बस…अब और नहीं – विभा गुप्ता : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : ” दीदी… देखिये ना…मैंने इनसे पानी माँगा तो मेरे गले….।”

    ” चुप कर शैतान…. ” नंदा ज़ोर-से चीखी और जेठानी के भाई के गाल पर झन्नाटेदार थप्पड़ मारकर अपने कमरे में जाकर फूट-फूटकर रोने लगी।फिर तो जेठानी ने आसमान सिर पर उठा लिया।सुशांत के आते ही फट पड़ी,” देवर जी…अपनी महारानी को बोलो कि अभी आकर मेरे भाई से माफ़ी माँगे…।”

       ” जी भाभी…।” हमेशा की तरह शांत स्वर में सुशांत बोला और कमरे में आकर नंदा से कहने लगा,”नंदा…बात बढ़ाने से क्या फ़ायदा…तुम माफ़ी…।”

 ” किस बात की माफ़ी सुशांत…।” नंदा चीख पड़ी।

          दो बरस पहले नंदा सुशांत के साथ विवाह करके इस घर में आई थी।सुशांत अपने तीन भाईयों में सबसे छोटा था।शहर में उसके पिता की स्टील फ़ैक्ट्री थी।उनके देहांत के बाद सुशांत के बड़े भाई निशांत फ़ैक्ट्री संभालने लगे थें।उसके मंझले भाई बैंककर्मी थें।वे अपने परिवार के साथ पोस्टिंग वाले शहर में सेटल थें।महीने-दो महीने में अपनी माँ से मिलने आ जाया करते थें।

         सुशांत के बड़े भाई ने ही उसकी पढ़ाई पूरी करवाई।नंदा सुशांत के काॅलेज़ में ही पढ़ती थी।काॅलेज़ के एक प्रोग्राम में नंदा ने एक आत्मनिर्भर महिला का रोल प्ले किया था जिसे देखकर सुशांत उसकी तरफ़ आकर्षित हो गया था। दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे और एक दिन सुशांत ने नंदा से अपने प्यार का इज़हार कर दिया।

        सुशांत की दोनों भाभियाँ अमीर घराने से ताल्लुक रखती थीं।उसकी बड़ी भाभी अपनी छोटी बहन रिया के साथ उसका विवाह कराना चाहती थी।उसकी माँ भी यही चाहती थी।अपना ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद उसने बड़े भाई के साथ फ़ैक्ट्री का काम सीखा और तब बड़े भाई ने उसे एक डिपार्टमेंट का इंचार्ज बना दिया।उसे मन लगाकर काम करते देख उसकी माताजी ने अपनी बड़ी बहू से सुशांत के विवाह की बात छेड़ दी।

बड़ी बहू तो तैयार ही बैठी थी, बोली,” माँजी..मैं कल ही रिया से बात करती हूँ।” परन्तु जब सुशांत ने अपनी बड़ी भाभी के प्रपोज़ल को ठुकरा कर एक साधारण परिवार की लड़की नंदा से विवाह करने की बात कही तो सबने एक स्वर में उसे अस्वीकृति दे दी। सुशांत ने हठ पकड़ ली तो माँ को उसकी बात माननी पड़ी और एक शुभ मुहूर्त में नंदा के साथ उसका विवाह हो गया।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

स्वयं की तलाश – डा मधु आंधीवाल

       अपने अरमानों पर पानी फिरते देख बड़ी भाभी तो तिलमिला गई।वो गाहे-बेगाहे नंदा के काम में गलतियाँ निकालने लगी।पहली बार जब नंदा का भाई उससे मिलने आया तो वह अपनी बहन के साथ-साथ उसकी सास और जेठानियों के लिये भी साड़ियाँ लाया था।तब  बड़ी जेठानी ने उसका बहुत मज़ाक बनाया था।मंझली जेठानी भी बोली,” मेरी कामवाली भी ऐसी साड़ी न पहने।” सुनकर उसे बहुत बुरा लगा था

