Moral Stories in Hindi : सोमेश और सोनी को बंबई में आए हुए दो साल हो रहे थे। इस बार ग्यारह महीने बाद फिर से दस प्रतिशत किराया बढ़ा दिया जाएगा। दोनों को यही टेंशन थी। बंबई आने के बाद से सबसे पहले अपना घर हो ,ये सपना हर बंबई वासी की तरह ये दोनों भी देखरहे थे।
क्योंकि किराए के मकान में किराया देने से अच्छा इ एम आई देकर अपने हक का घर होने से बंबई जैसे शहर में रहना आसान हो जाता।बस यही सोचकर वे अपने घर के लिए परेशान थे। सोमेश और सोनी की शादी को चार साल इस फरवरी में होने वाले थे,घर में नन्हे मेहमान आने की आहट थी इसलिए उन्होंने घर के बारे में और भी उत्साह से सोचना शुरू कर दिया था।
कल एक घर देखने भी जाना था जो थोड़ा बहुत उनके बजट में आ रहा था।रात दोनों ने इसी कल्पना में निकाल दी। सुबह जब दोनों अपने आफिस निकलने की जल्दी में थे तभी गांव से बडी भाभी का फोन आया और दोनों के दिल एकसाथ धड़के क्यों कि बडी भाभी के फोन का मतलब अक्सर पैसों की जरूरत से जुड़ा होता था ,
सोनी ने भाभी को चरणस्पर्श बोला और हालचाल पूछने से पहले ही भाभी ने कहा कि बबली (हमारी सबसे छोटी भतीजी) का पांचवां जन्मदिन है, और उसीदिन माता रानी की यात्रा को पांच साल पूरे होने जा रहे हैं इसलिए मां की इच्छा मां का जगराता कराने की है उसके लिए हमें कम से कम बीस से तीस हजार की मदद करनी पड़ेगी। ऐसा संदेशा देकर भाभी ने फ़ोन रख दिया।
दोनों ने एक-दूसरे को देखा और आंखों ही आंखों में बाय कर अपने अपने रास्ते चल पड़े। क्योंकि दोनों की एक ही आदत थी कि जब टेंशन में रहते थे तो दोनों शांत हो जाते थे।
अगले कुछ दिन पैसों के इंतजाम में निकल गए पर इस बार सोमेश बीस हजार लेकर ही जा रहा था , सोनी ने अपनी एफ डी तुड़वाकर तीस हजार देने को बोला भी था पर इस बार सोमेश ने उसकी एक न सुनी उसे आगे आने वाले खर्च के बारे में भी सोचना था । सोमेश आगे आने वाले समय के लिए कुछ पैसा बचाकर रखना चाहता था इसलिए सिर्फ बीस हजार ही लेकर चला।
छुट्टी न मिलने के कारण दोनों जन्मदिन के दिन गांव पहुंचे,जैसा अनुमान था सभी नाराज़ थे। कजरी दीदी ने तो सुना ही दिया एसी भी क्या नौकरी कि घर की बहु काम वाले दिन प्रगट हो, जबकि पूरा गांव घर में काम करने में मदद कर रहा है। बस भैया उसी आत्मीयता से मिले ।
सोनी ने जल्दी से हाथ पैर धोए ,और काम में जुट गई, भाभी भी उसे किचन का काम समझाकर बाहर गीत गाने बैठ गई, दोनों दीदियां और मां तो पहले से ही गीतों का आंनद ले रही थी। तभी किचन में सोमेश आया और धीरे से उसके हाथ में चाय का कप पकड़ा कर बोला,अपना ध्यान रखना क्योंकि हमारे छोटे मेहमान को भी तुम्हारा थका हुआ चेहरा पंसद नहीं है।
वो मुस्कुराते हुए बाहर निकल गया। सोनी भी मुस्कुराते हुए काम में जुट गई।तभी बाहर शोर होने लगा सोनी ने किचन से झांक कर देखा तो एक बाबा जी अपने कुछ शिष्यों के साथ अंदर आंगन में खड़े दिखे सभी महिलाएं और पुरुष हाथ जोड़ कर खड़े हो गए।बाबा जी ने इधर उधर देखा और खंभे से टिककर खड़े सोमेश को पास बुलाया और बोले नन्हे मेहमान की आहट है,
घर की चिंता भी मत कर पर आगे का समय कठिन है। शंकर शंभू कृपा करें। सोमेश और किचन में खड़ी सोनी और साथ ही वहां खड़े हर व्यक्ति आश्चर्य से बाबा जी को देख रहे थे। तभी बाबा जी मुड़े और तेजी से घर से निकल गए । लगभग दौड़ते हुए सोमेश ने उन्हें पकड़ा और पूछा आपको ये सब कैसे पता कृपया बताइए । बाबा जी ने सोमेश की आंखों में देखा और बोले मुझे कैसे पता ये पता होने से ज्यादा तुझ पर जो मुसीबत आने वाली है उससे कैसे बचा जाए। इसे पर विचार करते हैं।मैं तुझे बंबई में मिलता हूं एसा कहकर वे आगे बढ गए।
सोमेश हत््प्रभ खड़ा रह गया और वापस घर की तरफ लौट चला।
यहां घर का नजारा एकदम से बदला हुआ था , भाभी, मां और दीदियां सोनी को घेरकर प्रश्नों की बौछार कर रही थी बेचारी सोनी घबराई सी सबको देख रही थी। सबने सोमेश को देखा और पहला ताना मां का आया काय रे सोमु, बाप बनने जा रहो है और हमको बताना भी जरूरी न लगो,
पीछे से भाभी थोड़ी तेज आवाज में बोली अम्मा शहर ने बदल दियो अपने लल्ला को नहीं तो शहर में घर ले रहे हैं।ये भी बताना जरूरी न लगो इन्हें।सबकी बातें सुनकर सोनी को रोना आ रहा था।जब से आई थी सबकी बातें और ताने ही सुन रही थी। सोमेश ने सोनी को देखा और मां से बोला अभी तो आए हैं अम्मा तब से तो इंतजाम में ही लगे हुए हैं।..…….. क्रमशः
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निगाहें (भाग 2)
सीमा बाकरे
स्वरचित रचना