Moral stories in hindi : “भैया, आप मुझे बार-बार बोझ कहकर बुला रहे हो, कल को आपकी बेटी भी बड़ी होगी तो वो भी बोझ होगी, उसकी शादी भी जल्दी ही बिना उसकी मर्जी के कर दोगे क्या” ? नीरजा ने सवाल किया तो रमेश और सुरेखा चुप हो गये।
भाई और भाभी के दबाव के कारण नीरजा ने शादी के लिए हां कर दी, अपने सपनों को टूटता देखकर वो बहुत रोई, सुनीता जी ने उसे संभाला और उसकी शादी सुकेश से हो गई।
नीरजा शादी होकर ससुराल आई तो देखा यहां का माहौल एकदम ही अलग था, घर-परिवार में पढ़ाई-लिखाई से किसी को लेना-देना नहीं था, सासू मां ने यही बोला कि,” लडकी को पढ़ाकर क्या करना है, उसे तो चूल्हा-चौका ही तो संभालना है, अब तेरी पढ़ाई को चूल्हे में झोंक दें और रसोई संभाल ले, हमें तो पढ़ी-लिखी बहू नहीं चाहिए थी, ये तो तू हमारे बेटे को पसंद आ गई इसलिए हामी भर ली, वरना लड़कियों की कोई कमी नहीं थी “।
ये सुनकर नीरजा मन मसोसकर रह गई, उसे लग रहा था कि उसके भैया-भाभी ने उसकी पढ़ाई की कीमत नहीं समझी तो क्या हुआ? उसके ससुराल वाले जरूर समझेंगे, कम दहेज लिया था तो वो तो यही अंदाजा लगा रही थी कि वो लोग खुले विचारों के होंगे और किसी वजह से वो सुकेश की पढ़ाई पूरी नहीं कर पायें होंगे।
ससुराल में आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी, उसके ससुर जी लकवाग्रस्त थे और बिस्तर पर ही रहते थे, और सास घर देखती थी, दो छोटी ननदें थी जो स्कूल में पढ़ रही थी, सुकेश ही एकमात्र कमाने वाला था, और घर उसी से चल रहा था।
नीरजा ने तसल्ली से घर की हालत का मुआयना किया, अपनी सास सुमित्रा जी को समझा वो बोलने में तेज थी पर जब कोई प्यार से समझायें तो समझ जाती थी,
सुकेश भी कम बोलते थे, उसे बस सुबह से लेकर रात तक दुकान संभालनी होती थी, घुमने-फिरने का भी समय नहीं मिल पाता था, वो अपनी पत्नी नीरजा की बहुत इज्जत करता था, और उसे प्यार से रखता था।
शुरूआत में नीरजा ने सबको समझा और फिर उसने एक दिन जब सास अकेली बैठी थी तो बात की,” मम्मी जी, अभी तो दोनों बेटियां छोटी है, अब ये दोनों स्कूल से कॉलेज जायेगी, कल को इनकी शादी भी करनी होगी तो इतने पैसे कहां से आयेंगे, सुकेश की कमाई से तो बस घर ही चल पाता है, भविष्य के लिए कोई सेविंग तो है ही नहीं ? अगर घर चलाने वाले दो जने हो तो घर आराम से चलेगा, भविष्य के लिए पैसे भी जमा हो जायेंगे।
“हां, बहू तू कह तो ठीक रही है, अब देखो ना सुकेश के पिताजी तो बिस्तर पकड़े हुए है, दोनों बेटियां भी अभी छोटी है, अब कोई दूसरा बेटा भी नहीं है, जो सहारा बन जाता, वो कमाता तो घर चलाने में और भी आसानी होती”, सुमित्रा जी ने कहा।
मम्मी जी, जरूरी थोड़ी है, बेटा ही घर चलायें, बेटी और बहू भी तो घर चला सकती है, अब देखो ना मैंने भी बीएड की हुई है, अभी मुझे भी अच्छे स्कूल में अच्छी नौकरी मिल सकती है, और मेरी पगार भी अच्छी खासी होगी, सुबह सात बजे जाओं और दोपहर तक घर वापस, अब अच्छा वेतन आयेगा तो घर को ही सहारा मिलेगा, दोनों ननदों का जीवन संवर जायेंगा, अब ये भी अकेले कितना और क्या कर लेंगे?
नीरजा ने इतनी आसानी और शांतिपूर्वक समझाया तो उनके दिमाग में ये बात तो बैठ ही गई, उस वक्त उसकी सास कुछ नहीं बोली और ना ही गुस्सा हुई।
अगले दिन जब दोनों बेटियां स्कूल जा रही थी तो उन्होंने देखा कि एक के जूते घिस गये है।
” तूने बताया नहीं, तेरे जूते घिस गये है, भैया नये दिला देता”
“मैंने भैया को बताया था पर वो बोले अभी इसी से काम चला ले, अगले महीने दिला देंगे, भैया हमेशा ऐसे ही करते हैं, हर जरूरत को अगले महीने पर टाल देते हैं”, और वो रूआंसी होकर स्कूल चली गई।
ये सुनकर सुमित्रा जी गंभीर हो गई और नीरजा के प्रस्ताव पर सोचने लगी,” अगर नीरजा खुद नौकरी करना चाहती है तो बुराई क्या है?? वो घर पहले की तरह संभाल ही लेंगी, अभी तो उनका बुढ़ापा और दोनों बेटियों का भविष्य भी है।
उन्होंने सबको बुलाया और कहा कि वो चाहती है कि बहू नौकरी करें, मै घर संभाल लूंगी, सुकेश और नीरजा बाहर का संभाल लेंगे, तो जीवन की गाड़ी सही चलने लगेगी, ये सुनकर नीरजा बहुत खुश हुई और अपने मायके अपनी डिग्री लेने चली गई।
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भाग -3
मेरी ननदें मेरे लिए बोझ नहीं है ( भाग -3) – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi
बहुत ही सुंदर कहानी .ऐसा सोच अगर सब बेटियों में आ जाए तू परिवारों का जीवन सुधर जाए
बहुत सुन्दर व शिक्षाप्रद कहानी