लेकिन फिर सोचा कि मैं अपने अच्छे व्यवहार से सबका दिल जीत लूँगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं।उसके बोलने और पहनावे के तरीके पर तो बड़ी जेठानी अक्सर ही उसे ताने देती।उसने सुशांत से कहा कि माँजी तो चुप रहतीं हैं पर तुम तो अपनी भाभी को बोलो…साल भर से वो मुझे बेवजह अपमानित करती आ रहीं हैं…

मुझे दुख होता है।जवाब में सुशांत आश्वासन देता,” सब ठीक हो जायेगा नंदा.., भाई-भाभी ने बहुत किया है मेरे लिये…उनके सामने मुँह खोलना तो…।” और फिर नंदा अपने आँसू पीकर रह जाती।

         एक दिन नंदा ने सुशांत से कहा कि अब हमें भी अपना परिवार बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए।तब सुशांत उसका मुख अपने हाथ में लेकर बोला,” ज़रूर…लेकिन इस माहौल में नहीं डियर….कुछ समय के बाद हमलोग अलग घर लेकर रहेंगे..तब हमारे बच्चे की परवरिश भी अच्छी होगी।” वह खुश हो गई।

इस बात को छह महीने से ऊपर हो गये लेकिन सुशांत ने घर या बच्चे की चर्चा नहीं की।अब तो जेठानी उसे बाँझ शब्द के तीर भी चुभोने लगी।कभी-कभी तो उसकी सास भी कह देती,” सुनंदा भाभी ने तो सुशांत के बाद अपने घर में बहू उतारी थी और देखो…कैसे पोते को गोद में लेकर कैसे इतराती फिरती हैं।

” नंदा के लिये यह पीड़ा भी कम असहनीय न थी।कभी-कभी उसका मन विद्रोह कर उठता कि जब मैंने कोई गलती नहीं की तो क्यों बर्दाश्त करूँ लेकिन फिर वह अपने मन को समझाती…..,” कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा।”

         एक दिन नंदा किचन में चाय बना रही थी।तभी पीछे से जेठानी के भाई ने आकर उसके कंधे पर हाथ रख दिया।वह हड़बड़ा गई तो साॅरी कहकर वहाँ से निकल गया।उसने यह बात सुशांत को बताई तो वह बोला,” अरे यार…इन छोटी-छोटी बातों को तूल देकर घर में अशांति मत फैलाओ।

” नंदा चुप रह गई और जेठानी के भाई के हौंसले बुलन्द हो गये।आज तो उसने नंदा को पकड़कर अपने सीने से लगाना चाहा… बहन को अचानक देखकर उसने तुरन्त पैंतरा बदल लिया और नंदा को ही चरित्रहीन ठहरा दिया।

       नंदा के सब्र का बाँध अब टूटा गया था, वह बोली,” मिस्टर सुशांत…,पिछले दो साल से तुम्हारी भाभी मुझे बेवजह अपमानित करती आ रहीं है और मैं चुपचाप सहती आ रही हूँ ।बच्चे अभी तुम नहीं चाहते थे और बाँझ का बाण मुझे सहना पड़ रहा था।तुम अच्छी तरह से जानते हो कि भाभी का भाई कई दिनों से मेरे साथ बत्तमीज़ी कर रहा है,

इस कहानी को भी पढ़ें: 

चंपी–नीरजा कृष्णा

फिर भी तुमने एक शब्द नहीं कहा और आज तो….फिर भी तुम मुझे ही माफ़ी माँगने को कह रहे हो लेकिन बस…अब और नहीं..। जब मैंने कोई गलती नहीं की तो क्यों बर्दाश्त करूँ?।” वह एकाएक उठ खड़ी हुई और बैग में अपने कपड़े रखकर कमरे से बाहर निकलने लगी तो सुशांत ने उसका हाथ पकड़कर रोकना चाहा।

          सुशांत का हाथ झटकते हुए नंदा बोली,” तुम्हें अपना सम्मान प्यारा न होगा लेकिन मुझे है।जिस दिन तुम अपने लिये बोलना सीख जाओगे और मेरे सम्मान की रक्षा करने लायक बन जाओगे तब मुझे लेने आना…।” कहते हुए वह तेज कदमों से बाहर निकल गई।

                                  विभा गुप्ता

                                    स्वरचित 

# जब मैंने कोई गलती नहीं की तो क्यों बर्दाश्त करूँ

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!