सुमि की शादी को सात माह हो गए थे ।सब कुछ था उसके जीवन में जिसकी कोई भी लड़की कल्पना करती है-सुदर्शन, सम्पन्न, सुशिक्षित प्रतिष्ठित पति, बंगला, गाड़ी,नौकर-चाकर,ऐशो आराम के सब साधन लेकिन फिर भी उसे अपने वैवाहिक जीवन से असंतोष था कारण था –पति मनन का बिजनेस की व्यस्तता के कारण उसे समय न दे पाना व साथ ही उसका अंतर्मुखी स्वभाव।
सुमि फिल्मों की काल्पनिक दुनिया में रहने वाली पति के रूप में किसी शाहरुख खान टाइप रोमांटिक हीरो की छवि मन में बसाए हुए थी जो उसके रुप सौन्दर्य का भंवरा बन उसकी सुन्दरता, उसके साज श्रृंगार व ड्रेसेज से मुग्ध हो तारीफों के पुल बांध दें,हाथों में हाथ डालकर कभी सिनेमा,कभी रेस्तरां,कभी ट्रिप पर ले जाए
लेकिन एक तो मनन को घूमने घुमाने का अधिक समय मिलता नहीं था और जब वो जाते भी तो अपने एक्सप्रेसिव न होने के कारण वो उसकी सुन्दरता या उसके प्रति अपने प्रेम को व्यक्त नहीं कर पाता था। यद्यपि वैसे वो उससे बहुत प्यार करता था। इन्हीं वजहों से सुमि का मन मनन के प्रति विरक्त होता चला गया और मन में कुछ सोचकर वह अपने मायके आ गई।
मन ही मन वह मनन से सैप्रेशन का इरादा कर चुकी थी लेकिन किसी पर अभी जाहिर नहीं किया। दो चार दिन तो बहुत हंसी खुशी ,रौनक में बीते जैसे कि उसके आने पर हमेशा होता था लेकिन उसके अभी न लौटने के आसार देखकर सबके हाव भावों में परिवर्तन आने लगे जहां मां पिता के माथे पर किसी संभावित आशंका की चिंता की रेखाएं झलकने लगीं ,
वहीं भाई और भाभी की निगाहों में प्रश्न और उपेक्षा। जिस घर में उसके आने के इंतजार में बेसब्री दिखाई देती थी , एक हफ्ते में ही उनमें उसके वापसी के प्रश्न चिन्ह दृष्टिगोचर होने लगे।वह स्वयं भी जो लाड़ और आधिपत्य से कह कर फरमाइशें पूरी कराती थी ,
अचानक संकोच की दीवार खड़ी हो गई , मन ही मन सुमि को भी समझ आ रहा था कि शादी के बाद बेटी दो चार दिन को ही सुहाती है , हमेशा के लिए आ जाने पर सम्मान की हकदार नहीं रहती। ज़िन्दगी जाने कब क्या मोड़ ले ले , ये कोई नहीं जानता–
वह महसूस कर रही थी कि अपने घर में वो कैसे “रानी” बन कर रहती थी। जिस कारण से वो मनन को छोड़कर आई थी,अब तो उसे वो कमियां भी नगण्य लगने लगीं थीं ! क्या हुआ जो वो अपनी भावनाएं एक्सप्रैस नहीं कर पाता, उसकी आंखों में,
उसकी केयर में प्यार ही तो झलकता है। रही समय की बात तो वो यह सब मेहनत परिवार के लिए ही तो कर रहा है। बिजनेस को ऊंचाईयों पर ले जाने के उसके सपनों ,
उसके जुझारूपन व महत्वाकांक्षाओं पर फख्र करने की बजाय वह उसे छोड़ कर यहां आ गई लेकिन अभी भी कुछ नही बिगड़ा। अब जब उसे अपनी ग़लती का आभास हो ही गया तो वह आज ही वापिस अपने घर जाने को बैग बनाने लगी यह गाना गुनगुनाते हुए “मैं तो छोड़ चली बाबुल का देसी , पिया का घर प्यारा लगे कोई मैके में दे दो संदेश पिया का घर प्यारा लगे
पूनम अरोड़ा