‘‘ माँ, तुमने आज तक मुझसे जो भी कहा करती चली आई….लड़की हो..ऐसे रहो वैसे करो,…लोग चार बातें न कहें इसलिए तुम्हारी हर हाँ में हाँ करती चली गई….भाई छोटे हैं पर देखो मुझे छोटी समझ हर दुःख और दुनिया की नजरों से बचाकर रखने में लगे रहे…अब तुमने लोगों के कहने पर मेरी शादी करने का निर्णय भी ले लिया….मुझे इसमें कोई आपत्ती नही पर एक बात तुम्हें मेरी भी माननी पड़ेगी ये वादा करो।’’भरे गले से रति अपनी माँ को देखकर कहे जा रही थी
‘‘ हाँ मेरी बेटी, क्या करूँ ….समाज में अकेले रहना सबसे बड़ा गुनाह है….पति नहीं है तो समझो औरतों को जीने का हक ही नहीं.. बस तुम्हारे उपर कोई उँगली ना उठाए इसलिए इतनी पाबंदियाँ रखी….हो सके तो मुझे माफ कर देना।” माँ सुमन ने रति से कहा
“माफी मत मांगो माँ,जो भी किया होगा मेरे भले का ही सोच कर।”कहकर रति माँ के पास से जाने लगी
“बेटा सुन कल लड़के वाले आने वाले हैं….तु तैयार तो है ना शादी के लिए?”सुमन ने रति से पूछा
‘‘ कहा ना माँ जो तुम सब की मर्जी, बस जिस दिन मैं जो कुछ माँगूँ वो जरूर पूरी कर देना।”कहकर रति कमरे से निकल गई
‘‘ जाने क्या मन में चल रहा इसके….देख रहे हैं आप? मैं क्या करूँ आप ही बताइए….आप साथ होते तो कोई कुछ नहीं कहता पर आपके बिना आपकी लाडली की परवरिश आसान नहीं थी जी….लड़के तो जैसे चाहे रह लेते पर लड़की को बहुत बचा कर रखा है कोई आँच नहीं आने दी आज तक….अब बस कल लड़के वालों को हमारी बिटिया पसंद आ जाए फिर आपके मन मुताबिक़ ब्याह भी कर दूँगी….बस आप साथ रहना।” सुमन पति को देखते हुए बोली
अपनी तरफ़ से सुमन ने लड़के वालों के आवभगत में कोई कमी ना रखी।
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तरुण के साथ साथ उसके माता-पिता को भी रति भा गई।
“तुम दोनों को आपस में कोई बात करनी है तो कर लो।”दोनों की माँ ने अपने बच्चों से कहा
“ मुझे कोई बात नहीं करनी। आप मुझसे कुछ पूछना चाहते तो पूछ सकते हैं ।” रति ने तरुण को देखकर धीमे से कहा
तरुण चाहते तो थे बात करें पर रति ने जब मना कर दिया तो वो भी मना करने ही जा रहा था तब तक रति उठ कर बोली,” चलिए बाहर लॉन में चल कर बात कर लेते हैं।” तरुण के मन की हो रही थी ये सुन कर वो ख़ुश हो गया।
दोनों ने एक-दूसरे से पसंद नापसंद ,पढ़ाई, ये सब बातें की अचानक ही तरुण ने पूछा,” आपको शादी तो करनी है ना? ऐसा क्यों लग रहा आपका मन नहीं बस आपसे जो बोला जा रहा आप वही करना चाहती है ।”
“जी ऐसा कुछ नहीं है, मैं माँ को मना नहीं कर सकती हूँ ना …वो मेरे भले के लिए ही कर रही होगी जो भी कर रहीं।” रति के स्वर में कोई भी भाव नहीं थे
“ रति मैं चाहता हूँ ये शादी आप अपनी मर्ज़ी से करे, अगर आपको मैं पसंद नही आ रहा तो मना कर सकती है….मैं उन्हें समझा दूँगा…मैं चाहता हूँ मेरी होने वाली पत्नी को उसके मन से अपनाऊँ ना कि अपने मन से…आप अपनी पसंद का वो सब कर सकती है जो आप चाहती हैं।”तरुण ने बहुत ही अपनेपन से रति से कहा
रति उसकी बात सुनकर सोचने लगी तरुण जैसा ही जीवनसाथी तो वो चाहती थी जो उसको समझे।
बिना कुछ जवाब दिए रति घर की ओर जाने लगी।
“आपने जवाब नहीं दिया?” तरुण ने पीछे से हाथ पकड़ कर रोक कर पूछा
“आपको क्या लगता है?” रति शर्माती हुई बोली
और शरमा कर वहाँ से भाग गई
दोनों की शादी तय हो गई।
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शादी वाले दिन लाल लहंगे मे सजी रति ग़ज़ब की ख़ूबसूरत लग रही थी पर रति आज कही खोई हुई सी थी।
तभी माँ कमरे में आई ,”आजा तुझे वो तेरा पसंदीदा हार पहना दूँ जो बड़े जतन से बचपन में पहन कर पापा को दिखा कर इठलाती रहती थी।”
“पर माँ वो तो तुम्हारे थे ना? पापा ने उसके बाद कहाँ कुछ ख़रीदा तुम्हारे लिए.. वो तुम ही रखो।”रति माँ के गले लग कर बोली
“ ना मेरी लाडो वो तो तेरे पापा को पसंद आ गए थे तो तेरे लिए ही लाकर रख दिए थे।” सुमन ने कहा
“ माँ आज बारात आने से पहले मुझे एक बार पापा से मिल आने दो जहाँ मैं आख़िरी बार उनके साथ गई थी।”रति माँ का हाथ पकड़ कर बोली
“आज और अभी ये क्या बोल रही है बेटा?घर में इतने सारे लोग हैं ….सब सौ बातें बनाएँगे….दुल्हन अभी घर से बाहर नहीं जाती।” सुमन बेटी को समझाते हुए बोली
“माँ मैंने आपसे कहा था ना सब आपके मन का कर रही हूँ तो एक बात मेरी भी मानोगी, तो यही वो बात है , तुम मना नहीं कर सकती हो, पापा से ही मिलना है जाने से पहले।”रति की पीड़ा उसकी बातों में देख माँ मना नहीं कर पाई
भाई के साथ रति दुल्हन बन कर पापा से मिलने पहुंची। नदी का वो किनारा जहाँ वो घंटो अपने पापा के साथ बैठ कर कबूतरों को दाना खिलाया करती थी, और सवालों की झड़ी से पापा को परेशान कर देती थी।
‘‘ पापा देखो आपकी रति दुल्हन बन गई है…आपने जो हार दिया था वो भी पहना है….अपना आशीर्वाद दीजिए पापा…नए जीवन की शुरुआत करने जा रही हूँ ।”आँखो से अविरल नीर बहे जा रहे थें और रति बस नदी के तट पर खड़ी पापा के आशीर्वाद की बाट जोह रही थी
अचानक से नदी में एक लहर सी उठी और रति तक आकर रुक गई।
‘‘ दीदी देखो पापा ने अपना आशीर्वाद दे दिया….आखिरी बार पापा को इसमें ही तो मिला कर हम गए थे।”कहते हुए छोटा भाई भी उदास हो गया
दोनों नदी के जल को स्पर्श कर चुपचाप घर आ गए।
रति अपने पापा की लाडली थी, दिल का दौरा ना पड़ा होता तो आज वो भी उसके साथ होते…अपना हाथ उसके सिर पर रख कर आशीर्वाद देते पर जब वो नहीं रहे तो उनका आशीर्वाद लेने रति उसी जगह पहुँच गई जहाँ वो अपने पापा और भाई के साथ समय बिताया करती थे…..पापा का अस्थि विसर्जन भी यही पर हुआ था इसलिए ही रति को अपने पापा से मिलने उनका आशीर्वाद लेने यहाँ आना ही था।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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