच है इसकी!कोई बाल भी बांका नहीं कर पाएगा इसका…कुछ लोग कहतेऔर वो फूल कर कुप्पा होता जाता।
एडमिनिस्ट्रेशन भावनाओ में बहकर नहीं होता,उसके लिए सबके हित में कड़े निर्णय लेने पड़ते हैं,वो कहता और सब चुप रह जाते।
जी हां ये राघव बिश्नोई ही था जिसका अभिमान सिर चढ़कर बोल रहा था उस वक्त।उसके गुरु स्वामी रामतीर्थ मिलने आए उससे एक बार।
बड़े चर्चे हैं तुम्हारे शहर में…क्या गदर मचाया हुआ है तुमने..उन्होंने पूछा था अपने शिष्य से।
गुरु जी! मै जानता हूं जो मै कर रहा हूं और समय की मांग के अनुसार थोड़े बदलाव चाहिए ही होते हैं,आप फिक्र न करें।उसने उन्हें शांत कर दिया।
कुछ लोग जिनपर पूरे परिवार का बोझ था,बरसों बाद नौकरी से निकाल दिए गए बिना किसी ठोस कारण के,वो सड़क पर आ गए,बर्बाद हो गए और उन सबकी बददुआ का असर था या समय की मांग…
प्रो राघव बिश्नोई,जब खुद स्थाई प्रिंसिपल की पोस्ट के लिए इंटरव्यू देने गया तो असफल हो गया।कल का शहंशाह आज खुद सड़क पर आ गया था,अपनी पुरानी पोजिशन पर लौटना उसे बहुत हेठी का काम लगता और वो रात दिन,घुलने लगा।
आत्मग्लानि के ऐसे भंवर में फंस गया था वो कि इससे बाहर निकलना नामुमकिन हो चला था।रह रह कर,उसे उन लोगों का ध्यान आता जो उसकी वजह से बेघर,बेरोजगार हो गए थे।अपने अहंकार में चूर होकर वो अपनी औकात भूल गया था पर आज जब खुद भगवान ने उसे ही उस रास्ते पर ला पटका था तब वो वापिस नहीं हो सकता था।
इस आत्मग्लानि से टूटा हुआ वो सब कुछ छोड़कर,अपने गुरु के पास आश्रम में आ गया था।
कई बार व्यक्ति पर सब कुछ मिलने के बाद,इतना अहंकार जन्म ले लेता है कि वो दूसरे इंसानों को इंसान समझना बंद कर देता है।”अहम ब्रहमास्मि”यानि मैं ही ब्रह्मा हूं,सबका पालनहार हूं,फिर वो सबको गाजर मूली की तरह काटने लगता है और तब विधाता को उसे कटकर ये बताना पड़ता है कि सर्वशक्तिमान सिर्फ वो ईश्वर ही है और कोई नहीं।
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जब जब व्यक्ति अपनी औकात भूल कर सर्वज्ञ,सर्वशक्तिमान बनने का दंभ करता है उसे भगवान सीख जरूर देते हैं।इसलिए अपनी शक्ति का, पद कभी भी दुरुपयोग न कीजिए।जिस दिन उस विधाता का चक्र चलता है वो सबको न्यूट्रलाइज कर देता है।
कितनी ही आत्मग्लानि,आत्म मंथन फिर आपको पहले वाली स्थिति तक नहीं ला पाता।बरसों से कमाई इज्जत ,मिनट भर में गंवा दी जाती है जो मन का सुकून और दिल का चैनो अमन चुरा ले जाती है।
डॉ संगीता अग्रवाल
वैशाली