गोविन्द भइया करीब डेढ़ महीने से बीमार चल रहे थे बहन मालती ने आज भाई से मिलकर हाल-चाल जानना चाहा सो पहुंच गई गोंविदा भाई के पास । मालती जब घर गई तो बाहर चबूतरे में भतीजा राजीव कुछ उदास सा बैठा था , मालती ने पूछा अरे राजीव यहां क्यों बैठे हो तो उसका जवाब था बस ऐसे ही ।
अंदर जाकर मालती भाई भाभी से बात करने में मशगूल हो गई। दोपहर के दो बज रहे थे भाभी ने कहा दीदी चलो खाना खा लो । सभी लोग खाना खाने बैठे तो मालती ने कहा अरे राजीव बाहर बैठा है उसको भी बुला लो खाना खाने को , थोड़ी देर भाई भाभी चुप रहे लेकिन जब मालती ने दोबारा कहा तो भाभी ने कहा वो खाना नहीं खायेगा मालती ने पूछा क्यों खा चुका है क्या तो भाभी बोली आज तुम्हारे भाई ने कहा दिया है कि मुफ्त की रोटियां तोड़ता है बैठे बैठे जा निकल जा घर से इसी लिए वो घर के बाहर बैठा है कहां जाएं बेचारा ।
आइये राजीव के घर की कहानी बताते हैं , गोंविद भाई के तीन बेटे हैं सभी हंसी खुशी से साथ साथ रहते थे लेकिन जब तक बचपना होता है तभी तक बच्चे साथ रहते हैं फिर बाद में वो सब अपने अपने घोंसले अलग बना लेते हैं। बच्चे बड़े होते गए और उनके शादी ब्याह भी होते गए । राजीव इनमें से सबसे बड़ा था उसका पढ़ने लिखने में ज्यादा मन नहीं लगा तो घर का बिजनेस था उसी में लग गया । चूंकि पढ़ा लिखा ज्यादा नहीं था तो उसकी शादी ब्याह में भी दिक्कत आ रही थी ।
दूसरे बेटे की शादी पहले हो गई और बहू ने घर में आते ही लड़ाई झगड़ा शुरू कर दिया तो पति को लेकर अलग रहने लगी बेटा सरकारी नौकरी में था तो अलग मकान लेकर रहने लगा । तीसरा बेटा इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और बैंगलोर में नौकरी करता था सो उसने अपने साथ की लड़की से शादी करके वहीं रहने लगा ।
राजीव रह गया घर तो बसाना था सो गोविंद भाई ने झूठ बोलकर कि एम ए पास है एक छोटे से जगह की लड़की देखकर शादी कर दी लेकिन लड़की एम ए पास थी ।पोल तब खुली जब शादी हो गई कि राजीव सिर्फ इंटर तक ही पढ़ा है ।अब बीबी भी राजीव को घास नहीं डालती खाने पीने को भी नहीं पूछती किसी स्कूल में टीचर हो गई है दिनभर गंवार गंवार कहकर ताने मारती रहती है ।
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अपना खाना पीना अलग बनाती है राजीव को पूछती नहीं है ।अब राजीव क्या करें मां बाप के पास ही रहता है । धीरे धीरे घर का बिजनेस ठप्प हो गया और दुकान बंद हो गई ।दो दुकानें हैं किराए पर चलती है और मकान का दो हिस्सा भी किराए से उठा है तो खर्चा पानी अच्छे से निकल आता है पैसों की कोई दिक्कत नहीं है ।
सबकुछ चलता रहा राजीव मां बाप का ध्यान रखता रहा लेकिन अभी छै साल पहले भाभी को ब्रेस्ट कैंसर हो गया ।उसका आपरेशन कराना पड़ा दोनों छोटे बेटों ने बस कुछ पैसे दे दिए लेकिन देखभाल करने दोनों बेटों में से कोई नहीं आया । कहने को तो तीन तीन बहुऐं थी लेकिन एक भी झांकने नहीं आई । राजीव दिन-रात एक करके मम्मी की सेवा करता रहा राजीव मम्मी की देखभाल के साथ घर के भी काम कर लेता था
यदि बर्तन धोने वाली नहीं आती तो बतर्न भी धो देता खाना भी बना देता वो मम्मी को कुछ नहीं करने देता था ।उसी की सेवा से आज भाभी खड़ी हो गई ।और गोविंद भाई जो डेढ़ महीने से बीमार है कोई लड़के पूछने नहीं आते। भाभी कभी दोनों बेटों से कहती कि पापा बीमार है तुम लोग कभी देखने या पूछने नहीं आते तो बेटे कहते हम लोगों को नौकरी से छुट्टी नहीं है वो गंवार भाई है तो घर में वो क्या कर रहा है कराओ उसी से ।
भाभी बोली अब बताओ मालती दीदी इतना बेचारा करता रहता है फिर भी तुम्हारे भइया उसको दुत्कारते रहते हैं , दिनभर डांटते रहते हैं । अगर ये भी पढलिख कर बाहर चला जाता तो कौन हम लोग की देखभाल करता ।मैं इतना मना करती हूं तुम्हारे भइया को लेकिन ये मानते नहीं है ।आज उसको कहा दिया कि मुफ्त की रोटियां खाता है बैठे बैठे गंवार कहीं का । इसी लिए वो नाराज़ होकर बाहर बैठ गया है कह रहा है मैं खाना नहीं खाऊंगा ।
मालती ने भाई को समझाया क्यों डांटते हो उसको पढ़ा लिखा नहीं है तभी तो तुम्हारे पास रहता है यदि पढ़ा-लिखा होता तो घर से बाहर तुम लोगों से दूर रहता फिर इस बुढ़ापे में कौन देख-रेख करता तुम लोगों की ।मत डांटा करो उसको जाओ बुला कर लाओ उसे खाना खाने को । फिर गोंविद भाई को बहन की बात माननी पड़ी उठकर बाहर आए और राजीव से बोले चलो अच्छा हो गया चलकर खाना खाओ । राजीव ने भी पापा की बात मानी और फिर सबने मिलकर खाना खाया ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश