मजबूरी – सविता गोयल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  आज संडे कि सुबह थी ।लेकिन मधु बहुत चिड़चिड़ी लग रही थी।मधु ने खिचड़ी बनाकर अपने सास ससुर को दी और कपड़े सुखाने के लिए छत पर जा ही रही थी कि आशीष से सामना हो गया। 

“आशीष मैं अब तंग हो चुकी हूँ। नहीं होती अब मुझसे तुम्हारे मम्मी पापा की सेवा। आखिर मेरी भी तो कोई लाईफ है। न कहीं आ- जा सकती हूँ, ना अपने लिए थोड़ा समय मिल पाता है। सारा दिन काम- काम।,, मधु अपने पति आशीष से आज झगड़ने के मुड में थी। 

” मधु यार, मम्मी भी कहाँ तुमसे अपनी सेवा करवाके खुश है। वो तो उनकी मजबूरी है। जब मम्मी ठीक थी तब सारा काम खुद ही करती थी। कभी शिकायत नहीं करती थी।,,आशीष ने मधु को समझाते हुए कहा। 

(मधु की सासु माँ कुल्हे की हड्डी टूटने की वजह से छह महीने से बिस्तर पर थीं। ससुर जी भी चिंता के कारण शारीरिक रूप से कमजोर हो गए थे। उनका सारा काम मधु को ही करना पड़ता था।) 

“हाँ हाँ तुम्हें कुछ करना नहीं पड़ता ना, इसलिए तुम ऐसा कहते हो।मेरी जगह अगर तुम होते ना तब तुम्हें पता चलता।,,कहते हुए वो छत पर जाने लगी। 

ऐसा नहीं था कि मधु दिल की बुरी थी लेकिन जब सारे घर की जिम्मेदारी एक कन्धे पर पड़ती है तो घुटन महसूस होना स्वाभाविक है। मधु ने छत पर जाने वाली सबसे ऊपर वाली सीढ़ी पर पैर रखा ही था कि उसका पैर फिसल गया। एक मिनट को जैसे उसकी धड़कने ही रूक गई। किस्मत से सीढ़ियों पर लगी रेलिंग उसके हाथ में आ गई और वो सम्भल गई। 

उसके मन में बस एक ही विचार कौंधा। “हे भगवान अगर मैं गिर जाती तो, जहाँ आज सासु माँ है वहाँ मै होती। फिर हर चीज के लिए मुझे भी दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता।नहीं -नहीं भला वो कैसे एक जगह पडॣ रह सकती है।,,संभावित भविष्य की कल्पना मात्र से मधु का रोम रोम कांप उठा। 

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भगवान का धन्यवाद करती हुई वो नीचे आई। कमरे में से ससुर जी की आवाज आ रही थी, “आशु की माँ,…रोज रोज ये खिचड़ी मुझसे नहीं खाई जाती।,, “आज खा लिजीए जी…..। अकेली बहु बेचारी क्या क्या करेगी।……छह महीने से मैं तो बिस्तर पर पड़ी हूँ। इतना तो कर रही है वो। हम उसका हाथ तो बटवा नहीं सकते । और काम भी क्यों बढाएं।,,मधु की सासु माँ बोल रही थी। फिर ससुर जी बोले, “ठीक हि कह रही हो तुम आशु की माँ..। हमें बहु के बारे में भी सोंचना चाहिए। किसी तरह ये बुढापा कट जाए बस।,, 

मधु आत्मग्लानि से भर उठी।  उसे समझ में आ गया था कि कोई भी अपनी मर्जी से इस तरह बिस्तर पर नहीं पड़ा रह सकता। उनकी भी मजबूरी होती है जो वो छोटे छोटे कामों के लिए किसी के अधीन हो जाते हैं।     थोड़ी देर बाद वो चीले बनाकर ले आई,” पापा जी आप चीले खा लिजीए।, माँ आपकी भी दवा का टाइम हो गया है। ये लिजीए दूध पी लिजीए। ,,कहकर वो दवा निकालने लगी। तभी आशीष कमरे में आता है।” मधु मैंने ़अपने दोस्त से बात की है। कल से एक कामवाली आ जाएगी तुम्हारा हाथ बंटवाने।,, 

” रहने दो आशीष मैं कर लूंगी।,,मधु ने कहा। मधु की सासु माँ बोली।, “आ जाने दो बहु। तुम्हें भी थोड़ा सहारा मिल जाएगा। अगर तुम बीमार हो गई तो हमारा तो बुढ़ापे का सहारा ही छीन जाएगा।,, 

  मधु की आंखे छलछला उठीं। सास ससुर का रोम रोम आज अपने बहु बेटे को आशीर्वाद दे रहा था।

#आत्मग्लानि

 सविता गोयल

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